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क्‍या बिहार में NDA की एक और जीत तय है? एग्जिट पोल्स ने तो दिखा दिया रुझान, पर ज़मीन पर समीकरण कहीं ज़्यादा जटिल

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के एग्जिट पोल्स ने NDA की स्पष्ट बढ़त दिखाई है, लेकिन ज़मीन पर समीकरण कहीं ज़्यादा पेचीदा हैं. प्रशांत किशोर की एंट्री, नीतीश कुमार की सेहत, NDA की एकजुटता और विपक्ष की कमजोरी ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया है. हिंदी बेल्ट में NDA की पकड़ और कांग्रेस की लगातार हार ने राहुल गांधी पर दबाव बढ़ा दिया है. अगर एग्जिट पोल्स सही निकले, तो NDA की यह जीत राष्ट्रीय राजनीति में भी दूरगामी असर छोड़ेगी.

क्‍या बिहार में NDA की एक और जीत तय है? एग्जिट पोल्स ने तो दिखा दिया रुझान, पर ज़मीन पर समीकरण कहीं ज़्यादा जटिल
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 13 Nov 2025 10:16 AM

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के एग्जिट पोल्स ने सियासी माहौल में हलचल मचा दी है. ज़्यादातर सर्वेक्षणों ने साफ संकेत दिए हैं कि राज्य में एक बार फिर नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) की सरकार बनने जा रही है. हालांकि, इस बार का चुनावी परिदृश्य उतना सरल नहीं रहा जितना नतीजों के अनुमानों से लगता है. वोटिंग के पीछे की कहानी, सामाजिक समीकरण और राजनीतिक गठबंधनों की दिशा कहीं ज़्यादा पेचीदा और दिलचस्प है.

इस बार के चुनाव एक खास पृष्ठभूमि में हुए. निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची के Special Intensive Revision (SIR) की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसे लेकर विपक्ष ने जमकर विरोध किया. विपक्षी दलों का आरोप था कि इस प्रक्रिया के ज़रिए मतदाता सूचियों में गड़बड़ियां की गईं, और कई नाम हटाए गए. इस मुद्दे ने चुनाव से पहले माहौल को राजनीतिक रूप से गर्मा दिया था, लेकिन अंततः इसका असर वोटरों के मूड पर सीमित ही रहा.

प्रशांत किशोर की एंट्री से बदलनी पड़ी चुनावी रणनीति

इस चुनाव का सबसे दिलचस्प मोड़ था प्रशांत किशोर की एंट्री, जिन्होंने अपनी नई पार्टी जन सुराज के साथ मैदान में उतरकर पुरानी सियासी ध्रुवीयता को चुनौती दी. उनके आने के बाद NDA और महागठबंधन (Grand Alliance) दोनों को अपने कास्ट-बेस्ड (जातिगत) राजनीतिक संदेशों में बदलाव करना पड़ा.

अब फोकस 'जाति' से हटकर 'विकास' और 'कल्याण योजनाओं' पर शिफ्ट हुआ. प्रशांत किशोर का जनसंपर्क अभियान भले ही हर सीट पर असरदार न रहा हो, लेकिन उन्होंने चुनावी विमर्श को नई दिशा दी - जिससे राज्य की राजनीति में दीर्घकालिक असर पड़ सकता है.

नीतीश कुमार का स्वास्थ्य और नेतृत्व पर सवाल

चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं थीं. कई राजनीतिक विश्लेषकों ने माना कि JDU की उम्रदराज़ नेतृत्व पर निर्भरता उसे कमजोर कर सकती है. लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट्स कुछ और कहानी कहती हैं. नीतीश कुमार अब भी ग्रामीण महिलाओं और अति पिछड़ी जातियों (EBCs) में भरोसे का चेहरा बने हुए हैं. विपक्ष ने उनके स्वास्थ्य को मुद्दा बनाने की कोशिश की, मगर यह मतदाताओं को ज़्यादा प्रभावित नहीं कर पाया. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि “नीतीश फैक्टर” अब भी NDA की रीढ़ है.

NDA की एकजुटता ने बदला समीकरण

2020 के चुनाव में LJP (रामविलास) ने JDU के वोटों में सेंध लगाकर NDA को नुकसान पहुंचाया था. लेकिन इस बार गठबंधन पूरी तरह एकजुट दिखा. भाजपा, जेडीयू, हम (Hindustani Awam Morcha) और VIP (Vikassheel Insaan Party) ने सीट बंटवारे से लेकर प्रचार तक एकसाथ तालमेल दिखाया. इस एकजुटता ने जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में जोश भरा और विरोधी खेमे को रक्षात्मक बना दिया.

हिंदी बेल्ट में NDA की पकड़ और विपक्ष की कमजोरी

बिहार में NDA की संभावित जीत सिर्फ एक राज्य की सत्ता की वापसी नहीं, बल्कि हिंदी बेल्ट में राजनीतिक पकड़ को और मज़बूत करने वाला संकेत होगी. उत्तर भारत के नौ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में NDA की सरकार पहले से है. इसके उलट, INDIA गठबंधन और कांग्रेस का उत्तर भारत में जनाधार तेजी से घटा है. जहां कांग्रेस के पास केवल हिमाचल प्रदेश में सत्ता है, वहीं बाकी राज्यों में पार्टी या तो सीमित भूमिका में है या गठबंधन पर निर्भर. अगर बिहार में भी हार होती है, तो यह राहुल गांधी और INDIA ब्लॉक दोनों के लिए बड़ा झटका साबित होगा.

BJP की भविष्य की रणनीति: मुख्यमंत्री पद पर नजर

हालांकि NDA की जीत की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार का नाम लगभग तय माना जा रहा है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगले पांच वर्षों में भाजपा अपना मुख्यमंत्री आगे कर सकती है. दिलचस्प तथ्य यह है कि बिहार अब तक हिंदी पट्टी का एकमात्र राज्य है जहां भाजपा का कभी मुख्यमंत्री नहीं रहा. 2005 से भाजपा के पास लगातार उपमुख्यमंत्री पद रहा है - पहले सुशील मोदी, फिर अब सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा के रूप में. इसलिए अगले कार्यकाल में भाजपा नेतृत्व परिवर्तन की रणनीति पर विचार कर सकती है.

महागठबंधन की दुविधा और कांग्रेस की चिंता

विपक्ष के लिए यह चुनाव एक ‘सेव बिहार, सेव प्रेज़ेंस’ जैसा था. महागठबंधन में शामिल राजद (RJD) ने सामाजिक न्याय की राजनीति को फिर से केंद्र में लाने की कोशिश की, लेकिन उसका प्रभाव सीमित रहा. कांग्रेस भी इस गठबंधन में ‘जूनियर पार्टनर’ बनकर रह गई. अगर यह चुनावी हार तय होती है, तो कांग्रेस का स्ट्राइक रेट और गिर जाएगा. 2024 के बाद से कांग्रेस सात में से नौ राज्यों में हार चुकी है - अरुणाचल, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा, महाराष्ट्र और अब बिहार. केवल जम्मू-कश्मीर और झारखंड में INDIA ब्लॉक को सफलता मिली है, वो भी तब जब कांग्रेस वहाँ सहायक भूमिका में रही.

राहुल गांधी पर दबाव और विपक्ष की रणनीतिक विफलता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल एक रैली में कहा था - “कांग्रेस अब अपने सहयोगियों के लिए बोझ बन चुकी है.” अगर बिहार में NDA की जीत होती है, तो यह बयान राजनीतिक रूप से और वज़नदार साबित होगा. राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष को न सिर्फ रणनीतिक रूप से कमजोर माना जा रहा है, बल्कि स्थानीय नेतृत्व और संगठनात्मक ऊर्जा की कमी भी उनकी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. INDIA गठबंधन के भीतर तालमेल की कमी और सीट बंटवारे पर मतभेद ने इस बार भी विपक्ष के प्रदर्शन को कमजोर किया.

अगर एग्जिट पोल्स सही साबित होते हैं, तो बिहार में NDA की जीत न सिर्फ राज्य बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में मोदी-शाह की रणनीतिक बढ़त को और मजबूत करेगी. यह जीत NDA को 2026 और 2029 के बड़े चुनावों के लिए ‘मॉरल बूस्ट’ देगी. वहीं विपक्ष के लिए यह आत्ममंथन का समय होगा - क्या INDIA ब्लॉक साझा नेतृत्व पर सहमत हो पाएगा? क्या कांग्रेस राज्य-स्तर पर अपने सहयोगियों को स्पेस दे पाएगी? और क्या नई राजनीतिक ताकतें, जैसे जन सुराज, भविष्य में सत्ता संतुलन बदल सकती हैं?

बिहार का एग्जिट पोल भले ही NDA की सीधी जीत दिखा रहा हो, लेकिन इस चुनाव का राजनीतिक संदेश कहीं गहरा है. यह बताता है कि “विकास बनाम जाति” का विमर्श धीरे-धीरे बिहार की राजनीति का चेहरा बदल रहा है. नीतीश कुमार की थकी हुई छवि के बावजूद जनता का भरोसा बना रहना, भाजपा का संगठनात्मक दमखम, और विपक्ष की विफल रणनीति - इन तीनों ने मिलकर NDA को एक बार फिर बढ़त दिलाई है. अब सबकी निगाहें 14 नवंबर, यानी नतीजों के दिन पर टिकी हैं, जो तय करेगा कि बिहार की राजनीति फिर से पुराने समीकरणों पर लौटेगी या कोई नया मोड़ लेगी.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025
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