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हर सोनिका यादव यूं ही घर बैठे महिलाओं-पुलिस की ‘रोल-मॉडल’और ‘अ-जन्मे’ गर्भस्थ शिशु की अजूबी ‘मां’ नहीं बन जाती!

दिल्ली पुलिस की कॉन्स्टेबल सोनिका यादव ने 7 महीने की प्रेग्नेंसी में 145 किलोग्राम वज़न उठाकर ऑल इंडिया पुलिस पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में ब्रॉन्ज मेडल जीता. जबकि आमतौर पर गर्भवती महिलाओं को चलने तक में सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है. सोनिका की यह कहानी सिर्फ फिटनेस या रिकॉर्ड की नहीं बल्कि जज़्बे, मेडिकल गाइडेंस, परिवार के सहयोग और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी है. जानिए कैसे उन्होंने डॉक्टरों की निगरानी में दुनिया को चौंकाने वाला कमाल कर दिखाया.

हर सोनिका यादव यूं ही घर बैठे महिलाओं-पुलिस की ‘रोल-मॉडल’और ‘अ-जन्मे’ गर्भस्थ शिशु की अजूबी ‘मां’ नहीं बन जाती!
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Published on: 2 Nov 2025 12:19 PM

अमूमन दुनिया में जब भी कोई महिला गर्भवती होती है. तो सुरक्षि प्रसव होने तक जच्चा-बच्चा की हिफाजत में घर के जवान से लेकर बूढ़े तक दिन-रात जुटे रहते हैं. ताकि जाने-अनजाने कहीं मामूली सी चूक भी मां और शिशु को जानलेवा न बन जाए. इन अहतियाती कदमों में सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है कि गर्भवती महिला न तेज चाल से चले, न सीढ़ियां उतरे. और वजन उठाने का काम तो कतई भी न करके.

क्योंकि इन सभी कामों से मां और महिला के गर्भ में पल रहे शिशु की जान तक का खतरा हो सकता है. चलिए यह तो रही वह बात जो जमाने में अब तक हमने आपने सबने देखी सुनी है. स्टेट मिरर हिंदी मगर इसके एकदम उलट वह और एक ऐसी महिला की कहानी आपको पढ़वा रहा है. जिसने इन तमाम एहतियाती इंतजामों की तरफ से आंख मूंदकर, कुछ ऐसा करिश्मा कर दिखाया है, जिसे देख, सुन और पढ़कर, पहली बार में शायद किसी को विश्वास न हो. चौंकाने वाला और घट चुका सत्य मगर वही है जिसका जिक्र यहां हम कर रहे हैं.

कौन हैं सोनिका यादव?

अब यह बेहद जोखिमपूर्ण मगर हैरतंगेज और अब सफल माना जा रहा करिश्मा कर दिखाया है 31-32 साल की सोनिका यादव ने. सोनिका यादव दिल्ली पुलिस में महिला-सिपाही के पद पर साल 2014 में भर्ती हुई थीं. वे पढ़ाई लिखाई के दिनों में कबड्डी खिलाड़ी थीं. उन्हें पता चला कि भारत के पुलिस विभाग (दिल्ली पुलिस में विशेषकर) अब “महिला-पावर-लिफ्टिंग” खेल को भी मान्यता मिल गई है. लिहाजा उन्होंने कुछ साल पहले कबड्डी को अलविदा कहकर खुद को ‘महिला पुलिस पावर लिफ्टिंग’ गेम की ओर मोड़ दिया.

“स्टेट मिरर हिंदी” के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से 29 अक्टूबर 2025 को दिल्ली पुलिस मुख्यालय में लंबी ‘एक्सक्लूसिव’ बातचीत में मनमौजी कहूं या फिर महिला-महाबली खिलाड़ी सोनिका ने कहा, “खेल में रुचि तो बचपन से ही थी. किस खेल में गंभीरता से आगे भविष्य बनेगा, इस सवाल के जवाब को लेकर असमंजस की स्थिति लंबे समय तक बनी रही. पढ़ाई लिखाई के दौरान कबड्डी में गई. वहां देखा कि वह टीम गेम है. जिसमें भीड़ है. आपका अपना निजी और अलग से कुछ नहीं है. टीम हारी तो सब हारे. टीम जीती तो सब जीते. मतलब, टीम में कौन कितनी ज्यादा मेहनत कर रहा है. या कौन कितना घटिया खेल रहा है. सब छिप जाता है. किसी में अगर दमखम है तो उसे अकेला गेम चुनना चाहिए. बस इसीलिए मैंने कबड्डी छोड़कर, कुछ अलग करने के इरादे से पावर लिफ्टिंग चुन लिया. दिन-रात जी-तोड़ मेहनत की...और अब इसमें हार भी मेरी जीत भी मेरी. पावर लिफ्टिंग में मुझे जो हासिल होगा वह जमाने और मेरी नजर में सिर्फ और सिर्फ मेरा होगा.”

बन चुकी हैं ‘रोल-मॉडल’

यह तो बात रही सोनिका यादव के खेल-जीवन के शुरुआती दौर की. इसके बाद दिल्ली पुलिस में सिपाही बनीं तो वहां उनके खेल की ललक के हिरन ने कुलाचें मारना शुरु कर दिया. इस कूद को परवान चढ़ाने में जहां सोनिका यादव के मायके-ससुराल वालों ने आंख मूंदकर कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया, वहीं दिल्ली पुलिस ने भी सोनिका के लिए हर-संभव वह सुविधा देने में कभी कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी, जो महिलाओं को आगे बढ़ाने में मील का पत्थर साबित हो सके.

नतीजा आज जमाने के सामने मौजूद है. जिस इंसानी दुनिया और जिस भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में गर्भवती को सास मां, डॉक्टर या समझदार लोग धीरे-धीरे पांव रखकर चलने, सीढ़ियां न चढ़ने, कोई भारी वजन न उठाने देने की सलाह देते न थकते हों, उसी आजाद भारत में आज दिल्ली पुलिस और देश की महिलाओं की ‘रोल-मॉडल’ बन चुकी सोनिका यादव ने, 7 महीने के गर्भ में भी 145 किलोग्राम वजन उठाकर, न केवल मेडल (पदक) जीता. उन्होंने यह भी साबित कर दिया कि इंसान का जज्बा अगर मजबूत, सही मार्ग और दिशा-निर्देशन हो तो सृष्टि को रचने में अहम भूमिका निभाने वाली लड़की-महिला-स्त्री फिर कुछ भी कर सकती है.

ससुराल मायके का मिला सपोर्ट

‘स्टेट मिरर हिंदी’ के एक सवाल के जवाब में सोनिका बोलीं, “मैं मध्यम वर्गीय परिवार से हूं. मूल रूप से तो मेरा परिवार उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले का रहने वाला था. पिताजी चूंकि दिल्ली नगर निगम में सर्विस करते थे. जिनकी साल 2015 में मृत्यु हो चुकी है. पापा परिवार को लेकर दिल्ली आ गए थे. मेरा जन्म दिल्ली का ही है. मेरा परिवार कोई बहुत ज्यादा हाईफाई या फूं-फां वाला नहीं रहा है. मैंने जबसे होश संभाला तभी से देखा कि हम भाई-बहनों को माता-पिता और परिवार की परिस्थिति के मद्देनजर जिंदगी में अपने पांवों पर खड़े होने के लिए खुद ही बहुत मेहनत-मशक्कत करनी होगी. यही वजह रही कि मैंने हमेशा लंबा और कठिन रास्ता अपने सुरक्षित भविष्य के लिए चुना. ताकि शार्टकट चलने के फेर में फंसकर मैं या मेरा भविष्य कहीं किसी गलत दिशा में न मुड़ जाए. मेहनत की तो दिल्ली पुलिस में सिपाही बन सकी. ससुराल मायके का खुला सपोर्ट मिला तो, आज इस उम्र में 8 साल के बच्चे की मां बनने के बाद, अब आंध्र प्रदेश में आयोजित पुलिस पावर लिफ्टिंग कंपटीशन में 145 किलोग्राम वजन उठाकर मेडल भी मेहनत और परमात्मा ने दिलवाया.”

कुछ सकारात्म पाने की जिद में आप किसी भी हद को पार जाने के लिए तैयार रहती हैं. फिर चाहे वह दिल्ली पुलिस में नौकरी हो या फिर कबड्डी का खेल छोड़कर, पावर लिफ्टिंग में किस्मत आजमाकर, उसमें भी झंडे गाड़कर देश और दुनिया की महिलाओं के लिए मिसाल कायम कर डालने की बात हो. आपने हाल में आंध्र प्रदेश में आयोजित पुलिस पावर लिफ्टिंग कंपटीशन में 7 महीने के गर्भ से होने के बाद भी इतना जोखिम भरा कदम उठाने की कैसे सोच ली. वह कदम जिसमें आप यानी मां और आपके गर्भ में पल रहे 7 महीने के शिशु को जानलेवा मुसीबत खड़ी होने की प्रबल संभावनाएं थीं? स्टेट मिरर हिंदी के हर सवाल का क्रमवार सलीके से जवाब देते हुए दिल्ली पुलिस की बहादुर सिपाही और अब देश दुनिया की महिलाओं की रोल मॉडल बन चुकी सोनिका यादव बोलीं,

“सर इंसान अगर ठान ले कि उसे फलां गोल एचीव करना है. तो उसे कुछ भी पाना असंभव नहीं है. मैंने कबड्डी छोड़कर पावर लिफ्टिंग में जो पाने की सोची मिल गया. यह क्रम निरंतर अभी आगे भी जारी रखने की ईमानदार कोशिश रहेगी. जहां तक बात ब्रॉन्ज मेडल जीतने की खातिर 7 महीने के गर्भ में मौजूद शिशु और अपनी जान की बाजी लगा देने का सवाल है. तो ऐसा नहीं है. बेशक इस परिस्थिति में हर महिला को बेहद सजग रहना चाहिए. मैं मेरे पति, मायका और ससुराल भी मेरे साथ गुजर रही परिस्थिति को लेकर बहुत सतर्क थे और आज भी हैं.

डॉक्टर से संपर्क में रही

दरअसल, मैंने बेशक क्यों न इस प्रतियोगिता में 145 किलोग्राम वजन उठाकर, 7 महीने के गर्भधारण अवधि में मेडल जीता हो. मगर मैंने हिस्सा 84 किलोग्राम वजन की प्रतियोगिता में ही लिया था. यह तो शरीर और परमात्मा ने साथ दिया जो 84 किलोग्राम वर्ग की प्रतियोगिता में भी 145 किलोग्राम वजन उठा सकी. ऐसा नहीं है कि यह सब मैंने या मेरे परिवार ने आंख मूंदकर अंजाम दे डाला था. इसके लिए मैं शुरू से अब तक बाकायदा महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के संपर्क में रही. जैसा मुझे उन्होंने गाइड किया उससे सूत भर भी मैंने या मेरे परिवार ने कोई कदम नहीं उठाया. क्योंकि सबको मेरी और मेरे गर्भ में पल रहे 7 महीने के भ्रूण-शिशु के सुरक्षित जीवन की चिंता सर्वोपरि थी.”

इन दिनों दिल्ली पुलिस की कम्युनिटी-पुलिसिंग विंग में नियुक्त सोनिका यादव बताती हैं, “बात जब मेरे अपने और गर्भ में पल रहे शिशु के जीवनया फिर मेडल या खेल में से किसी को चुनने की आती तो जाहिर सी बात है कि ऐसी विषम घड़ी में मैं अपने और शिशु के जीवन को सुरक्षित रखना पहले चुनती. चूंकि मैं शुरू से ही डॉक्टरों की निगरानी में थी. खुद भी बहुत सतर्क थी. इसीलिए मैंने केवल 85 किलोग्राम वर्ग प्रतियोगिता में ही अपनी हिस्सेदारी पंजीकृत करवाई था. प्रतियोगिता में जब मुझे लगा कि नहीं मैं आराम से बिना खुद को और अपने गर्भ में मौजूद शिशु को कोई नुकसान पहुंचाए, ज्यादा वजन भी उठा सकती हूं. तो मैंने ईमानदार मगर बेहद सुरक्षित कोशिश की. जो कामयाब रही.”

जब आंध्रा में आयोजित पुलिस पावर लिफ्टिंग मीट में आपके ‘बेबी-बंप’ को मौजूद लोगों ने देखा तब क्या प्रतिक्रियाएं देखने-सुनने को मिलीं...? पूछने पर सोनिका यादव बोलीं- ‘पहले तो मैने इतने लूट कपड़े पहने हुए थे कि किसी को अंदाजा-भनक तक न लग सके. जब एकदम नौबत किट के साथ पार्टिशिपेशन की आई तो मौजूद अधिकारियों को अपने बारे में सबसे पहले बताया. उसके बाद किट में जब मेरे बेबी-बंप को मौजूद मेहमानों और प्रतियोगियों ने देखा, तो वे भौचक्के रह गए. विशेषकर कई महिला कोच और महिला प्रतियोगी हैरान थीं. वे मुझे संभल कर एहतियात के साथ वजन उठाने का सकारात्मक सोच वाला मश्विरा देने लगीं. मैंने उन सबकी बात को ध्यान से सुना और सबको आश्वस्त किया कि, उसी हद तक प्रतियोगिता में वजन उठाऊंगी जो मुझे और गर्भस्थ शिशु को किसी भी तरह से नुकसानदेह साबित न हो. हां, यह मैने भी नहीं सोचा था कि मेरे द्वारा आंध्र प्रदेश में आयोजित पुलिस पावर लिफ्टिंग में मैं 145 किलोग्राम तक का वजन उठा पाऊंगी. मैं तो देश दुनिया की महिलाओं के लिए यही कहूंगी कि ऐसी स्थिति-परिस्थिति में डर नहीं समझदारी और बेहतर चैकित्सिकीय मार्ग-दर्शन ही सर्वोपरि है. जोश में होश खोने से नुकसान के चांसेज बहुत ज्यादा बढ़ सकते हैं.’

बच्चे को डेडिकेट किया मेडल

हाल ही में 13 से 17 अक्टूबर 2025 तक आंध्र प्रदेश में आयोजित सेकेंड ऑल इंडिया पुलिस वेट-लिफ्टिंग क्लस्टर प्रतियोगिता (2nd All India Police Weight-Lifting Cluster Competition in Andhra Pradesh) में दुनिया को दहला देने वाला रिकॉर्ड बनाकर दिल्ली वापिस लौटीं सोनिका यादव कहती हैं, “प्रतियोगिता के दौरान जब मेरे पति अंकुर बाना ने बेंच-प्रेस के बाद मेरी मदद की तब भी किसी को जरा भी संदेह नहीं हुआ था कि मैं 7 महीने के गर्भ से हूं. सच्चाई तब सामने आ गई जब मैंने अपना अंतिम डेडलिफ्ट (145 किलोग्राम वजन) पूरा किया. तब दर्शकों ने तालियां बजाकर जिस तरह से मेरा दिल्ली पुलिस और मेरे पति को नजर में रखकर जोर जोर से उत्साहवर्धन किया. वह यादगार-अमिट है. मैं कह सकती हूं कि परमात्मा, पति, दिल्ली पुलिस, परिवार के सहयोग से मैंने ब्रॉन्ज मेडल का जो गिफ्ट अपने गर्भ में मौजूद 7 महीने के गर्भस्थ शिशु को दिया है, एक मां एक महिला होने के नाते अब अपनी तमाम उम्र मैं ऐसा यह यादगार गिफ्ट शायद कभी किसी को न दे सकूं. यह मेरी तरफ से परमात्मा की असीम कृपा और दिल्ली पुलिस के यादगार सहयोग से यह मेरे गर्भस्थ उस शिशु को लिए जिसने दुनिया में आकर आंखें तक नहीं खोली हों सबसे कीमती तोहफा है एक मां की तरफ से “अ-जन्मी” संतान के लिए.”

इस अविस्मरणीय मगर जिंदगी और मौत के बीच झूलती यादगार सुनहरी सफलता के लिए सोनिका यादव अंतरराष्ट्री वेटलिफ्टर लूसी मॉर्टिन्स को भी श्रेय देने से चूकना नहीं चाहती हैं. बकौल सोनिका यादव, “जैसे ही मुझे पता चला कि मैं गर्भ से हूं और पावर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में भी मेरा हिस्सा लेने का बहुत मन है. तो सोशल मीडिया के जरिए मैं इंटरनेशनल फेम वेटलिफ्टर लूसी मार्टिन्स के संपर्क में पहुंची. जो खुद भी गर्भावस्था के दौरान इस तरह की प्रतियोगिताओं में पहले हिस्सा ले चुकी हैं. उनका मोटीवेशन और मार्गदर्शन भी मेरी इस सफलता का हिस्सेदार है.”

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