बिहार में SIR और वोट चोरी जैसे मुद्दों को कितना भुना पायेगा महागठबंधन, एक सितम्बर की रैली से क्या होगा हासिल?
महागठबंधन बिहार में SIR और कथित वोट चोरी जैसे मुद्दों को भुनाने के लिए 17 अगस्त से ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ शुरू करेगा, जो सीमांचल और मिथिलांचल के 100 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करेगी. इसका समापन 1 सितंबर को पटना में विशाल रैली से होगा, जिसमें देशभर के विपक्षी नेता एक मंच पर आ सकते हैं. यह रणनीति मतदाता सूची में गड़बड़ी को चुनावी मुद्दा बनाकर विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन करेगी, हालांकि राज्यों में आपसी प्रतिद्वंद्विता इसकी स्थिरता के लिए चुनौती बनी रहेगी.

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति में बड़ा दांव खेलने की तैयारी में हैं. ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ के जरिए महागठबंधन न केवल चुनावी जमीन को गरमाने वाला है, बल्कि 1 सितंबर को पटना में आयोजित होने वाली विशाल रैली के जरिये विपक्षी एकता की नई तस्वीर भी पेश करेगा. खास बात यह है कि यह रैली तब हो रही है जब संसद में चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) और कर्नाटक में कथित ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर विपक्ष ने असाधारण एकजुटता दिखाई है.
बीते गुरुवार दिल्ली में आयोजित डिनर मीटिंग में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने सभी INDIA गठबंधन नेताओं को आमंत्रित किया. यदि सभी शीर्ष नेता पटना में एक मंच पर आते हैं, तो यह 2024 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी न दिखी विपक्षी एकता का दुर्लभ उदाहरण होगा. यह कदम उस समय अहम है जब केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में, जहां गठबंधन दल आपस में प्रतिद्वंद्वी हैं, अगले आठ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस यात्रा और रैली के जरिए महागठबंधन ‘मतदाता सूची में गड़बड़ी’ और SIR प्रक्रिया को चुनावी मुद्दा बनाकर सीधे जनता के बीच जाने वाला है. आखिर एक सितंबर को बिहार में होने वाली रैली से महागठबंधन को क्या हासिल होगा?
बिहार से विपक्ष का चुनावी बिगुल
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव 17 अगस्त से ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ की शुरुआत करेंगे, जिसकी परिकल्पना कांग्रेस की ओर से की गई है. यह यात्रा बिहार के सीमांचल और मिथिलांचल क्षेत्रों के करीब 100 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करेगी. महागठबंधन का मानना है कि SIR के मुद्दे पर जनता में गहरी नाराज़गी है, और इसी लहर को विधानसभा चुनाव तक बनाए रखा जा सकता है.
यात्रा का समापन 1 सितंबर को पटना में विशाल रैली के साथ होगा. इस दिन देशभर के प्रमुख विपक्षी नेता एक मंच पर दिख सकते हैं. इससे पहले, विपक्षी दल दिल्ली और रांची में अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के खिलाफ मंच साझा कर चुके हैं, लेकिन यह रैली चुनावी मुद्दे पर एकजुटता का नया उदाहरण होगी.
SIR और ‘वोट चोरी’ - एकजुटता का नया सूत्र
चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन प्रक्रिया इस समय विपक्षी एकता का केंद्र बिंदु है. बिहार में SIR के तहत मतदाता सूची में गड़बड़ियों के आरोप लगाए जा रहे हैं. राहुल गांधी ने कर्नाटक में भी ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाया और राज्य सरकार से जांच की मांग की. संसद में इस मुद्दे पर लगातार हंगामा हुआ, जिससे सत्तारूढ़ दल पर दबाव बढ़ा.
गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी, जिसने पहले INDIA गठबंधन से दूरी बना ली थी, वह भी इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ खड़ी दिख रही है. विपक्षी दल मानते हैं कि SIR प्रक्रिया राष्ट्रीय स्तर पर भी लागू की जा सकती है, जिससे सत्ता पक्ष को लाभ मिल सकता है. यही वजह है कि CPI(M) से लेकर TMC तक सभी दल इस मुद्दे पर एकजुट हैं.
राहुल-टीएमसी के रिश्तों में नरमी
डिनर मीटिंग में राहुल गांधी और टीएमसी के महासचिव अभिषेक बनर्जी के बीच लंबी बातचीत हुई. सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अभिषेक को भी पटना रैली में आने का निमंत्रण दिया है. यह कांग्रेस और टीएमसी के बीच हाल के तनाव के बाद रिश्तों में नरमी का संकेत माना जा रहा है. हालांकि, टीएमसी खुद को कांग्रेस का चुनावी सहयोगी नहीं मानती, लेकिन इस बार SIR और मतदाता सूची के मुद्दे ने दोनों को एक मंच पर लाने की संभावना बढ़ा दी है.
कांग्रेस ने संभाली कमान
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद कांग्रेस पर आरोप लगते रहे कि उसने INDIA गठबंधन को सक्रिय रखने की पहल नहीं की. लेकिन मानसून सत्र से पहले कांग्रेस ने विपक्षी दलों की फ्लोर लीडर्स की ऑनलाइन बैठक बुलाई और पिछले पखवाड़े में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने कई समन्वय बैठकों की अध्यक्षता की. इसका नतीजा यह हुआ कि संसद में SIR के मुद्दे पर विपक्ष ने लगातार रणनीतिक हंगामा किया और सरकार को घेरा.
राजनीतिक महत्व और चुनौतियां
महागठबंधन की यह रणनीति चुनावी दृष्टि से बेहद अहम है. बिहार में विधानसभा चुनाव में अब तीन महीने से भी कम समय बचा है. सीमांचल और मिथिलांचल क्षेत्र में मुस्लिम और यादव मतदाताओं के साथ-साथ महादलित और पिछड़ी जातियों की अच्छी खासी संख्या है, जिन तक महागठबंधन इस यात्रा के जरिये सीधा संदेश देना चाहता है.
लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं. केरल में कांग्रेस का मुकाबला वाम मोर्चे से है, जबकि पश्चिम बंगाल में टीएमसी, कांग्रेस और वाम दल आमने-सामने होंगे. ऐसे में, एक तरफ सहयोग और दूसरी तरफ सीधी चुनावी टक्कर का यह समीकरण विपक्षी एकता की स्थायित्व पर सवाल खड़ा करता है.
विपक्ष की अगली चाल
11 अगस्त को INDIA गठबंधन के सांसद संसद से चुनाव आयोग के दफ्तर तक मार्च निकालेंगे. यह मार्च SIR और चुनावी पारदर्शिता के मुद्दे को और ज्यादा राष्ट्रीय स्तर पर उभारने का प्रयास होगा. CPI(M) ने अपने बयान में कहा है कि चुनाव आयोग को मतदाता सूची में गड़बड़ियों और हालिया विधानसभा चुनावों में हुई कथित अनियमितताओं की पारदर्शी जांच करनी चाहिए, ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके.
‘मतदाता अधिकार यात्रा’ और 1 सितंबर की पटना रैली बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन की बड़ी रणनीतिक चाल है. यह न केवल मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों को चुनावी मुद्दा बनाएगी, बल्कि विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर उनके राजनीतिक संदेश को और मजबूत करेगी. अगर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी, खड़गे, अभिषेक बनर्जी और अन्य बड़े नेता एक साथ पटना में मंच साझा करते हैं, तो यह 2024 के बाद विपक्ष की अब तक की सबसे बड़ी ताकत का प्रदर्शन होगा.