कौन था एक करोड़ का इनामी नक्सली नरसिम्हा, जिसकी मौत से हिला पूरा संगठन? माओवादियों का था 'टेक ब्रेन'
छत्तीसगढ़ के बीजापुर में मुठभेड़ में नक्सली कमांडर टीएलएन चलाम उर्फ सुधाकर मारा गया. 66 वर्षीय सुधाकर CPI (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी का तकनीकी मास्टरमाइंड और वैचारिक ट्रेनर था. उसने RePoS जैसे स्कूलों से कैडर को प्रशिक्षित किया. उसकी मौत माओवादी संगठन के वैचारिक व तकनीकी ढांचे पर बड़ा आघात मानी जा रही है.

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जंगलों में हुई मुठभेड़ में नक्सली कमांडर टीएलएन चलाम उर्फ सुधाकर की मौत ने भारत के सशस्त्र विद्रोह की एक लंबी वैचारिक यात्रा का अंत कर दिया. 66 वर्षीय सुधाकर सिर्फ एक फील्ड ऑपरेटिव नहीं था, वह माओवादियों की वैचारिक रीढ़ और तकनीकी सोच का केंद्र था. उसकी मृत्यु सुरक्षा बलों के लिए न सिर्फ एक ऑपरेशनल सफलता है, बल्कि माओवादी विचारधारा के एक मजबूत स्तंभ के गिरने जैसा है.
सुधाकर CPI (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी का सदस्य था और संगठन के तकनीकी विभाग की कमान संभालता था. वह दंडकारण्य क्षेत्र में रीजनल पॉलिटिकल स्कूल (RePoS) का संचालन करता था, जहां कैडरों को वैचारिक और रणनीतिक शिक्षा दी जाती थी. उसके ज़रिए पार्टी ने एक नई पीढ़ी को वैचारिक रूप से तैयार किया जो सिर्फ बंदूक चलाना नहीं, बल्कि विचारों की लड़ाई भी लड़ सके.
मेडिकल छात्र से क्रांतिकारी बनने की कहानी
सुधाकर का जन्म आंध्र प्रदेश के प्रागदावरम गांव में एक वेलामा परिवार में हुआ था. उसने एलुरु में पढ़ाई की और आयुर्वेदिक मेडिसिन का कोर्स जॉइन किया, लेकिन वामपंथी साहित्य और आंदोलनों से प्रभावित होकर पढ़ाई छोड़ दी. 1986 में वह पीपुल्स वॉर ग्रुप में शामिल हुआ और जल्द ही उसका जीवन जंगलों और विचारधारा के बीच सिमट गया.
पहली बार जनता के सामने
सुधाकर को पहली बार 2004 में उस वक्त देखा गया जब आंध्र प्रदेश सरकार और माओवादियों के बीच शांति वार्ता हो रही थी. हैदराबाद में हुई वार्ता में सुधाकर ने भाषण भी दिया और गुत्तीकोंडा बिलम की जनसभा में भाग लिया. लेकिन यह सार्वजनिक जीवन लंबा नहीं चला. बातचीत टूटते ही वह फिर से अंडरग्राउंड हो गया और मध्य भारत के जंगलों में वापसी कर ली.
मध्य भारत में बिछाया नेटवर्क
2007 से सुधाकर ने माड क्षेत्र में RePoS और MoPoS जैसे वैचारिक ट्रेनिंग मॉडल्स विकसित किए. साथ ही वह संचार तंत्र और उपकरण लॉजिस्टिक्स का भी मुख्य प्रभारी बन गया. GPS, वॉकी-टॉकी, डेटोनेटर सिस्टम और जंगली इलाकों में ऑपरेशनल मैपिंग जैसे क्षेत्रों में उसकी पकड़ ने उसे संगठन का 'टेक ब्रेन' बना दिया था.
पत्नी भी है नक्सली
सुधाकर की पत्नी ककरला गुरु स्मृति उर्फ उमा भी माओवादी आंदोलन में उतनी ही सक्रिय रही. वह दंडकारण्य क्षेत्र की राज्य समिति की सदस्य थी. पति-पत्नी दोनों ने माओवादी मूवमेंट को एक वैवाहिक साझेदारी से आगे बढ़ाकर वैचारिक साझेदारी में तब्दील कर दिया था, जो संगठन के अंदर एक दुर्लभ मिसाल है.
कितने मामले थे दर्ज?
सुधाकर पर आंध्र प्रदेश और ओडिशा में कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. इनमें मुठभेड़, विस्फोट और आयुध कानूनों के उल्लंघन से जुड़े केस शामिल थे. बल्लुनिरि मुठभेड़, मलकानगिरी के विस्फोट, और कोरापुट में घात लगाकर किए गए हमलों में उसका नाम दर्ज है. उस पर सरकार की ओर से 50 लाख रुपए का इनाम घोषित था.
विचारों की लड़ाई में खाली हुआ एक मोर्चा
सुधाकर की मौत एक रणनीतिक जीत जरूर है, लेकिन यह माओवादियों के भीतर वैचारिक और तकनीकी शून्यता भी पैदा कर सकती है. वह विद्रोह का सिर्फ संचालनकर्ता नहीं था, बल्कि उसका दर्शन, मार्गदर्शन और नवाचार भी था. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, उसका जाना राजनीतिक प्रशिक्षण और लॉजिस्टिक नेटवर्क दोनों में एक स्थायी कमी छोड़ सकता है.