बिहार में दलित वोट का महायुद्ध: ‘अपमान’ से उभरे पारस, अब RJD के पाले में?
बिहार की राजनीति में बड़ा फेरबदल संभव है. एनडीए से नाराज़ RLJP प्रमुख पशुपति कुमार पारस अब राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन से हाथ मिला सकते हैं. सूत्रों के अनुसार, उन्हें आगामी विधानसभा चुनावों में सीटें दी जा सकती हैं. यह कदम खासकर पासवान समुदाय के वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति का हिस्सा है, जहां फिलहाल चिराग पासवान की मज़बूत पकड़ है.

बिहार की राजनीति में एक बार फिर पासवान परिवार चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह चिराग पासवान नहीं, बल्कि उनके चाचा पशुपति कुमार पारस हैं. केंद्र में मंत्री रह चुके RLJP प्रमुख पारस ने NDA से नाता तोड़ते हुए अब विपक्षी महागठबंधन का रुख करने के संकेत दिए हैं. माना जा रहा है कि वे जल्द ही राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल हो सकते हैं.
इस बदलाव की जड़ें 2024 के लोकसभा चुनावों में छिपी हैं, जहां NDA ने पारस को एक भी सीट नहीं दी. चिराग पासवान की पार्टी LJP (रामविलास) को 5 सीटें दी गईं और उसने सभी पर जीत दर्ज की, जिसमें हाजीपुर भी शामिल था, वही सीट जिसे रामविलास पासवान आठ बार जीत चुके थे और जिसे पारस अपना राजनीतिक गढ़ मानते थे.
अब सवाल यह है कि क्या पारस अपनी खोई राजनीतिक ज़मीन RJD के सहारे वापस पा सकेंगे?
पारस बनाम चिराग
पारस, जो कभी रामविलास पासवान के साए में राजनीति करते थे, अब खुद को 'अपमानित' महसूस कर एनडीए को अलविदा कह चुके हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में ना तो उन्हें टिकट मिला, ना मंच पर जगह. वहीं दूसरी ओर, चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) ने एनडीए के भरोसे पर खरा उतरते हुए सभी 5 सीटें जीतकर खुद को 'पासवान समाज का असली वारिस' घोषित कर दिया.
अब महागठबंधन, जिसमें आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट शामिल हैं, पारस को अपनी पाले में लाने की तैयारी में है. सूत्रों के मुताबिक, आरजेडी RLJP को विधानसभा में कुछ सीटें ऑफर कर सकती है, मकसद साफ है, चिराग के वोट बेस में सेंध.
'पासवान फैक्टर' क्यों है इतना अहम?
बिहार की कुल आबादी में अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी करीब 19.65% है, जिसमें से सबसे बड़ी हिस्सेदारी पासवान समुदाय की है, करीब 5.3%. 2005 में रामविलास पासवान ने इसी समुदाय के दम पर 29 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था. आज भी, ये वोट बैंक किसी भी गठबंधन के लिए निर्णायक भूमिका निभा सकता है, चाहे वो एनडीए हो या महागठबंधन.
क्या है राजनीतिक समीकरण?
महागठबंधन ने 2020 में 243 में से 110 सीटें जीती थीं, सिर्फ 12 सीटों से बहुमत चूका था. अगर पारस जैसे नेता उनके साथ जुड़ते हैं और पासवान समुदाय का थोड़ा भी वोट बैंक ले आते हैं, तो यह समीकरण पूरी तरह पलट सकता है. वहीं एनडीए के लिए चिराग का साथ बहुत फायदेमंद साबित हो रहा है. लेकिन पारस का जाना ना सिर्फ नैरेटिव तोड़ेगा, बल्कि एक वैकल्पिक दलित नेता की छवि गढ़ेगा.
RLJP की अभी तक कोई चुनावी मौजूदगी नहीं रही है, लेकिन पारस के NDA से अलग होने और चिराग के बढ़ते कद के बीच उन्हें सियासी 'सम्मान' की तलाश है. पारस ने हाल ही में कहा था, “अब अपमान सहने का वक्त गया. हम वहां जाएंगे जहां हमें सम्मान मिलेगा.” प्रिंस राज (रामचंद्र पासवान के बेटे) ने भी NDA पर हमला करते हुए कहा कि “राज्य की जेलों में शराबबंदी कानून के तहत 5 लाख से ज्यादा दलित बंद हैं, NDA को दलितों पर बोलने का नैतिक हक नहीं है.”