बिहार में पसमांदा मुसलमान किसके साथ? किसका दावा सबसे ज्यादा मजबूत, क्या बिगड़ेगा RJD का 'MY' समीकरण?
देश के अन्य हिस्सों की तरह बिहार में भी मुसलमान मूल रूप से अशराफ, अजलाफ और अरजाल में बंटे हुए हैं. कुल मुस्लिम आबादी में 72 प्रतिशत से ज्यादा पसमांदा मुसलमान हैं. साल 2020 के बाद से मुसलमान मतदाता जेडीयू से नाराज हैं. इसके बावजूद एनडीए के नेताओं का दावा है कि मुस्लिम मतदाता इस बार उन्हीं का समर्थन करेंगे. ऐसा इसलिए कि एनडीए सरकार ने गरीब मुसलमानों के लिए बहुत काम किया है.

बिहार में इस बार सियासी माहौल और एजेंडा पहले की तुलना में तक बदला हुआ है. हालांकि, जाति का तड़का इस बार भी चरम पर है, लेकिन इस बार इसका असर मुसलमानों में देखने को ज्यादा मिल रहा है. एनडीए के नेताओं का कहना है कि इस बार एमवाई फार्मूला बिहार में ध्वस्त होने के कगार पर है. इसके जवाब में इंडिया गठबंधन के नेताओं का पलटकर यही सवाल होता है कि नीतीश कुमार 20 साल से बिहार में सीएम हैं, लेकिन उन्होंने बिहार का कितना भला किया? आज भी बिहार में बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, गरीबी, अल्पसंख्यक कल्याण का मुद्दा हाशिए पर है. नीतीश कुमार या एनडीए वालों के पास इसका जवाब नहीं है. ऐसे में वो किस मुंह से दावा करते हैं कि मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका एनडीए को वोट करेगा?
आरजेडी सहित इंडिया गठबंधन के नेताओं ने बीते सप्ताह पटना के गांधी मैदान में मुस्लिम मतदाताओं को भारी संख्या में जुटाकर यह साबित करने की कोशिश की कि देख लो एनडीए वालों, बिहार का सियासी माहौल कैसा है? उसके बाद बीजेपी ने भी पसमांदा मुसलमानों को विशाल सम्मेलन कर 80 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं पर अपना दावा ठोक दिया. अब अहम सवाल यह है कि पसमांदा मुसलमान किसके साथ हैं, किसका दावा सबसे ज्यादा मजबूत है? जानें इस सवाल के जवाब में क्या कहते हैं अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता.
मुस्लिम मतदाताओं की बदली सोच, अब BJP को करेंगे वोट - गुरु प्रकाश पासवान
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गुरु प्रकाश पासवान का कहना है कि मुसलमानों ने खुद के सामुदायिक और देश के हितों को लेकर पिछले 10 सालों के दौरान अपनी सोच बदली है. इंडिया गठबंधन वाले पहले की तरह मुगालते में ना रहे हैं. बीजेपी सरकार ने तीन तलाक, एलपीजी सिलेंडर, पीएम आवास, अल्पसंख्यक कल्याण व अन्य कई कार्यक्रमों के जरिए मुसलमानों को लाभ पहुंचाया है. मोदी सरकार और बिहार सरकार की योजनाओं को सबसे ज्यादा लाभ गरीब मुसलमानों को ही मिला है.
उन्होंने कहा कि बीजेपी ने दानिश अंसारी को बीजेपी ने मंत्री बनाया तो गुलाम अली खटाना को राज्यसभा से एमपी भी बनाया. विरोधी कहते हैं कि मुसलमानों का वोट बीजेपी इस बार भी नहीं मिलेगा, तो उन्हें रामपुर और आजमगढ़ के चुनाव परिणाम क्या रहे, इस पर गौर फरमाने की जरूरत है. फिर, बिहार में मुसलमानों के बीच बीजेपी की पकड़ पहले से ज्यादा मजबूत हुई हैं. चुनाव के बाद विरोधियों को पता चल जाएगा कि कौन किसके साथ है? बीजेपी सबका साथ सबका विकास के एजेंडे पर काम करने वाली पार्टी है. इसका असर आपको आगामी चुनाव में देखने को मिलेगा.
पसमांदा हों या अशराफ, बीजेपी की नहीं गलेगी दाल - नवल किशोर यादव
राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता नवल किशोर यादव ने यह पूछने पर कि इस बार बिहार में मुसलमान किसके साथ, खासकर पसमांदा मुसलमान? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी प्रदेश की जनता को इस नजरिए से नहीं देखती. हम लोग धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद में विश्वास रखते हैं. आरजेडी का नजरिया सभी के लिए समान है. लोगों को धर्म और जाति के आधार पर बांटना बीजेपी का काम है.
उन्होंने आगे कहा, 'बीजेपी वाले जिस तरह से उग्र हिंदूवाद की राजनीति करते हैं, जिसकी वजह से मुसलमान ही क्या, अन्य अल्पसंख्यक भी बीजेपी का अब साथ नहीं दे रहे हैं. फिर बीजेपी ने पिछले 10 साल से ज्यादा समय में जिस तरह की राजनीति की है, उससे साफ है कि मुसलमान इंडिया गठबंधन खासकर आरजेडी को ही हर बार की तरह इस बार भी साथ देंगे. चाहे वो पसमांदा हों या अशराफ. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए भी कि बिहार में धर्मांधता के लिए कोई जगह नहीं है. बिहार सामाजिक न्याय की पृष्ठभूमि वाला राज्य है. वहां के लोग प्रोग्रेसिव माइंडसेट के होते हैं, इसलिए बीजेपी की दाल इस बार भी नहीं गलेगी.
भुलावे न रहें RJD वाले, इस बार मुस्लिम मतदाता देंगे झटका- रंजन सिंह
लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रवक्ता रंजन सिंह का कहना है कि बिहार में मुसलमानों के लिए सबसे बड़ा त्याग किसी ने किया तो वो लोक जनशक्ति पार्टी है. याद कीजिए, बिहार विधानसभा चुनाव 2005 जब रामविलास पासवान की पार्टी के 29 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे. उस समय रामविलास पासवान ने लालू यादव से कहा था कि आप किसी मुसलमान को प्रदेश का सीएम बना दीजिए, मैं समर्थन देने के लिए तैयार हूं, लेकिन क्या हुआ, लालू यादव इसके लिए तैयार हुए, नहीं ना. तो फिर मुसलमानों का हित कौन चाहता है?
आरजेडी की उसी नीति का नतीजा है कि 2005 में आरजेडी की सरकार नहीं बनी. इतना ही नहीं, अभी तक आरजेडी सत्ता से दूर है. इस बार उसे मुसलमानों को वोट साल 2020 की तुलना बहुत कम मिलना तय है.
रंजन सिंह का दावा है कि बिहार के मुसलमानों में बड़ा तबका साइलेंट वोटर का है. एलजेपी जहां से भी चुनाव लड़ती है, वे लोग हमारी पार्टी का समर्थन करते हैं. मुसलमान वोट जेडीयू को भी मिलता आया है. इस बार बीजेपी को पहले की तुलना में ज्यादा वोट मिलेंगे. बीजेपी ने पिछले 10 साल में गरीब मुसलमानों के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है. यही वजह है कि एनडीए गठबंधन के लोग जो पसमांदा मुसलमानों के वोटों का दावा कर रहे हैं, उसमें दम है. इंडिया गठबंधन वाले इसे हल्के में लेकर अपना ही नुकसान कराएंगे.
मुस्लिम मतदाताओं के रुझान का इतिहास
साल 2019 के बाद से जेडीयू को मुस्लिम समर्थकों के कमी आई है. 2020 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनाव में जेडीयू का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया. जबकि साल 2005 और 2010 के चुनाव में नीतीश कुमार को जिताने में मुसलमानों ने अहम भूमिका निभाई थी. साल 2015 से बिहार के मुसलमान आरजेडी और कांग्रेस को वोट देते हैं. साल 2020 विधानसभा चुनाव में 76 प्रतिशत मुसलमानों ने महागठबंधन को वोट किया था.
मुसलमानों की स्थिति
बिहार सरकार ने जातिगत सर्वे 2023 के आंकड़े सार्वजनिक कर दिए हैं. सर्वे के मुताबिक बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ है. इसमें 81.99 फीसदी हिंदू और 17.70 फीसदी मुसलमान हैं. बिहार के पसमांदा मुसलमान राज्य की मुस्लिम आबादी का 72 फीसदी से अधिक हिस्सा हैं. ओबीसी या ईबीसी श्रेणियों में आते हैं. 14 फीसदी यादव और तीन फीसदी कुर्मी जाति से आने वाले मुख्यमंत्री पिछले 33 साल से शासन कर रहे हैं. यानी लालू और नीतीश के राज में भी मुसलमानों को भला नहीं हुआ तो फिर मुसलमान आरजेडी और जेडीयू को वोट क्यों करते हैं?
दरअसल, मुसलमान मूल रूप से तीन जाति समूहों में बंटे हुए हैं- 'अशराफ', 'अजलाफ', और 'अरजाल'. ये जातियों के समूह हैं, जिनमें अलग-अलग जातियां शामिल हैं. इस बार हिंदुओं में जैसे ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र वर्ण होते हैं, वैसे ही अशराफ़,अजलाफ़ और अरजाल को सियासी दलों के नेता बांटकर चल रहे हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में आरजेडी ने मुसलमान उम्मीदवारों को 16 टिकट दिए थे. कांग्रेस ने दस सीटें दी थी. जनता दल (यूनाइटेड) 101 सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन सिर्फ सात सीटों पर उसने मुसलमान उम्मीदवार खड़े किए थे.