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अगर मैरिड लाइफ में किया इंटरफेयर तो गर्लफ्रेंड को पड़ेगा भारी, पत्नी को देना पड़ सकता है हर्जाना: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम सिविल मामले में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी तीसरे पक्ष के कारण विवाह में हस्तक्षेप करने पर दंपत्ति के बीच के अधिकारों की हानि के लिए सिविल मुकदमा दायर किया जा सकता है. पत्नी ने अपने पति के प्रेम संबंधी साथी के खिलाफ “एलियनशन ऑफ अफेक्शन” का दावा किया था और हाईकोर्ट ने इसे मान्य ठहराया

अगर मैरिड लाइफ में किया इंटरफेयर तो गर्लफ्रेंड को पड़ेगा भारी, पत्नी को देना पड़ सकता है हर्जाना: दिल्ली हाईकोर्ट
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( Image Source:  AI SORA )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 21 Sept 2025 2:10 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम सिविल मामले में स्पष्ट किया कि यदि किसी शादीशुदा जीवन में कोई तीसरा पक्ष जानबूझकर और गलत तरीके से हस्तक्षेप करता है, तो उसे कानूनी रूप से जवाबदेह ठहराया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि पत्नी अपने पति के प्रेमी या प्रेमिका के खिलाफ सिविल मुकदमा दायर कर हर्जाना मांग सकती है.

इस निर्णय में “स्नेह के अलगाव” (Alienation of Affection) की अवधारणा पर चर्चा की गई और इसे मान्यता दी गई, ताकि विवाहिक संबंधों में हस्तक्षेप करने वाले तीसरे पक्ष को कानूनी तौर पर जिम्मेदार ठहराया जा सके.

क्या है मामला?

मामले में पत्नी ने आरोप लगाया कि उसका पति और उसकी प्रेमिका जानबूझकर विवाहिक संबंधों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जिससे उसके पति का प्यार और सहारा उससे दूर हुआ. पति ने कथित रूप से तीसरे पक्ष के साथ खुलकर सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होना शुरू कर दिया और पत्नी को सभी के सामने से अपमानित किया. इसके बाद पति ने तलाक की अर्जी भी दी. इसी के चलते पत्नी ने सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया, जिसमें पति को प्रतिवादी क्रमांक दो और प्रेमिका को प्रतिवादी क्रमांक एक बनाया गया.

सिविल हानि और तीसरे पक्ष की जिम्मेदारी

कोर्ट ने कहा कि अगर कोई तीसरा पक्ष जानबूझकर और गलत तरीके से विवाहिक संबंधों में हस्तक्षेप करता है, जिससे किसी पति-पत्नी के बीच के प्रेम में कमी आती है, तो उसे इस हानि के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. न्यायमूर्ति पुरुशैन्द्र कुमार कौरव ने कहा कि पति-पत्नी को विवाहिक संबंध, स्नेह और साथ का एक संवैधानिक अधिकार प्राप्त है और कोई भी तीसरा व्यक्ति जानबूझकर इस संबंध में बाधा डालने का काम नहीं कर सकता. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी पति या पत्नी का व्यवहार पूरी तरह से स्वेच्छा और स्वतंत्रता पर आधारित है, तो तीसरे पक्ष की जिम्मेदारी उस स्थिति में नहीं बनती. इसलिए, अगर विवाहिक साथी ने स्वयं निर्णय लिया और तीसरे पक्ष से प्रभावित नहीं हुआ, तो उस स्थिति में कोई सिविल कार्रवाई नहीं हो सकती.

एलियनशन ऑफ अफेक्शन: नया कानूनी दृष्टिकोण

हाईकोर्ट ने माना कि भारत में एलियनशन ऑफ अफेक्शन का अधिकार कानून में साफ तौर से मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन यह एंग्लो-अमेरिकन कॉमन लॉ से लिया गया 'हार्ट-बाल्म' टॉर्ट्स के श्रेणी का हिस्सा है. कोर्ट ने कहा कि हालांकि इस तरह का मुकदमा दुर्लभ है, फिर भी इसे दायर किया जा सकता है और इसे मुआवजे के रूप में न्यायिक राहत दिलाने के लिए स्वीकार्य माना जा सकता है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह सिविल मुकदमा पारिवारिक कानून के तहत दायर तलाक या अलगाव के मुकदमों से अलग है, क्योंकि इसमें तीसरे पक्ष की तटस्थ नागरिक हानि का मामला है. चाहे तथ्यात्मक रूप से तलाक के मामले से कुछ मेल खाता हो, सिविल अदालत इसे सुन सकती है और मुकदमे की स्वीकार्यता को खारिज नहीं किया जा सकता.

निजता और नागरिक हानि के बीच संतुलन

कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, जे़सेफ शाइन मामले में अडल्ट्री को आपराधिक अपराध से मुक्त कर दिया गया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तीसरे पक्ष के नागरिक दायित्व समाप्त हो गए. निजी स्वतंत्रता के दायरे में रहने वाले विवाहेतर संबंधों के भी सिविल परिणाम हो सकते हैं, जिनमें मुआवजे का दावा किया जा सकता है.

पत्नी के लिए नया अधिकार

इस फैसले ने भारतीय न्याय व्यवस्था में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, जहां पत्नी अब अपने पति के तीसरे पक्ष से हस्तक्षेप पर सिविल मुकदमा दायर कर सकती हैं. हाईकोर्ट ने यह साफ किया कि एलियनशन ऑफ अफेक्शन एक मान्य सिविल दावा है और इसे सिविल अदालत में दायर किया जा सकता है. इससे विवाहिक अधिकारों की सुरक्षा और तीसरे पक्ष के जिम्मेदारी के बीच संतुलन स्थापित होता है.

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