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बिहार में NDA एक साथ, मगर रास्ते जुदा-जुदा! चुनावी सफर में सबकी अपनी अपनी तैयारी

बिहार में NDA गठबंधन भले ही एक मंच पर दिख रहा हो, लेकिन जमीन पर सभी दलों की चुनावी रणनीति अलग-अलग हैं. कौन किसके साथ खड़ा है, और कौन किससे दूरी बना रहा है, इसके भी साफ संकेत मिल रहे हैं. फिलहाल, सभी ज्यादा से ज्यादा हासिल सीटें गठबंधन कोटे के तहत हासिल करने के लिए एक-दूसरे पर दबाव बना रहे हैं.

बिहार में NDA एक साथ, मगर रास्ते जुदा-जुदा! चुनावी सफर में सबकी अपनी अपनी तैयारी
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बिहार की सियासत में कुछ भी सीधा नहीं होता. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल दलों का भी वही हाल है. गठबंधन के सभी सहयोगी साथ तो हैं, पर रास्ते सभी के जुदा जुदा हैं. NDA में BJP, JDU,एलजेपी रामविलास, HAM और आरएलपी ने भले ही विधानसभा चुनाव की तैयारी मिलकर करने की बात कही हो, लेकिन हकीकत कुछ और कहती है. हर पार्टी अपने-अपने उम्मीदवारों को मजबूत करने में लगी हैं. कहीं NDA के नेता एक-दूसरे से दूरी बनाए दिखते हैं, तो कहीं मंच साझा करने से भी परहेज करते हैं. सवाल उठता है - क्या ये एकजुटता सिर्फ दिखावा है या राजनीतिक मजबूरी?

अलग-अलग चुनावी तैयारियों ने आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या एक बार फिर सीटों के बंटवारे पर खींचतान होगी या ये संकेत किसी बड़े बदलाव का इशारा है? हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और रालोसपा जैसे छोटे सहयोगी दलों ने भी संकेत दिए हैं कि वे अपनी राजनीतिक जमीन को फिर से मजबूत करने के मूड में हैं.

नेतृत्व का सवाल और टकराहट के संकेत

नीतीश कुमार की पार्टी JDU जहां 'समान सम्मान' की बात कर रही है, वहीं बीजेपी का फोकस संगठन विस्तार और बूथ स्तर की रणनीति पर है. दोनों दल अपने-अपने स्तर पर कार्यक्रम, जनसभाएं और प्रशिक्षण कैंप कर रहे हैं. इससे यह अंदेशा और पुख्ता होता जा रहा है कि विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर सीटों की लड़ाई, नेतृत्व का सवाल और एजेंडे की टकराहट सामने आ सकती हैं.

जीतन राम चाहते हैं बड़ी भूमिका

जीतन राम मांझी की पार्टी HAM भी फिलहाल 'स्वतंत्र अभियान' की मुद्रा में है. मांझी के हालिया बयान और गतिविधियां इस ओर इशारा करती हैं कि वे आने वाले समय में बड़ी भूमिका चाहते हैं. उपेंद्र कुशवाहा के खेमे का भी वही हाल है, जो अपनी उपस्थिति फिर से दर्ज कराने की कोशिश में जुटे हैं. चिराग पासवान पहले ही साफ चुके हैं कि उन्हें कम से कम 40 सीटें चाहिए. फिलहाल, पार्टी नेता और कार्यकर्ता सभी 243 सीटों पर तैयारी है.

उठा पटक होने पर होगा नुकसान

इन सबके बीच सवाल उठता है - क्या ये तकरार महज दिखावा है या गठबंधन में वाकई बड़ी दरारें हैं? बिहार की राजनीति में गठबंधन धर्म कितना अनिवार्य है, उतना ही अस्थिर भी, और एनडीए इस सच्चाई को एक बार फिर झेलता नजर आ रहा है. इसमें कुछ भी उतार-चढ़ाव होगा तो बीजेपी को नुकसान सबसे ज्यादा होगा. आरएलपी के पास खोने के लिए कुछ नहीं तो चिराग अपनी अलग और स्थायी पहचान के लिए सियासी जद्दोजहद में जुटे हैं.

सहयोगी दलों को BJP से डर क्यों?

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भाजपा ने 74 सीटें जीती थीं. बाद में हुए उपचुनाव में राज्य से कुढ़नी सीट हथिया ली. फिर भाजपा की संख्या 75 हुई. तदोपरांत वीआइ‌पी के सभी तीन विधायक भाजपा में आ गए. इससे भाजपा के विधायकों की संख्या 78 हो गई. दो विधायकों के सांसद चले जाने हुए उपचुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी जीते और अब कागज पर इनकी संख्या 80 हो गई. आगामी चुनाव के लिए अन्य घटक दल चिंतित हैं कि कहीं भाजपा उनके आधार मतों में सेंधमारी न कर ले.

जद (एकी) ने 2020 के चुनाव में पार्टी ने 43 सीटें जीती थीं. बसपा और लोजपा के एक-एक विधायक जेडीयू में आ गए. बिहार विधायक जद (एकी) में आ गए. इस तरह जेडीयू के पास अब 45 विधायक हैं. रूपौली की विधायक चीमा भारती ने इस्तीफा दे दिया और आरजेडी में शामिल हो गई. इससे जेडीयू के विधायकों की संख्या 44 हो गई. उपचुनाव में बेलागंज पर जीतने के बाद जेडीयू के विधायकों की संख्या फिर 45 हो गई. बिहार में जेडीयू का सांगठनिक स्वरूप थोड़ा लचर है. इसके कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को पार्टी की नीतियां नहीं सरकारी योजनाओं पर ज्यादा भरोसा है.

चिराग के हौसले बुलंद

लोजपा (रा) का सदन में कोई विधायक नहीं है. लोकसभा चुनाव में एनडीए घटक बल के रूप में पांच सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा था. सभी पांचों सीटों पर जीत मिली. सौ फीसदी 'स्ट्राइक रेट' होने के कारण पार्टी प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का हौसला पहले से ज्यादा बढ़ गया है.

नीतीश को फिर से अनहोनी की आशंका

इस बीच इंडिया गठबंधन और एनडीए में आते-जाते रहने के लिए चर्चित नीतीश कुमार को इस बार भी मुख्यमंत्री बनाने के लिए घटक दलों ने एकजुटता दिखाई है, लेकिन धरातल पर कहानी कुछ और ही है. नीतीश को

चिराग पासवान लगातार तनाव दे रहे हैं. वे सत्तारूढ़ जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार को भी लपेटे में लेते हुए दिख जाते हैं. 29 जून को नीतीश के गढ़ राजगीर में हुई चिराग की बहुजन भीम संकल्प समागम में पहुंची भीड़ ने जद (एकी) नेताओं को डरा दिया है. लोजपा (रा) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी ने कहा कि वे आरजेडी के अहम घटक हैं, इसलिए गठबंधन को मजबूत करना हमारी जिम्मेदारी है.

बिहार में हम पार्टी की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. पार्टी के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी के चार विधायक जीते थे. उनमें से एक वह खुद थे, जो सांसद बन गए. चाद में इमामगंज की उनकी विधानसभा सीट वह दीपा मांझी ने जीत ली. इस तरह विधानसभा में हम के चार विधायक हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व विहार में मंत्री संतोष सुमन का मानना है कि आगामी चुनाव में पार्टी पहले से बेहतर प्रदर्शन करेगी.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहार
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