बिहार में 17 पार्टियों ने ऐसा क्या किया कि चुनाव आयोग को लेना पड़ा एक्शन, जानें डिलिस्टिंग के नियम और कारण
बिहार में चुनावी गहमागहमी के बीच चुनाव आयोग ने 17 राजनीतिक पार्टियों को रजिस्ट्रेशन लिस्ट से हटा दिया है. इन पार्टियों को 10 दिन के अंदर आयोग की ओर से जारी नोटिस का जवाब देने को कहा गया है. ये कदम आयोग ने किस आधार पर उठाया, क्या ये पार्टियां अब चुनाव नहीं लड़ पाएंगी? जानिए डीलिस्टिंग के नियम और इन पार्टियों पर क्यों गिरी गाज.

बिहार मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच चुनाव आयोग ने 11 जुलाई को एक और ऑपरेशन को अंजाम दिया. मामला यह है कि पिछले कई वर्षों से गैर सक्रिय 17 राजनीतिक पार्टियों को एक साथ चुनाव आयोग ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. फिलहाल, इन पार्टियों को चुनाव आयोग ने डिलिस्ट कर नोटिस जारी किया है. ईसी ने जिन पार्टियों को नोटिस जारी की है, जमीन पर उसका कोई अस्तित्व नहीं है. न कोई चुनाव चिन्ह की मांग, न कोई उम्मीदवार का नामांकन, और न ही कोई गतिविधि. ऐसे में सवाल ये उठता है आखिर ऐसा क्या कर दिया इन पार्टियों ने कि देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक संस्थान को कड़ा कदम उठाना पड़ा?
निर्वाचन आयोग की ओर से यह नोटिस गैर मान्यता प्राप्त 17 सियासी दलों को जारी किया गया है. इसमें सभी 17 सियासी पार्टियों से 10 दिन में अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है.
क्यों जारी किया नोटिस? 10 दिन में मांगा जवाब
बिहार में चुनाव आयोग ने नोटिस जारी करने की वजह बताते हुए कहा कि इन सभी 17 दलों ने साल 2019 के बाद से अब तक कोई भी चुनाव नहीं लड़ा है. ये पार्टियां न तो चुनाव लड़ रही थीं और न ही सालाना रिपोर्ट्स व ऑडिटेड अकाउंट्स दाखिल कर रही थीं. आयोग ने स्पष्ट किया है कि सभी पंजीकृत (रजिस्टर्ड) राजनीतिक दलों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत विशेष लाभ और सुविधाएं दी जाती हैं. इसके बावजूद इन दलों ने बीते छह सालों में कोई भी चुनाव नहीं लड़ा. ऐसे में इन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा गया है कि क्यों ना इनके खिलाफ 'डीलिस्ट' करने की कार्रवाई अमल में लाई जाए? आयोग ने इन दलों से अनुरोध किया है कि आने वाली 21 जुलाई यानी करीब 10 दिन में अपना जवाब दें.
किन 17 पार्टियों पर हुई कार्रवाई?
इन 17 पार्टियों की लिस्ट में क्षेत्रीय, जातीय और धार्मिक आधार पर बनी कई छोटी राजनीतिक इकाइयां शामिल हैं, जिनका राजनीतिक प्रभाव बहुत सीमित है. हालांकि, आयोग ने अभी तक विस्तृत सूची सार्वजनिक नहीं की है, लेकिन इनमें कुछ वे पार्टियां हैं जो 5-10 साल पहले तक चुनावी मैदान में नजर आ चुकी हैं.
क्या हैं डीलिस्टिंग के नियम?
चुनाव आयोग के मुताबिक हर पंजीकृत पार्टी को सालाना रिपोर्ट, ऑडिटेड अकाउंट्स और आईटीआर जमा करनी होती है.यदि पार्टी 6 साल या अधिक समय तक कोई भी विधानसभा या लोकसभा चुनाव नहीं लड़ती, तो उसे निष्क्रिय माना जा सकता है।
अगर चुनाव आयोग को पार्टी के संचालन में धोखाधड़ी, फर्जीवाड़ा या कागजी मौजूदगी का संदेह हो तो नोटिस देकर रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है. डिलिस्टिंग नियमों के अनुसार पार्टी का हेड ऑफिस, पदाधिकारियों की सूचना और संचार साधनों का अपडेट रहना जरूरी होता है.
क्या अब ये पार्टियां चुनाव नहीं लड़ पाएंगी?
डीलिस्टिंग का नोटिस जारी होने के बाद पार्टियां अब पंजीकृत राजनीतिक दल नहीं मानी जाएंगी. इसका सीधा मतलब है चुनाव चिन्ह का अधिकार खत्म हो जाएगा. इन्हें चुनाव में राजनीतिक पार्टी के रूप में मान्यता नहीं मिलेगी, यानी वे स्वतंत्र उम्मीदवारों की तरह ही चुनाव लड़ सकती हैं. ये पार्टियां आयोग की सुविधाओं, फंडिंग या प्रचार अधिकारों की पात्र नहीं होंगी. हालांकि, ये पार्टियां चाहें तो फिर से नया रजिस्ट्रेशन कर सकती हैं, लेकिन उसके लिए आयोग को जरूरी दस्तावेज देने होंगे.
पॉलिटिकल सिस्टम में पारदर्शिता का दबाव
पिछले कुछ वर्षों में चुनाव आयोग पर "कागजी पार्टियों" को खत्म करने का दबाव बढ़ा है. कई बार इन निष्क्रिय या फर्जी पार्टियों का उपयोग धन शोधन फर्जीवाड़े या चुनावी गड़बड़ियों में होता रहा है. आयोग ने हाल के वर्षों में सैकड़ों पार्टियों को डीलिस्ट किया है जो केवल नाम के लिए अस्तित्व में थीं.
इन 17 पार्टियों पर हुई कार्रवाई?
1. भारतीय बैकवर्ड पार्टी 2. भारतीय सुराज दल 3. भारतीय युवा पार्टी (डेमोक्रेटिक) 4. भारतीय जनतंत्र सनातन दल 5. बिहार जनता पार्टी 6. देशी किसान पार्टी 7. गांधी प्रकाश पार्टी 8. हमदर्दी जनरक्षक समाजवादी विकास पार्टी (जनसेवक) 9. क्रांतिकारी साम्यवादी पार्टी 10. क्रांतिकारी विकास दल 11. लोक आवाज दल 12. लोकतांत्रिक समता दल 13. राष्ट्रीय जनता पार्टी (भारतीय) 14. राष्ट्रवादी जन कांग्रेस 15. राष्ट्रीय सर्वोदय पार्टी 16. सर्वजन कल्याण लोकतांत्रिक पार्टी 17. व्यवसाई किसान अल्पसंख्यक मोर्चा.