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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले पप्पू यादव की सियासी बेचैनी चरम पर, बार-बार क्यों लगा रहे दिल्ली का चक्कर?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले पप्पू यादव की कांग्रेस में भूमिका को लेकर असमंजस बरकरार है. जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का विलय करने के बावजूद उन्हें लोकसभा टिकट नहीं मिला, जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय जीत दर्ज की. आरजेडी के साथ उनका टकराव खुलकर सामने आ चुका है, खासकर तेजस्वी यादव को लेकर उनके तीखे बयान ने विवाद बढ़ाया है. सीमांचल में पकड़ और कांग्रेस की कमजोर स्थिति के बीच पप्पू यादव की भूमिका निर्णायक हो सकती है, लेकिन महागठबंधन में उनकी जगह अब भी तय नहीं है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले पप्पू यादव की सियासी बेचैनी चरम पर, बार-बार क्यों लगा रहे दिल्ली का चक्कर?
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( Image Source:  X/savedemocracyI )

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. इसी के साथ पूर्णिया के निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव एक बार फिर राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में हैं. 1 अगस्त को दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में नजर आए पप्पू यादव, पिछले एक साल से कांग्रेस में औपचारिक एंट्री की जद्दोजहद में लगे हैं. लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले उन्होंने अपनी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का विलय कांग्रेस में कर दिया था, लेकिन पूर्णिया से महागठबंधन का टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत भी गए. तभी से उनके और आरजेडी के बीच तनातनी की स्थिति बनी हुई है.

राहुल गांधी के जुलाई दौरे में जब कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को मंच साझा करने का मौका नहीं मिला, तो सियासी संकेत और भी स्पष्ट हो गए. पप्पू यादव कांग्रेस के बड़े नेताओं से अपनी नाराजगी जताने बार-बार दिल्ली का रुख कर रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें कोई स्पष्ट भूमिका नहीं मिल पाई है. छह बार के सांसद और कोसी-सीमांचल के प्रभावशाली नेता पप्पू यादव की कांग्रेस में स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है, जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं.


"तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने तो मुझे मरवा देंगे"

9 जुलाई 2025 की विपक्षी रैली में पप्पू यादव को राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ मंच साझा नहीं करने दिया गया, जिसे उन्होंने 'अपमान' कहा, हालांकि बाद में उसे नजरअंदाज कर दिया. वहीं 24 जुलाई को एक साक्षात्कार में उन्होंने यहां तक कह दिया, "अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने तो या तो मुझे मरवा देंगे या मैं बिहार छोड़ दूंगा." इससे साफ है कि उनकी और तेजस्वी की खाई अब और गहरी हो चुकी है.


कोसी और सीमांचल इलाके में यादव-मुस्लिम और दलित वोटबैंक पर मजबूत पकड़

कोसी और सीमांचल इलाके में यादव, मुस्लिम और दलित वोटबैंक पर उनकी मजबूत पकड़ है. इसी आधार पर उन्होंने अप्रैल में कांग्रेस से इन क्षेत्रों में ज्यादा सीटों की मांग की थी। लेकिन आरजेडी के पुराने रुख को देखते हुए उनकी मांग पूरी होना मुश्किल नजर आ रहा है। इसके अलावा पप्पू यादव ने चुनाव आयोग द्वारा 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने को भी बिहार की पहचान पर हमला बताया.


कांग्रेस में पप्पू यादव की स्थिति अभी भी अधर में

कुल मिलाकर, कांग्रेस में पप्पू यादव की स्थिति अभी भी अधर में है. एक तरफ वे राहुल और प्रियंका गांधी की 'लोकतंत्र बचाओ' मुहिम के समर्थन में हैं, तो दूसरी ओर आरजेडी के साथ उनकी टकराहट खुलकर सामने आ रही है. अगर कांग्रेस 2025 में 70 सीटों की मांग करती है, तो सीमांचल में पप्पू यादव की पकड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन तेजस्वी यादव के साथ उनका तनाव कांग्रेस के लिए बड़ी रणनीतिक चुनौती भी बन सकता है.

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