इंद्रदेव भी नहीं मेहरबान! क्या पानी बरसाने के चक्कर में दिल्ली सरकार ने डुबा दिए करोड़ों रुपये? AAP ने भाजपा से पूछा ये सवाल
दिल्ली में कृत्रिम बारिश परियोजना पर सियासत तेज हो गई है। विपक्ष ने सवाल उठाया कि क्या बारिश कराने के नाम पर करोड़ों रुपये पानी में बहा दिए गए? वहीं AAP ने भाजपा से जवाब मांगा कि प्रदूषण से राहत के लिए उठाए कदमों का वे विरोध क्यों कर रहे हैं।
दिल्ली सरकार द्वारा प्रदूषण से निपटने के लिए किए गए क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स पर अब सवाल उठने लगे हैं. मंगलवार को हुए प्रयोग के बाद पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसे 'बेहद महंगा, अस्थायी और अस्थिर उपाय' बताया है. उनका कहना है कि कृत्रिम बारिश से कुछ समय के लिए धूल और प्रदूषित कण नीचे बैठ जाते हैं, लेकिन एक या दो दिन में हवा फिर जहरीली हो जाती है.
दिल्ली सरकार और आईआईटी कानपुर के बीच हुए एमओयू के अनुसार, पांच ट्रायल्स के लिए करीब 3.2 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है. यानी एक ट्रायल पर लगभग 64 लाख रुपये की लागत. अब तक उत्तर दिल्ली में तीन ट्रायल्स किए गए हैं, लेकिन किसी से भी बड़ी बारिश नहीं हुई. राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) बीते कुछ दिनों से 'बहुत खराब' से 'खराब' श्रेणी में बना हुआ है.
दिल्ली AAP अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने केंद्र सरकार पर बादल फोड़ने (Cloud Seeding) की योजना को लेकर तीखा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि जब दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली सरकार ने कहा कि उन्हें 26 केंद्रीय विभागों से अनुमति मिली है, तो इनमें CAQM, IMD और CPCB जैसे प्रमुख विभाग शामिल हैं. लेकिन जो मैं दिखा रहा हूं, वह कोई मेरा निजी दस्तावेज नहीं है. यह संसद में दिए गए एक केंद्रीय मंत्री का बयान है. हमारी संसदीय लोकतंत्र में यह ‘सत्य वचन’ है, इससे ऊपर कुछ नहीं.”
सौरभ भारद्वाज ने आगे कहा कि “केंद्र सरकार ने खुद संसद में बताया कि साल 2024 में गोपाल राय ने उन्हें चार पत्र लिखे थे. उस समय केंद्र की ओर से दिल्ली सरकार को जो आधिकारिक वैज्ञानिक सलाह दी गई थी, वह यह थी कि दिल्ली की सर्दियों में पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) के कारण स्वाभाविक रूप से बारिश होती है और बादल बनते हैं, इसलिए क्लाउड सीडिंग की जरूरत नहीं है, क्योंकि बारिश वैसे भी हो जाएगी.”
दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने क्लाउड सीडिंग पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 'यह एक सफल और ऐतिहासिक ट्रायल रहा. AAP सरकार पिछले 10 सालों से इस तकनीक को आज़माने की कोशिश कर रही थी, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में क्लाउड सीडिंग ट्रायल ने नया मील का पत्थर हासिल किया है. अब जैसे ही IIT यह निर्धारित कर लेगा कि बारिश कराने के लिए कितनी नमी (moisture level) की जरूरत होती है, हम दिल्ली में जब चाहें कृत्रिम बारिश (artificial rain) करवा सकेंगे.'
'बारिश से प्रदूषण घटता जरूर है, लेकिन असर कुछ घंटों का'- CSE
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा कि शहर में क्लाउड सीडिंग के बाद कोई ठोस बारिश दर्ज नहीं हुई. अगर बारिश होती भी है और प्रदूषण कुछ समय के लिए घटता है, तो यह असर कुछ घंटों या दो दिनों से ज्यादा नहीं रहता.” उन्होंने कहा कि ऐसे निवेशों का उद्देश्य जमीनी स्तर पर उत्सर्जन कम करना होना चाहिए, ताकि हवा की गुणवत्ता में स्थायी सुधार किया जा सके और जनस्वास्थ्य की रक्षा हो सके.
'सर्दियों में नमी की कमी, क्लाउड सीडिंग का फायदा नहीं' – IIT Delhi
आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के सहायक प्रोफेसर शहज़ाद ग़नी ने कहा कि 'दिल्ली में सर्दियों के दौरान मौसम सामान्यतः बहुत सूखा रहता है. हवा में नमी बेहद कम होती है. इस मौसम में जब पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) के कारण प्राकृतिक बारिश होती है, तो क्लाउड सीडिंग की जरूरत ही नहीं होती.” उन्होंने आगे कहा कि “अगर क्लाउड सीडिंग के दौरान भारी बारिश हो गई और उससे जन-धन का नुकसान हुआ — चाहे वह सीडिंग से संबंधित न भी हो. तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? हमें ऐसे ‘सिल्वर बुलेट’ उपायों जैसे स्मॉग टॉवर, स्मॉग गन और क्लाउड सीडिंग की जगह वास्तविक स्रोतों से उत्सर्जन घटाने पर ध्यान देना चाहिए.”
'कॉस्मेटिक उपाय नहीं, असली समाधान चाहिए'– EnviroCatalysts
थिंक टैंक ‘एनवायरोकैटालिस्ट्स’ के संस्थापक और प्रमुख विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए परिवहन, ऊर्जा और निर्माण जैसे क्षेत्रों से उत्सर्जन पर नियंत्रण जरूरी है. “कॉस्मेटिक उपाय (Cosmetic Measures) केवल कुछ समय के लिए दृश्यता बढ़ाते हैं, लेकिन स्थायी समाधान नहीं देते. हमें राज्यों और एजेंसियों के बीच समन्वित ‘एयरशेड-बेस्ड’ नीति की जरूरत है जो वास्तविक प्रदूषण स्रोतों पर वार करे.”
“क्लाउड सीडिंग तब ही फायदेमंद जब नमी की कमी हो”- पर्यावरण कार्यकर्ता
पर्यावरण कार्यकर्ता भावरीन कंधारी ने कहा कि “क्लाउड सीडिंग तभी असरदार होती है जब वातावरण में नमी की कमी हो और वर्षा की स्थिति सीमित हो. लेकिन इस बार आसमान में पहले से पर्याप्त नमी थी और पश्चिमी विक्षोभ से प्राकृतिक बारिश की संभावना भी थी. ऐसे में यह प्रयोग प्रकृति के पहले से तैयार मौसम पर खर्चा करने जैसा है.”“साफ हवा कृत्रिम बारिश से नहीं आएगी, बल्कि उत्सर्जन घटाने, धूल नियंत्रण और ठोस नीतियों से मिलेगी. क्लाउड सीडिंग सिर्फ महंगा प्रयोग है, समाधान नहीं.”
IIT कानपुर का दावा - 'सीमित नमी में भी हवा सुधरी'
हालांकि, आईआईटी कानपुर का कहना है कि भले ही बारिश नहीं हुई, लेकिन प्रयोग से महत्वपूर्ण डेटा मिला है. दिल्ली भर में लगाए गए मॉनिटरिंग स्टेशनों ने PM2.5 और PM10 में 6 से 10 प्रतिशत की कमी दर्ज की. संस्था ने कहा कि सीमित नमी की स्थिति में भी क्लाउड सीडिंग से हवा की गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव देखा गया.





