अब मौत दे रही दिल्ली की हवा! PM 2.5 बना ‘साइलेंट किलर’, दिल्ली में प्रदूषण के चलते हो रही 15% मौतें; रिपोर्ट ने खोली आंखें
2023 में दिल्ली में हुई कुल मौतों में से करीब 15% मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी थीं. ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ (GBD) और IHME के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल दिल्ली में लगभग 17,200 लोगों की जान प्रदूषित हवा के कारण गई. Centre for Research on Energy and Clean Air (CREA) के विश्लेषण में बताया गया कि दिल्ली में 9.4% स्वस्थ जीवन वर्ष (DALYs) केवल प्रदूषण से खत्म हुए - यानी करीब 4.9 लाख साल की सेहत हवा में उड़ गई.
राजधानी दिल्ली की जहरीली हवा अब केवल सांस लेने में तकलीफ़ नहीं दे रही, बल्कि जान भी ले रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में दिल्ली में हुई कुल मौतों में से लगभग 15 प्रतिशत मौतें सीधे वायु प्रदूषण से जुड़ी रहीं. यह आंकड़ा हाल ही में इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा जारी ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ (GBD) के नवीनतम डेटा पर आधारित है.
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में बीते साल लगभग 17,200 लोगों की मौत वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण हुई. इन मौतों का सबसे बड़ा कारण ‘एम्बिएंट पार्टिकुलेट मैटर पॉल्यूशन’ यानी हवा में मौजूद सूक्ष्म धूलकण (PM2.5 और PM10) बताए गए हैं.
‘9.4% स्वस्थ जीवन वर्ष प्रदूषण की भेंट चढ़े’
Centre for Research on Energy and Clean Air (CREA) द्वारा किए गए विश्लेषण में खुलासा हुआ कि दिल्ली में 2023 में कुल स्वस्थ जीवन के 9.4 प्रतिशत वर्ष (Disability Adjusted Life Years - DALYs) केवल प्रदूषण की वजह से खत्म हो गए. यह देश में सबसे अधिक है. CREA के विश्लेषक मनोज कुमार के अनुसार, “दिल्ली के लोगों ने 2023 में प्रदूषित हवा के कारण करीब 4.9 लाख साल के स्वस्थ जीवन खो दिए. यह दर्शाता है कि जब तक दिल्ली की हवा में सुधार नहीं होता, तब तक प्रदूषण से जुड़ी बीमारियां - जैसे फेफड़ों की बीमारी, दिल का दौरा, स्ट्रोक और फेफड़ों का कैंसर - बढ़ते ही रहेंगे.”
दिल्ली में मौतों के प्रमुख कारणों की सूची में प्रदूषण नंबर-1
रिपोर्ट बताती है कि प्रदूषण के बाद मौतों के प्रमुख कारणों में शामिल हैं...
- हाई ब्लडप्रेशर (14,874 मौतें - 12.5%)
- ब्लड शुगर का उच्च स्तर (10,653 मौतें - 9%)
- कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना (7,267 मौतें - 6%)
- बॉडी मास इंडेक्स यानी मोटापा (6,698 मौतें - 5.6%)
यानी, दिल्ली में प्रदूषित हवा अब केवल सांसों को नहीं, बल्कि शरीर के हर अंग को प्रभावित कर रही है.
‘प्रदूषण धीरे-धीरे शरीर को कमजोर कर देता है’
एम्स के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. हर्षल रमेश साल्वे का कहना है कि भले ही आंकड़ों पर बहस की जा सकती है, लेकिन प्रदूषण से मौतें हो रही हैं, यह निर्विवाद है. उन्होंने कहा, “यह आंकड़े गणितीय मॉडल पर आधारित हैं, जो परफेक्ट नहीं होते. भारत में प्रदूषण-एक्सपोज़र रिस्पॉन्स डेटा की कमी है, इसलिए यह अनुमानात्मक आंकड़े हैं. फिर भी, मौतों में बढ़ती प्रवृत्ति यह बताती है कि हमें तत्काल बहु-क्षेत्रीय कदम उठाने होंगे.” वहीं, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट (रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर) डॉ. निखिल मोदी का मानना है कि 15% का आंकड़ा वास्तविकता के करीब है. उन्होंने कहा,
“जब हम कहते हैं कि मौतें प्रदूषण से हुईं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हवा ने किसी को सीधे मार दिया. बल्कि लगातार गंदी हवा में सांस लेने से बीमारियां बढ़ती जाती हैं, जो अंततः जानलेवा साबित होती हैं. अगर स्थिति नहीं सुधरी, तो ऐसे मामलों में और वृद्धि होगी.”
‘PM2.5 शरीर को अंदर से जला देता है’ - डॉ. नीति जैन
PSRI हॉस्पिटल की सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. नीति जैन के अनुसार, लंबे समय तक PM2.5 के संपर्क में रहना बेहद घातक है. “यह सूक्ष्म कण फेफड़ों और रक्तप्रवाह में जाकर सूजन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और हृदय की कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं. इससे दिल का दौरा, स्ट्रोक, कैंसर और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसे रोग बढ़ जाते हैं. प्रदूषण कोई तात्कालिक हत्यारा नहीं, बल्कि एक ‘साइलेंट किलर’ है जो धीरे-धीरे शरीर को खत्म करता है.” डॉ. जैन ने यह भी बताया कि मौतों के सर्टिफिकेट में प्रदूषण को सीधा कारण नहीं बताया जाता, इसलिए यह अनुमान वैज्ञानिक मॉडलों पर आधारित होते हैं. उन्होंने कहा, “15% का आंकड़ा भले डरावना लगे, लेकिन दिल्ली की हवा की हालत देखकर यह पूरी तरह वैज्ञानिक रूप से संभव है.”
दिल्ली का भविष्य: क्या सांस लेना और भी खतरनाक होगा?
दिल्ली में वायु गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि हर सर्दी में शहर का AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) ‘सीवियर’ स्तर पार कर जाता है, जिससे बच्चों, बुजुर्गों और दिल-फेफड़ों के मरीजों में बीमारियां तेजी से बढ़ती हैं. मनोज कुमार ने चेतावनी दी, “अगर अब भी ठोस नीति और व्यवहारिक कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में प्रदूषण से जुड़ी मौतें और बढ़ेंगी. सिर्फ मास्क या एयर प्यूरीफायर से समाधान नहीं होगा; हमें ईंधन नीति, ट्रैफिक नियंत्रण, औद्योगिक उत्सर्जन और हरियाली पर सख्त कदम उठाने होंगे.”
दिल्ली के लिए यह रिपोर्ट किसी चेतावनी से कम नहीं. जब राजधानी में हर सातवां व्यक्ति जहरीली हवा के कारण मर रहा हो, तो यह केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि मानवीय आपदा है. दिल्ली की हवा अब धीरे-धीरे ज़िंदगी छीन रही है - हर सांस के साथ.





