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एक कॉल और नामांकन कैंसिल... नॉमिनेशन से चंद मिनट पहले भागलपुर सीट से क्यों पीछे हट गए अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत चौबे?

भागलपुर विधानसभा सीट पर अर्जित शाश्वत चौबे ने स्वतंत्र उम्मीदवार बनने से पहले अचानक नामांकन वापस ले लिया. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के पुत्र अर्जित ने अपने पिता और पार्टी नेतृत्व के निर्देश का पालन करते हुए यह निर्णय लिया. इससे राजनीतिक हलचल मची है और स्थानीय समर्थकों में चर्चा तेज हो गई है. भाजपा ने रोहित पांडे को फिर से उम्मीदवार घोषित किया, जबकि अर्जित ने परिवार और पार्टी के प्रति सम्मान दिखाया. यह घटना बिहार चुनाव 2025 में पार्टियों की रणनीति और आंतरिक अनुशासन की अहमियत को उजागर करती है.

एक कॉल और नामांकन कैंसिल... नॉमिनेशन से चंद मिनट पहले भागलपुर सीट से क्यों पीछे हट गए अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत चौबे?
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( Image Source:  X/ArjitSChoubey )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 19 Oct 2025 10:33 AM

भागलपुर विधानसभा सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता अश्विनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत चौबे ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल करने से पहले ही अचानक अपना कदम पीछे खींच लिया. 43 वर्षीय अर्जित नामांकन के लिए जिला कलेक्ट्रेट पहुंचे, जहां भारी संख्या में समर्थक और मीडिया मौजूद थे. उनका यह अचानक कदम वहां मौजूद लोगों के लिए चौंकाने वाला साबित हुआ.

जैसे ही अर्जित अपने फोन पर बात करने लगे, उन्होंने नामांकन टेबल से मुड़कर वापसी का फैसला किया. बाद में उन्होंने स्पष्ट किया कि यह बदलाव उनके पिता अश्विनी चौबे के कॉल के कारण हुआ. उन्होंने मीडिया को बताया, “मेरे पिता ने कहा, ‘तुम बीजेपी में हो और बीजेपी में रहोगे.’ यही वजह थी कि मैंने पार्टी लाइन के खिलाफ जाने की योजना छोड़ दी.”

बीजेपी नेतृत्व का दबाव

अर्जित ने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से लगातार दबाव झेलना पड़ा. जब उन्हें भागलपुर सीट का टिकट नहीं मिला और पार्टी ने रोहित पांडे को उम्मीदवार बनाया, तो अर्जित ने स्वतंत्र उम्मीदवार बनने की घोषणा की थी. इस निर्णय ने स्थानीय कार्यकर्ताओं और समर्थकों में हलचल मचा दी थी.

माता-पिता का मार्गदर्शन

अर्जित ने मीडिया को बताया, “आज मेरे पिता और माता दोनों ने मुझसे बात की. यह भाजपा नेतृत्व का निर्देश था. मैं उनके कहे का पालन किए बिना आगे नहीं बढ़ सकता. न ही मैं अपनी पार्टी या देश के खिलाफ जा सकता.” इस बयान से स्पष्ट होता है कि राजनीतिक परिवार में अनुशासन और सम्मान का महत्व कितना अधिक है.

भागलपुर सीट का राजनीतिक महत्व

भागलपुर सीट लंबे समय से चौबे परिवार के लिए विशेष महत्व रखती है. अश्विनी चौबे ने 1995 से 2010 तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और अपनी मजबूत पैठ बनाई. 2020 में कांग्रेस के अजीत शर्मा ने भाजपा उम्मीदवार को मात्र 1,000 वोट के अंतर से हराया था, जिससे सीट पर भाजपा के लिए चुनौती बढ़ गई.

रोहित पांडे को बनाया गया उम्मीदवार

बीजेपी ने 2025 में भी भागलपुर सीट पर रोहित पांडे को उम्मीदवार घोषित किया. यह निर्णय स्थानीय स्तर पर चौबे परिवार के समर्थकों में असंतोष पैदा करने वाला रहा. कई कार्यकर्ताओं ने महसूस किया कि पार्टी ने पारिवारिक परंपरा और स्थानीय भावनाओं को नजरअंदाज किया.

अर्जित का मनोवैज्ञानिक संघर्ष

अर्जित ने माना कि स्वतंत्र उम्मीदवार बनने का उनका विचार व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और राजनीतिक जुनून का नतीजा था. लेकिन पिता और पार्टी के निर्देश ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया. उन्होंने कहा, “मैं अपने परिवार और पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध हूँ, इसलिए मैंने अपना कदम वापस लिया.”

समर्थकों की प्रतिक्रिया

अर्जित की वापसी ने समर्थकों के बीच मिश्रित प्रतिक्रिया पैदा की. कुछ ने इसे अनुशासन और परिवार के प्रति सम्मान का प्रतीक बताया, जबकि कुछ ने इसे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की हानि के रूप में देखा. राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटना भाजपा के आंतरिक अनुशासन और रणनीति का स्पष्ट उदाहरण है.

राजनीतिक संदेश

अर्जित की अचानक वापसी ने यह संदेश दिया कि परिवार और पार्टी की प्राथमिकताएं व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर हैं. यह घटना बीजेपी की आंतरिक अनुशासन प्रणाली, प्रमुख राजनीतिक परिवारों में समर्पण और बिहार की राजनीति में पारंपरिक सीटों की भूमिका को उजागर करती है.

दो चरणों में होगा चुनाव

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 दो चरणों में आयोजित होंगे. 6 और 11 नवंबर को मतदान होगा और 14 नवंबर को मतगणना होगी. भागलपुर में इस समय राजनीतिक माहौल काफी संवेदनशील है. ऐसे अप्रत्याशित घटनाक्रम और पार्टी के भीतर के दबाव ने स्थानीय राजनीति में हलचल मचा दी है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025
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