Bihar Chunav: मिथिला की 43 विधानसभा सीटों पर क्या है जातीय समीकरण? कहां पर किसकी पकड़ ज्यादा
बिहार में मिथिलांचल क्षेत्र का सियासी दबदबा हमेशा से रहा है. लालू यादव के शासनकाल के दौरान इसका असर कम हुआ था, लेकिन अब मिथिलांचल का क्षेत्र एक बार उसी राह पर है. हालांकि, सत्ता में भागीदारी के मामले में अब भी मिथिलांच पहले वाली हैसियत को हासिल नहीं कर पाया है, लेकिन इस बार सरकार चाहे किसी की भी बने, मिथिलांचल के छह जिलों के सियासी नेताओं की उपेक्षा नहीं कर पाएंगे. इस क्षेत्र की 43 पर ब्राह्मण और भूमिहार का असर आज भी देखा जाता है.
बिहार की राजनीति में मिथिलांचल क्षेत्र को राजनीतिक दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील इलाका माना जाता है. इस क्षेत्र में प्रदेश की 243 में से 43 सीटें हैं. ये विधानसभा सीटें बिहार में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं. साल 2020 में एनडीए की नीतीश कुमार वाली सरकार इसी क्षेत्र की सीटों पर जीत की वजह से बनी. इस बार मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, सुपौल, सहरसा और मधेपुरा जिलों की सीटों पर आरजेडी ने भी ताकत झोंक दी है. लालू यादव इस बात को बखूबी जानते हैं कि मिथिलांचल में सीट हासिल किए बगैर सरकार बनाना बिहार में मुश्किल होगा. दूसरी तरफ बीजेपी और जेडीयू के नेता भी इस बार भी एनडीए की इस क्षेत्र की अधिकांश सीटों पर जीत दिलाने के लिए मगजमारी में जुटै हैं.
ब्राह्मण और भूमिहारों का दबदबा
मिथिलांचल यानी मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, सुपौल, सहरसा और मधेपुरा ब्राह्मण और भूमिहारों का दबदबा है. यादव और ईबीसी और ओबीसी भी अहम भूमिका निभाते हैं. करीब एक दर्जन सीटों पर मुस्लिम विधायक निर्णय भूमिका निभाते हैं. 1947 से लेकर 1990 तक इस क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. अब कांग्रेस की जगह बीजेपी और जेडीयू ने ले ली है. 1990 से 2005 के दौरान आरजेडी का दबदबा रहा था. इस क्षेत्र में कास्ट फैक्टर प्रत्याशी की जीत और हात में अहम है.
कांग्रेस के गढ़ में अब BJP-JDU का दबदबा
लालू यादव के शासनकाल में यह क्षेत्र न केवल राजनीतिक नजरिए से बल्कि हर मापदंडो पर उपेक्षित रहा. जबकि लालू यादव की पार्टी आरजेडी को इस क्षेत्र काफी संख्या में हर बार उनके प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचते हैं. यही वजह है कि 2010, 2015 और 2020 में संपन्न विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस को उतनी सफलता नहीं मिली, जितनी 1990 से 2005 के दौरान मिली थी. बता दें कि बिहार में अत्यन्त पिछड़ी जातियां (EBC) लगभग 36% औ ओबी 27 प्रतिशत से ज्यादा हैं.
पलायन और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा
मिथिलांचल की 43 सीटों पर इस बार गठबंधन रणनीति, वोट बैंक-गतिरोध और लोकल फैक्टर मिलकर निर्णायक भूमिका निभाएंगे. इस क्षेत्र में बेरोजगारी की वजल से पलायन की समस्या भी गंभीर है. विकास के मामले में यह क्षेत्र काफी पीछे है.
हालांकि, पिछले दो दशक के दौरान इस क्षेत्र में दरभंगा एयरपोर्ट, एम्स, चार लेन की सड़कों, मेडिकल कॉलेज, बिजली आपूर्ति की स्थिति में सुधार, मखना बोर्ड के गठन, जैसे बड़े काम हुए हैं. इसका लाभ एनडीए को मिला है. अगर NDA अपनी मजबूत साझेदारी बनाये रखे और JDU-BJP में अंदरुनी समन्वय हो, तो इस बार भी बाजी NDA के हाथ में जा सकती है.
यदि महागठबंधन ने स्थानीय स्तर पर पकड़ मजबूत की, जातिगत गठजोड़ सही दिशा में चला और युवा-वोटर्स की नाराजगी को भुनाया, तो इस क्षेत्र में बदलाव संभव है.
मिथिला की 43 विधानसभा सीटें
- मधुबनी जिले की सीटें: बेनिपट्टी, खजौली, बिस्फी, मधुबनी, राजनगर(SC), झंझारपुर, फुलपरास, लौकहा, बाबूबरही और हरलाखी.
- दरभंगा जिले की सीटें : केवटी, दरभंगा ग्रामीण, दरभंगा शहरी, हायाघाट, बहादुरपुर, जाले, गौड़ाबौराम, कुशेश्वरस्थान एससी और बेनीपुर, अलीनगर.
- समस्तीपुर जिले की सीटें : कल्याणपुर, उजियारपुर, वारिसनगर, समस्तीपुर, मोरवा, सरायरंजन, मोहिउद्दीननगर, विभूतिपुर, हसनपुर और रोसड़ा (SC).
- सुपौल जिले की सीटें : सुपौल, निर्मली, पिपरा, त्रिबेनीगंज, छातापुर.
- सहरसा जिले की सीटें : सहरसा, सोनबर्षा, सिमरी बख्तियारपुर, महिषी.
- मधेपुरा जिले की सीटें : मधेपुरा, बिहारीगंज (SC), आलमनगर और सिंहेश्वर.





