अपराध-राजनीति के ‘कॉकटेल’ से तैयार खौफ का पहला नाम माफिया डॉन सूरजभान, उम्र ढलने के साथ जिसका सूरज ‘परवान’ चढ़ता गया!
बिहार के मोकामा से उभरे माफिया डॉन सूरजभान सिंह का जीवन अपराध और राजनीति के खतरनाक मेल का प्रतीक है. गरीब किसान परिवार में जन्मे सूरजभान ने रंगदारी, अपहरण और हत्याओं के बल पर सत्ता के गलियारों तक पहुंच बनाई. “धाकड़” की इस कड़ी में जानिए कैसे एक अपराधी बाहुबली से सांसद बना और किस तरह उसके जीवन में सत्ता, हिंसा और महत्वाकांक्षा ने एक-दूसरे को पोषित किया.

अमूमन अब तक जमाने में यही कहा और सुना जाता रहा है कि गुनाह और गुनहगार की जिंदगी बहुत छोटी होती है. लेकिन स्टेट मिरर हिंदी के यूट्यूब चैनल के खास कार्यक्रम “धाकड़” की खास कड़ी ने इस कहावत को गलत साबित करने की ईमानदार कोशिश की. क्योंकि स्टेट मिरर हिंदी के पास एक ऐसे धाकड़ की अंतर्कथा या कहिए क्राइम कुंडली मौजूद है जो, हमारे पाठकों की वे गलतफहमियां दूर कर देंगीं जिनमें अब तक आप सबने मिल जुलकर यही सुना था कि कानून की दीवार से टकराते ही अपराध और अपराधी की जिंदगी वक्त से पहले पूरी कर हो जाती है.
“धाकड़” में जिक्र हो रहा है पूर्वांचल और बिहार के उस माफिया डॉन का जो कालांतर में बाहुबली से “माननीय नेताजी” बना. वे बाहुबली और किसी नस्ल को होते होंगे कानून की हवा से पाला पड़ते ही जिनके आपराधिक जीवन का सूरज गुजरते वक्त के साथ अस्त हो जाता है. या कहिए कि उनके आपराधिक जीवन का दीया बुढ़ापे में बुझ जाता है. यहां जिक्र हो रहा है उस माफिया डॉन धाकड़ का जिसका सामाजिक राजनीतिक भाग्य और आपराधिक दुनिया का सूरज उम्र के साथ ढलने के बजाए, उसकी चढ़ती उम्र के साथ और तेजी से साथ उदय ही होता रहा.
नाम है सूरजभान सिंह
वही सूरजभान सिंह कालातंर में पूर्वांचल और बिहार के थाने चौकी, कोर्ट कचहरी में जिनके नाम का कोहराम मचा रहता था. बिहार की सत्ता के गलियारों में भले ही क्यों न हमेशा वक्त और तारीख की नजर में कालांतर से लेकर अब तक, कर्पूरी ठाकुर, बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या फिर बिहार में जंगलराज के जन्मदाता लालू प्रसाद यादव और उनकी बीवी राबड़ी देवी का ही सिक्का चलता रहा हो मगर, इन मठाधीश नेताओं के बीच कुछ ऐसे नाम भी हैं जैसे कि यूपी बिहार में माफिया राज के मास्टरमाइंड मोहम्मद शहाबुद्दीन, अनंत कुमार सिंह उर्फ छोटे सरकार, हरिशंकर तिवारी, राजन तिवारी. जिनके बिना पूर्वांचल और बिहार की राजनीति कुछ हद तक तो कभी पूरी हो ही नहीं सकी थी. इन्हीं में एक वह नाम शुमार था, आज भी है...और यह नाम आइंदा बिहार की बदनाम राजनीति में कब तक रहेगा...इस सवाल का जवाब हाल-फिलाहल तो भविष्य के गर्भ में ही छोड़ दीजिए. मतलब सूरजभान सिंह.
बेड़ियां नहीं हुई कामयाब
जिनका न तो कभी कोई कानून ही बहुत ज्यादा बिगाड़ सका और न ही जनमानस. कानून ने अगर कभी-कभार सूरजभान सिंह के पांवों में बेड़ियां डालने की कोशिश भी कालांतर में की होगी तो, वह भी लंबे समय तक कामयाब नहीं रहा होगा. क्योंकि सूरजभान की “धाकड़” इमेज का जिस-जिस शीशे यानी आईने ने भी सामना करके सूरजभान की नजर से नजर मिलाने की कोशिश की होगी. तो शर्तिया वह शीशा ही चटक गया होगा सूरजभान का तब भी कोई बाल बांका नहीं कर सका होगा. मतलब सूरजभान सिंह की धाकड़ इमेज के रास्ते का जो भी रोड़ा बना वह फिर चाहे पुलिस, कानून या कोई पॉलिटिकल अथवा आपराधिक छवि वाला रहा हो. रास्ते के ऐसे हर रोड़े को सूरजभान सिंह की दबंगई की गर्मी पिघला कर हमेशा साफ करती गई. मतलब कहने का यह है कि सूरजभान सिंह की “बाहुबली” या फिर “धाकड़” वाली छवि का जिसने दुश्मन बनने की कोशिश की वे सब सूरजभान की दबंगई के हवन में स्वाहा या कहूं कि होम होते चले गए.
मोकामा में हुआ था जन्म
यहां मैं अपराध और राजनीति के अखाड़े के उन्हीं दबंग सूरजभान सिंह का जिक्र कर रहा हूं जिनका जन्म 5 मार्च 1965 को हुआ था. गंगाजी के किनारे मौजूद बिहार राज्य के पटना जिलांतर्गत मोकामा में जन्मे सूरजभान सिंह की परवरिश भी दुनिया के बाकी बच्चों की तरह ही हुई थी. मगर हालात और गलत सोहबत, अति के महत्वाकांक्षी स्वभाव ने सूरजभान सिंह के मन को एक बार जो पटरी से भटका कर अपराध के सूखे खेतों की ओर धकियाया. तो फिर उनके कदम कभी वापिस नहीं लौट सके. भले ही सूरजभान सिंह हर दुश्मन से तो जिंदगी भर जीतते रहे हों मगर, वक्त के हाथों हारने के चलते कल के दबंग धाकड़ सूरजभान आज 60 साल की उम्र की मुंढेर पर तो आखिरकार आ ही बैठे हैं. मतलब वक्त से बलवान तो सूरजभान सिंह भी खुद को साबित नहीं कर सके. यह अलग बात है कि समय और सूरजभान सिंह को अपनी गति से निरंतर आगे बढ़ते रहने से रोकने वाला कोई माई का लाल पैदा नही हो सका.
नौकरी करते थे पिता
मोकामा के एक बेहद गरीब किसान परिवार में जन्मे सूरजभान सिंह को आज की जो पीढ़ी सिर्फ धाकड़, दबंग, बाहुबली, गुंडा, अपहरण उद्योग का मास्टरमाइंड समझती है. इस पीढ़ी को समझना होगा कि सच इतना ही नहीं है आज जितना वह अपनी आंखों से देख और दिमाग से समझ रही है. सच इससे कई गुना ज्यादा डरावना है. गरीबी गुरबत वाले एक अदना से किसान माता-पिता के घर जन्मे आज के दबंग-बाहुबली-धाकड़ सूरजभान सिंह की मैली और ऊंची महत्वाकांक्षाओं की कलम ने, उनकी तबाही नामी और नेकनामी की किताब तो युवावस्था में ही लिखना शुरू कर दी थी. जब उन्होंने रातों-रात शार्टकट रास्ते से बिना-कुछ करे-धरे ही धन्नासेठ बनने की घिनौनी चाहत में मोकामा के उस व्यापारी से ही रंगदारी वसूल डाली, जिसके यहां सूरजभान सिंह के पिता, अपना परिवार पालने के लिए नौकरी किया करते थे.
शर्मिंदगी के चलते पिता ने की आत्महत्या
पिता ने सूरजभान को बहुत समझाया था कि उनका बिगड़ैल बेटा कम से कम उस व्यापारी से तो रंगदारी की रकम न ही वसूले, जिसके यहां पिता नौकरी करके वहां से मिलने वाली तनख्वाह यानी पगार से अपना घर परिवार पाल-पोस रहे थे, मगर बदमाशी के बलबूते बलवान बनने की हसरत पाले बिगड़े हुए बेटे पर पिता की सलाह का कोई असर नहीं हुआ. खबरों के मुताबिक इसी ग्लानि के चलते सूरजभान के पिता ने शर्मिंदगी से एक दिन गंगाजी में कूदकर आत्महत्या कर ली. सोचिए जिन अड़ियल सूरजभान की शर्मनाक हरकत के चलते पिता ने ही गंगा में कूदकर जान दे दी हो....उन सूरजभान को फिर भला जमाने में दूसरा कौन झुकाने वाला हो सकता था.
सूरजभान से टकराकर जिंदा नहीं बचा कोई
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सूरजभान थे तो दो भाई लेकिन केंद्रीय पुलिस बल में इज्जतदार नौकरी करके घर-परिवार का सहारा बने एक भाई को पिता द्वारा आत्महत्या किए जाने की सच्चाई पता चली. तो वे भी पिता की मौत का सदमा सहन नहीं कर सके और उन्होंने भी बदनामी का दंश झेलने के बजाए इज्जत के साथ अकाल मौत को गले लगाना ज्यादा बेहतर समझा. मतलब, आज के धाकड़ सूरजभान सिंह के अतीत की डरावनी कहानी की किताब के काले पन्ने तो उनके अपनों की ही अकाल मौत से भरे हुए हैं. ऐसे में फिर दूसरा और कोई भला क्या औकात रखता होगा जो सूरजभान सिंह से टकरा कर जिंदा रह पाया होगा. हालांकि घर के आंगन से पिता और भाई की अकाल मौत के बाद उन दोनो की अर्थियां उठने की लोमहर्षक घटनाएं भी सूरजभान सिंह की बेशुमार मैली महत्वाकांक्षी के घोड़ों की लगाम नहीं खींच सकीं. और ऐसे में सूरजभान कम समय में चाहे जैसे भी सब कुछ पाने की हसरत में आंखें बंद करके आगे बढ़ते रहे.
बड़े सरकार ने मुकाम तक पहुंचाया
नतीजा यह रहा कि 1980 और 1990 के दशक में इन्हीं सूरजभान सिंह के नाम की तूती बोलने लगी. टाटा-बिड़ला, अडानी-अंबानी जैसा कोई बड़ा बिजनेसमैन बनने के चलते नहीं बल्कि रंगदारी, अपहरण, ठेके पर हत्याओं की डरावनी कारस्तानियों के चलते. अपराध की दुनिया में और तमाम लोगों, तमाम घरों की बर्बादी के कारण बनने वाले ऐसे सूरजभान सिंह को इस मुकाम तक पहुंचाने का श्रेय गया दिलीप कुमार सिंह उर्फ बड़े सरकार को, जोकि बिहार के बाहुबली अनंत कुमार सिंह उर्फ छोटे सरकार के बड़े भाई थे. अपराध जगत में पांव जमवाने का श्रेय बड़ी ही शान के साथ सूरजभान सिंह अपने गुरुतुल्य दिलीप कुमार सिंह को ही दिया करते थे. हालांकि 1980 और 1990 के दशक में यही दिलीप सिंह खुद भी तब के कांग्रेस विधायक दबंग श्याम सुंदर सिंह धीरज के लिए बूथ कैप्चरिंग से लेकर, मतपेटियां लुटवाने-चुराने का काम करते थे. इन शर्मनाक और डरावनी कहानियों से मीडिया आज भी भरा पड़ा है.
2000 में जीते पहला चुनाव
बाद में हालात बदले और मौकापरस्त दिलीप कुमार सिंह ने श्याम सुंदर सिंह धीरज के ही खिलाफ जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और वे 1990 से लेकर सन 2000 तक राबड़ी व लालू यादव की सल्तनत में मंत्री विधायक रहे. सोचिए ऐसे मास्टरमाइंड बाहुबली दिलीप कुमार सिंह के लिए काम करने वाले सूरजभान सिंह भला कैसे कहीं किसी से हार सकते थे. सूरजभान सिंह के चचेरे भाई मोती सिंह को जब दिलीप सिंह के मुंहलगे कुख्यात नागा सिंह ने कत्ल कर डाला तो श्याम सुंदर सिंह श्याम और सूरजभान सिंह करीब आ गए. कभी गुरु मानने वाले दिलीप सिंह से जब सूरजभान सिंह की खटकी तो साल 2000 में सूरजभान सिंह दिलीप सिंह के ही खिलाफ चुनाव मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मोकामा विधानसभा सीट से न केवल उतरे, बल्कि सूरजभान सिंह वह चुनाव जीते भी.
अशोक सम्राट के साथ हुआ था गैंगवॉर
सूरजभान सिंह की दुश्मनी नागा सिंह सरदार से भी हुई थी....दोनो गैंग में खूब खून खराबा हुआ...बेगूसराय के डॉन समझे जाने वाले अशोक रॉय उर्फ अशोक सम्राट ने तो मोकामा में ही सूरजभान सिंह के ऊपर हमला बोल दिया था. मगर उस गोलीकांड में जख्मी होकर भी सूरजभान की जिंदगी बच गई. उस खूनी गोलीकांड में सूरजभान का चचेरा भाई और शूटर मारे गए. साल 2000 में जब सूरजभान निर्दलीय विधायक चुने गए तब तक उनके खिलाफ विभिन्न थानों में 2 दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज होकर, वे खूंखार बाहुबली के संग-संग धाकड़-सफेदपोश माननीय-नेताजी भी बन चुके थे. साल 2004 में वह राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी से बिहार की बलिया लोकसभा सीट से जीतकर संसद में पहुंच गए.
नीतीश कुमार के संकटमोचक रहे थे सूरजभान
आज भले ही बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बात को भाव न दें या सिरे से ही नकार दें कि उनके सिर के ऊपर तो कभी भी, ऐसे बदनाम धाकड़ सूरज भान सिंह का हाथ रहा ही नहीं था. आज के नीतीश कुमार नहीं भी मानें तो बिहार तो मानता है कि बीते कल में यही धाकड़ बाहुबली सूरजभान सिंह नीतीश कुमार के संकटमोचक भी रह चुके हैं. बात जब छोटे से और बेहद पिछड़े इलाके से निकल कर सत्ता की देहरी तक पहुंचने वाले सूरज भान सिंह के अतीत की हो तो भला 16 जनवरी 1992 को बेगूसराय के मधुरापुर में, सुबह सुबह करीब पांच बजे रामी सिंह के हुए कत्ल को कौन भूल सकता है. जिन्हें चार हमलावरों ने संभलने तक का मौका नहीं दिया था. उस मामले में फंसे सूरजभान सिंह को बिहार के एक जिला व सत्र न्यायालय से 24 जून 2008 को उम्रकैद की सजा तक मुकर्रर की गई थी. कुछ समय के लिए जेल गए.
मंत्री की हुई थी हत्या
उसके कुछ साल बाद यही सूरज भान सिंह 3 जून 1998 की शाम फिर सुर्खियों में आ गया. जब राबड़ी देवी की हुकूमत में विज्ञान और तकनीकी मंत्री बृज बिहारी प्रसाद इलाज के लिए इंदिरा आयुर्विज्ञान संस्थान में दाखिल करवाए गए, और अस्पताल के पार्क में टहलते वक्त उनके ऊपर ताबड़तोड़ गोलियां दागकर उन्हें रुह कंपाने वाली मौत सुला दिया गया. उन 6-7 शूटर्स में एक गोरखपुर का बदनाम बदमाश शार्प-शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला भी शामिल बताया गया था. राबड़ी के मंत्री के अस्पताल के भीतर घुसकर कत्ल कर डालने की उस दुस्साहसिक घटना में भी इन्हीं सूरजभान सिंह का नाम खूब उछला. सीबीआई जांच हुई. साल 2009 में सूरजभान सिंह को उस सनसनीखेज मंत्री हत्याकांड में भी कोर्ट से आजीवन यानी उम्रकैद की सजा सुना दी गई. हालांकि बाद में वे उस कांड में बेदाग बच गए.
पत्नी बनीं मुंगेर से सांसद
एक खूनी कांड से निपटते नहीं थे....तब तक दूसरा कोई गोली-हत्या या अपहरण कांड सूरजभान के सिर पर काला सेहरा बनकर सज जाता. साल 2003 में दिनदहाड़े मोकामा में पूर्व पार्षद और कुख्यात बदमाश उमेश यादव गोलियों से भून डाला गया. नाम उसमें भी इन्हीं सूरजभान सिंह का सुर्खियां बटोरने में कामयाब रहा. हालांकि उस हत्याकांड में भी सूरजभान सिंह बरी हो गए.
जिन सूरजभान सिंह की तबाही और बर्बादी की शुरूआत ही उनके अपने घर-आंगन से हुई हो. उन सूरजभान का अपराध जगत में भला कौन बाल बांका कर सकता है. गांव का लड़का जब सब कुछ दांव पर लगाकर कफन बांधकर सड़क पर उतर ही आया था. तो फिर क्या अपना क्या पराया....क्या दोस्त और क्या दुश्मन. सबके साथ सूरजभान सिंह बेहद सतर्कता से आगे बढ़ते रहे. सूरजभान सिंह के चुनाव लड़ने पर जब रोक लगी तो उन्होंने पत्नी वीणा देवी को मुंगेर से सांसद बनवा डाला. मतलब हाथ से निकलती सत्ता के कुरुक्षेत्र में भी हारी हुई बाजी पासा पलट कर अचानक आखिरी वक्त में कैसे अपनी जीत में बदलनी है...सूरजभान सिंह इस गुणा-गणित के भी मास्टरमाइंड माने जाते हैं.
रोड़ा दूर होते ही बना चमकता सूरज
उनके निजी जीवन में उनकी धाकड़ छवि को अगर कभी सीधे तौर पर कोई धक्का पहुंचा तो वह थी, उनके युवा पुत्र आशुतोष सिंह की साल 2018 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश की हद में स्थित यमुना एक्सप्रेस-वे पर हुए सड़क हादसे में हुई दर्दनाक मौत. कहते हैं कि जब लोहे से लोहा और माचिस से उसकी तीली टकराती है तो विशानकारी अग्नि की चिंगारी ही निकलती है. 1990 के दशक में कुछ ऐसा ही सूरजभान सिंह के साथ भी हुआ था. जब उनकी मोर्चाबंदी उत्तर प्रदेश के तब के बाहुबली अशोक सम्राट से हो गई. यूपी का होने के बाद भी अशोक सम्राट बिहार के अपराध जगत में अपना सिक्का जमा चुका था. सूरजभान सिंह उन दिनों बिहार के छोटे से इलाके मोकामा से बाहर निकल कर कुछ बड़ा हासिल करने के लिए फड़फड़ा रहे थे.
हालांकि, तब तक अशोक सम्राट जरायम की दुनिया में अपनी दुकान जमाकर बैठ चुका था. गोरखपुर से लेकर बिहार तक के रेलवे के ठेका टेंडर पर अशोक सम्राट ही कुंडली मारकर बैठा हुआ था. सूरजभान की पारखी नजरों ने जब देखा कि रेलवे टेंडर ठेकेदारी में मोटा मुनाफा है तो वहां से जमा हुआ अशोक सम्राट सूरजभान की आंखों में करकने लगा. रातों रात काली कमाई से धन्नासेठ बनने की मैली मंशा ने दोनो को एक दूसरे का खून का प्यासा बनाया तो दोनो गैंग्स के बीच खूनी मुठभेड़ें शुरू हो गईं. एक मुठभेड़ में सूरजभान के पांव में गोली लगी. उसका चचेरा भाई अजय और सूरजभान का शूटर मनोज उस गोलीकांड में मौके पर ही अशोक सम्राट गैंग के शूटर्स द्वारा मारे गए. इसी बीत अशोक सम्राट की किस्मत दगा दे गई और, सन् 1995 में जैसे ही हाजीपुर में एक पुलिस मुठभेड़ में अशोक सम्राट मरा, मानो सूरजभान सिंह की तो राह का रोड़ा पुलिस ने ही दूर कर दिया था. और फिर पूर्वांचल से लेकर बिहार तक अपराध और राजनीति के कॉकटेल में सूरजभान सिंह का ही सूरज चमकने लगा.