स्टूडेंट्स को DU क्यों पढ़ाना चाहता है मनुस्मृति और बाबरनामा का पाठ? विरोध के बाद फिर पलटा फैसला
दिल्ली यूनिवर्सिटी ने BA. हिस्ट्री सब्जेक्ट के सिलेबस में मनुस्मृति और बाबरनामा विषयों को शामिल करने के अपने फैसले को वापस ले लिया है. यूनिवर्सिटी के टीचर्स द्वारा विरोध के बाद ये फैसला लिया गया. इसकी पुष्टि खुद वाइस चांसलर योगेश सिंह ने मंगलवार को की और कहा कि फिलहाल इन्हें शामिल करने की कोई योजना नहीं है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी ने 19 फरवरी 2025 को BA हिस्ट्री के सिलेबस में बदलाव करने का फैसला लिया था. सिलेबस में मनुस्मृति और बाबरनामा को जोड़ा जाने वाला था. लेकिन इसपर यूनिवर्सिटी टीचर्स ने ही काफी विरोध जता दिया. जिसके बाद इस फैसले को वापस लेना पड़ा और अब सिलेबस में ये दो भाग नहीं जोड़े जाएंगे. आपको बता दें कि सिलेबस में इन दो विषयो को जोड़ने का प्रपोसल ज्वाइंट कमेटी द्वारा लिया गया था.
इस संबंध में DU के वाइस चांसलर योगेश सिंह ने मंगलवार को साफ करते हुए कहा कि अब इन दो सब्जेक्ट्स को पढ़ाने की यूनिवर्सिटी की कोई योजना नहीं है. उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी ऐसी कोई भी मैटीरियल को सिलेबस में शामिल नहीं करेगा जो देश को विभाजित करती है. इसकी बजाए ऑप्शनल सब्जेक्ट्स की तलाश की जाएंगी.
टीचर्स के विरोध के बाद बदला फैसला
वहीं जब ज्वाइंट कमेटी की ओर से ये प्रपोसल पेश किया गया तो इसपर यूनवर्सिटी की फैकल्टी ने ही काफी विरोध जताया था. जानकारी के अनुसार एसोसिएट प्रोफेसर ने वाइस चांसलर को इस फैसले पर दोबारा विचार करने के लिए एक पत्र भी लिखा था और कहा था मनुस्मृति जाति आधारित भेदभाव और उत्पीड़न को प्रमोट करती है. इसलिए यह भारतीय संविधान के समानता के अधिकार के खिलाफ है. बाबरनामा को लेकर उन्होंने कहा था कि यह ऐसे आक्रमणकारी का महिमामंडन करता है, जिसने पूरे देश में लूटपाट की. आपको बता दें कि यूनवर्सिटी के हर टीचर्स ने इसका विरोध नहीं किया है. कुछ ऐसे भी हैं जो इसका सपोर्ट कर रहे हैं. सपोर्ट करने वाले टीचर्स का कहना है कि ये स्टूडेंट्स के लिए जरूरी भी है.
पहली बार नहीं पेश किया प्रस्ताव
ऐसा पहली बार नहीं जब ऐसा प्रपोसल रखा गया हो. पिछले साल भी मनुस्मृति पढ़ाने का प्रस्ताव आया था. उस दौरान इसे लॉ सब्जेक्ट के सिलेबस में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया था. उस दौरान भी विरोध हुआ था. जिसके बाद यूनिवर्सिटी ने इसे वापस लिया.