बिहार में रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग! प्रशांत किशोर ने गिनाए दो बड़े कारण, कहा - जनता का...'
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान ने इस बार कुछ ऐसा ही संकेत दिया जो चौंकाने वाले हैं. सुबह से शाम तक लंबी कतार में, युवाओं और महिलाओं की उत्साही भागीदारी ने बता दिया कि जनता का मूड इस बार बदला हुआ है. आखिर किन वजहों ने इस रिकॉर्ड वोटिंग का रास्ता खुला? जानें डिटेल में.
बिहार की राजनीति में एक कहावत मशहूर है - 'जब वोटिंग बढ़े, सत्ता बदले!' चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने भी कुछ ऐसा ही मत व्यक्त किया है. उन्होंने 6 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में रिकॉर्ड मतदान की दो प्रमुख वजह बताई है. इनमें पहला राजनीतिक बदलाव के लिए बढ़ती जन इच्छा और दूसरा त्योहारों के मौसम में अपने गृह राज्य लौटे प्रवासी मजदूरों की अप्रत्याशित भागीदारी. इस बात का जिक्र कर दें कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में है.
मतदान प्रतिशत 1951 के बाद सबसे ज्यादा
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बंपर मतदान पर प्रतिक्रिया देते हुए किशोर ने कहा, "आजादी के बाद से हुए चुनावों में, यह बिहार में अब तक का सबसे ज्यादा मतदान प्रतिशत है."
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार गुरुवार को 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान संपन्न होने के बाद मतदान का प्रतिशत 64.66% तक पहुंच गया, जो 2020 के विधानसभा चुनावों में दर्ज 57.29 फीसदी से ज्यादा है और 1951 के बाद से सबसे ज्यादा है.
60 फीसदी से ज्यादा लोग चाहते हैं बदलाव
उन्होंने कहा, "यह दो बातें दर्शाता है - पहला, जैसा कि मैं पिछले एक-दो महीनों से नहीं, बल्कि पिछले कुछ सालों से कह रहा हूं, बिहार में 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग बदलाव चाहते हैं."
जन सुराज के आने से मिला नया विकल्प
प्रशांत किशोर के अनुसार मतदान में यह वृद्धि दशकों से सुप्त पड़ी जनभावना में बदलाव को दर्शाती है. उन्होंने कहा, "पिछले 25-30 सालों से चुनावों के प्रति एक तरह की उदासीनता रही है, क्योंकि लोगों को कोई वास्तविक राजनीतिक विकल्प नजर नहीं आता था. जन सुराज के आगमन के साथ लोगों के पास अब एक नया विकल्प है." उन्होंने कहा कि नया विकल्प मिलने का लोगों में उत्साह है. ज्यादा मतदान बदलाव के लिए बड़े पैमाने पर मतदान हुआ है.
प्रवासी मतदाता को बताया एक्स फैक्टर
जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर ने प्रवासी मजदूरों की भूमिका पर भी जोर दिया और उन्हें इस चुनाव में 'एक्स फैक्टर' बताया. उन्होंने कहा, "छठ के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर, जो यहीं रुक गए थे, उन्होंने खुद वोट डाला और यह सुनिश्चित किया कि उनके परिवार और दोस्त भी वोट डालें. इसने सभी को चौंका दिया है."
केवल महिला मतदाता ही चुनाव परिणाम तय करेंगी, इस धारणा को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा, "जो लोग यह सोचते थे कि महिलाएं सिर्फ 10,000 की आर्थिक सहायता मिलने से चुनाव का फैसला कर देंगी, वे गलत हैं. महिलाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनसे भी आगे, प्रवासी मजदूर इस चुनाव के एक्स फैक्टर हैं."
बदलाव के लिए मतदान
पीके ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी राजनीतिक विशेषज्ञ, पार्टी या नेता ने मतदान में इतनी वृद्धि की भविष्यवाणी नहीं की थी. उन्होंने कहा, "किसी ने नहीं कहा था कि बिहार में इतना अप्रत्याशित मतदान होगा. पहली बार, युवाओं ने सबसे ज्यादा संख्या में मतदान किया है. उन्होंने सबसे ज्यादा सक्रियता से मतदान किया है और वे अपने भविष्य, बिहार में बदलाव और सुधार के लिए मतदान किया है."
चुनावी रुझानों का हवाला देते हुए, किशोर ने तर्क दिया कि इतनी बड़ी मतदाता भागीदारी आमतौर पर निरंतरता के बजाय राजनीतिक परिवर्तन की इच्छा का संकेत देती है. उन्होंने कहा, "आमतौर पर इतना बड़ा मतदान यथास्थिति के पक्ष में होना संभव नहीं होता?."
उन्होंने कहा, "एक-दो अपवाद हो सकते हैं, लेकिन पिछले बीस वर्षों में जहां भी मतदान इस हद तक बढ़ा है, वहां मौजूदा पार्टी या सरकार को इसकी कीमत चुकानी पड़ी है."
किशोर का विश्लेषण ऐसे समय में आया है जब राजनीतिक दल युवाओं, खासकर 18 से 29 वर्ष की आयु के युवाओं, में नौकरी, रोजगार और प्रवासन के मुद्दों पर बढ़ते असंतोष का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
युवाओं और प्रवासियों के बीच बढ़ता उत्साह चुनावी बदलाव में तब्दील होगा या नहीं, यह 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही स्पष्ट होगा.





