चिराग की राहें मुश्किल करेंगे चाचा पशुपति पारस, सभी 243 सीटों पर उतारेंगे उम्मीदवार
बिहार में चाचा और भतीजे के बीच सियासी संघर्ष तेज हो गया है. रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान ने अपनी पार्टी संभाली, जबकि उनके चाचा पशुपति पारस ने अलग रास्ता अपनाया. अब पशुपति पारस ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है, जिससे चिराग के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

बिहार की राजनीति में चाचा और भतीजे के बीच का संघर्ष कोई नई बात नहीं है. यह कहानी उस वक्त की है जब राजनीति के दिग्गज रामविलास पासवान के निधन के बाद उनका परिवार और उनकी पार्टी दोनों बिखर गए. उनके बेटे चिराग पासवान को अपने पिता की विरासत को संभालने और पार्टी को आगे बढ़ाने का जिम्मा मिला, लेकिन राजनीतिक माहौल और विवादों ने उनकी राह कठिन बना दी. चिराग ने अपनी पार्टी को संभालने की भरसक कोशिश की, लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब उनके पार्टी के सांसदों ने उनसे नाता तोड़ लिया और उनका विरोध करना शुरू कर दिया. चाचा पशुपति कुमार पारस ने पार्टी तोड़ते हुए मोदी सरकार में मंत्री बनने का फैसला किया, जिससे चिराग पासवान के खेमे में कोई सांसद नहीं बचा.
लेकिन समय के साथ चिराग की किस्मत पलटी. 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपने चाचा को उसी के अंदाज में जवाब दिया. एनडीए गठबंधन में रहते हुए, चिराग की पार्टी ने 5 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और एक शानदार प्रदर्शन करते हुए उन सभी सीटों को जीत लिया. चिराग ने राजनीतिक मैदान में अपनी स्थिति मजबूत की और मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में अपनी जगह बनाई. इस जीत ने चिराग को आत्मविश्वास से भर दिया, जबकि उनके चाचा पशुपति पारस के लिए यह एक बड़ा झटका था.
सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे पारस
हालांकि, पारस के मन में इस हार का बदला लेने का मन था और उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एक बड़ा चुनावी प्लान तैयार किया. उन्होंने घोषणा की कि उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. उनका कहना था कि पार्टी जमीनी स्तर पर संगठन और दलित सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए चुनावी मैदान में उतरेगी. इसके लिए उन्होंने बिहार के हर बूथ पर संगठन स्थापित करने की योजना बनाई और सभी निर्वाचन क्षेत्रों में बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) नियुक्त करने की बात कही.
मैदान में होंगे मजबूत उम्मीदवार
पारस ने अप्रैल 2025 तक सभी विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित करने का भी निर्णय लिया और दलित मुद्दों को अहमियत देते हुए 14 अप्रैल को पटना में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाने का एलान किया. इससे यह साफ हो गया कि उनकी पार्टी दलितों के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश करेगी. साथ ही, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष प्रिंस राज ने सभी कार्यकर्ताओं से पार्टी का झंडा और नेमप्लेट अपने घरों पर लगाने का निर्देश दिया. इसके अलावा, पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को यह भरोसा दिलाया गया कि चुनाव में पार्टी के मजबूत उम्मीदवार उतारे जाएंगे.
लोकसभा चुनाव में नहीं मिली थी एक भी सीट
2024 के लोकसभा चुनाव में रालोजपा एनडीए का हिस्सा थी और पारस मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री थे. लेकिन बिहार में लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी पार्टी को कोई भी सीट नहीं मिली, जिससे यह दरार और बढ़ गई. चिराग पासवान एनडीए में बने रहे, जबकि पशुपति पारस ने खुद को इससे अलग कर लिया. यह स्थिति पार्टी के लिए संकट बन गई, क्योंकि दोनों नेताओं के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता ने उनके समर्थकों को विभाजित कर दिया.
चूड़ा-दही भोज में शामिल हुए थे लालू-तेज प्रताप
जनवरी में मकर संक्रांति के मौके पर पारस ने पटना में चूड़ा-दही भोज का आयोजन किया, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को आमंत्रित किया था. इस कार्यक्रम में लालू प्रसाद यादव अपने बेटे तेज प्रताप यादव के साथ शामिल हुए थे, और इसने बिहार की राजनीति में महागठबंधन के साथ रालोजपा के गठबंधन की अटकलें तेज कर दी थीं. पारस ने खुद इस बात का संकेत दिया कि चुनाव के नजदीक आते ही गठबंधन पर फैसला लिया जाएगा.
क्या चिराग से ले पाएंगे बदला?
अब बिहार विधानसभा चुनाव में चाचा पारस के उम्मीदवारों का उतारना दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. यह देखना बाकी है कि क्या चाचा पशुपति पारस अपने भतीजे चिराग पासवान से बदला ले पाते हैं या फिर चिराग अपनी पार्टी को और मजबूत बना कर इस मुकाबले में जीत हासिल करते हैं. चुनावी मैदान में यह संघर्ष और राजनीतिक समीकरण निश्चित ही दिलचस्प होने वाला है.