Bihar Election 2025: पॉलिटिक्स के खिलाड़ी दोनों, जीतेगा तो कोई एक ही न, लालू-नीतीश में कौन-कैसे मारेगा बाजी? ‘यक्ष-प्रश्न’ तो यह है!
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बीच सियासी जंग तेज हो गई है. वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी के अनुसार, दोनों नेता साम-दाम-दंड-भेद की राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. लालू यादव अपनी पार्टी को मुसलमान-यादव से आगे बढ़ाकर 'A to Z पार्टी' बनाने की रणनीति में लगे हैं. वहीं नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मजबूत गठबंधन में सत्ता बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. सवाल यही है कि इस बार बाजी किसके हाथ लगेगी?

राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद में लालू प्रसाद यादव के इशारे के बिना पत्ता भी इधर से उधर नहीं उड़ सकता है. भूरा बाल साफ करो, इसकी राजनीति के जन्मदाता भी बिहार में लालू प्रसाद यादव ही हैं. ‘भ’ से ‘भूमिहार’, ‘र’ से ‘राजपूत’ और ‘ब’ से ब्राह्मण यानी इन सबको बिहार और उसकी राजनीति से साफ करो. जिस तरह कभी पश्चिमी देशों से यहूदियों और गोरों के बीच से कालों के खिलाफ सफाई अभियान छेड़ा गया था. लालू और उनके राजनीतिक दल राजद का भी वही मूलमंत्र है. इसी तरह से एक कौम-वर्ग विशेष को तमिलनाडू के पेरियार में भी इसी तरह का एक खास नस्ल-कौम को भगाने के लिए आंदोलन शुरू हआ था. तब उस घिनौने कांड में भी विरोधियों के निशाने पर ब्राह्मण और सनातनी ही थे.
लालू प्रसाद की आत्मकथा से लेकर अब तक की उनकी जिंदगी के हर पन्ने पर जो लिखा गया है, उसमें जरूर लालू प्रसाद यादव ने इस बात का खंडन ही किया है कि उन्होंने ‘भूरा बाल’ हटाओ-भगाओ का कोई बयान दिया ही नहीं है. बीते दो दशक का अगर लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी राजद का इतिहास उठाकर देखा जाए तो, उनमें भी कहीं ‘भूरा बाल’ हटाओ का जिक्र देखने-पढ़ने को नहीं मिलता है. बल्कि इसके एकदम इतर अगर भूरा बाल हटाओ को लेकर कभी उसके पक्ष में अगर राजद में किसी ने मुंह भी खोला होगा, तो उसे राजद संगठन में सख्त कार्यवाही का भी सामना करना पड़ा होगा. बेशक, लालू प्रसाद यादव सत्ता से बाहर रहकर, बीते 2 दशक से नीतीश कुमार के पॉलिटिकल अम्पायर में सिकुड़े-सिमटे बैठे हों. इसका यह मतलब मगर बिलकुल नहीं है कि वे खामोश हैं. लालू बेहद मास्टरमाइंड पॉलिटिशियन थे हैं और रहेंगे. बस उनके सितारे अभी बुलंद नहीं है. यह अलग बात है.”
नेताओं की रग-रग से वाकिफ मुकेश बालयोगी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का आधिकारिक बिगुल बजने से ऐन टाइम पहले ही राज्य में शुरू हो चुकी राजनीतिक उठा-पटक के बीच, अंदर की यह तमाम बेबाक बातें बयान की हैं वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी ने. छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड की राजनीति और नेताओं की रग-रग से वाकिफ, बिहार की राजधानी पटना में मौजूद मुकेश बालयोगी रविवार को (20 जुलाई 2025, स्टेट मिरर हिंदी के नई दिल्ली में मौजूद एडिटर से खास बात कर रहे थे. बीते करीब 25 साल से खोजी, अपराध और राजनीतिक पत्रकारिता कर रहे मुकेश बालयोगी कहते हैं, “कुछ वक्त पहले राजद के युवा नेता लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ने साफ कहा था कि हम यानी राष्ट्रीय जनता दल राजद (Rashtriya Janata Dal RJD) A to Z पार्टी हैं. हम सिर्फ माय यानी सिर्फ मुसलमान या फिर यादवों तक सीमित ही राजनीतिक दल या राजनीतिक पार्टी बिलकुल नहीं है.''
तेजस्वी और लालू को संभावनाएं दिखी होंगीं
उसके बाद तेजस्वी का ही दूसरा नारा भी बिहार में खूब चर्चाओं में रहा जिसमें उन्होंने कहा था कि ''राजद माई-बाप की पार्टी हैं. मतलब, म से मुसलमान, यादव, ब से बहुजन, अ से अगड़ा और प से पिछड़ा की पार्टी हैं. लालू के राजनीतिक दल राजद के ऐसे इतिहास-अतीत को देखने से लगता है कि, लालू को अपने और पार्टी के भविष्य में कहीं कुछ शायद संभावना दिखने जरूर लगी हैं कि, बिहार की राजनीति अब वे सिर्फ मुसलमान और यादवों के बलबूते तो राजनीति में वर्चस्व कायम नहीं ही कर सकेंगे. और उन्होंने बेहतर सकारात्मक संभावनाओं की गरज से अपनी रणनीती बदलना शुरू कर दिया होगा.”
जेल-घर लालू कहीं खाली दिमाग नहीं बैठेंगे
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, “भले ही राजनीति के सिंहासन पर बीते 20 साल से नीतीश कुमार ही क्यों न जमे हों. इसका मतलब मगर यह निकालना गलत होगा कि लालू यादव ने अपने सोचने-समझने की ताकत ही खो दी हो. लालू यादव इन 20 साल में भी जेल और घर में खाली बैठकर भी कुछ न कुछ ऐसा तिकड़म भिड़ाने में ही व्यस्त रहे होंगे कि, कैसे नीतीश कुमार और बिहार में उनकी माई-बाप बनी भारतीय जनता पार्टी को पटखनी देकर चारों खाने चित कर डाला जाए. यह अलग बात है कि राजनीतिक सितारे बीजेपी के साथ नीतीश कुमार के बुलंद चलते आ रहे हैं. तो ऐसे में लालू या राजद की बेबसी फिर भला कौन काट सकता है?”
साम-दाम-दंड-भेद पॉलिटिक्स के खिलाड़ी दोनों
बिहार के आने वाले विधानसभा चुनाव 2025 में लालू और नीतीश कुमार कहां खड़े दिखाई दे रहे हैं? पूछने पर वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार मुकेश बालयोगी बोले, “जब-जब जहां कहीं भी लोकतंत्र मजबूत होता है तो उसमें विभेद और विभाजन के जो कारण हैं वो इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि एक सभ्य समाज का निर्माण करें. इसके लिए तमाम संगठन पहले भी काम करते थे आज भी कर रहे हैं. जहां तक बिहार की सत्ता के सिंहासन की लड़ाई का विषय है तो एक ओर लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव खुद को यदुवंशी भी कहते हैं. खुद को कृष्णवंशी भी कहते हैं. वहीं मौका पड़ने पर और वोट के खेल के दौरान यह खुद को पिछड़ा निरीह भी कहते हैं. काल-पात्र-समय के इसी गुणा-गणित को ही तो साम-दाम-दंड-भेद की राजनीति कहते हैं. ऐसी राजनीति करने के माहिर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दोनों ही हैं. बिहार की रजानीति के गहरे कुएं में झांककर देखने पर पता चलता है कि, यहां अगर लोग सबसे ज्यादा आतंकित रहे हैं तो वह यादवों से ही रहे हैं.”
सत्ता के स्वाद पर तो सिर्फ ‘राजद’ का ह़क
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में मुकेश बालयोगी ने कहा, “बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की मीनापुर विधानसभा सीट से विधायक हैं राजीव कुमार उर्फ मुन्ना यादव. जोकि लालू यादव की ही पार्टी राजद के एमएलए हैं. उन्होंने भी अभी कुछ दिन पहले ही कहा है कि सवर्णों तुम राजनीति के गलियारे में फ्रंटफुट की राजनीति से तुरंत पीछे हट जाओ अब तुम्हें यह राजनीति नहीं करने दी जाएगी. तुमको अगर राजनीति करनी है बिहार की तो हमारे पीछे (लालू की पार्टी राजद) चलकर करो. मुन्ना यादव के इस बयान ने साफ कर दिया है कि, बिहार में अगड़ा-पिछड़ा की राजनीति के अखाड़े में कुश्ती भले ही चाहे कोई भी लड़े, मगर सत्ता के सिंहासन पर सजने का स्वाद-आनंद सिर्फ लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी ही लेगी.”
राजनीति में ‘तौला’ नहीं सिर्फ ‘गिना’ जाता है
स्टेट मिरर हिंदी की वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी के साथ विशेष बातचीत का सार यही निकल कर सामने आता है कि, “बिहार की सत्ता में सामान्य तौर पर जो संख्या का गणित है उसमें बंदे को तौला नहीं गिना जाता है. मेरे कहने का मतलब साफ है कि चुनाव में जिस पार्टी का भी संख्या बल ज्यादा रहेगा वही सत्ता का सिंहासन संभालेगा. फिर चाहे वह बीजेपी और नीतीश का गठबंधन हो. या फिर लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी हो. लालू इस वक्त बिहार की राजनीति को पोलराइज नहीं कर पा रहे हैं. इस बात को वे भली-भांति समझ भी रहे हैं. लालू के सामने आज के वक्त में समस्या यह है वह बिहार में अपनी बदतर हो चुकी हालत को सुधारने का माद्दा तो रखते हैं. मगर फिर भी अपनी हालत और अपने दल की हालत को वे संवार पाने का मूल-मंत्र अप्लाई नहीं कर पा रहे हैं. और इसी का पूरा-पूरा फायदा नीतीश कुमार व बीजेपी को बिहार की राजनीति में मिल रहा है.”