कार्बी आंगलॉन्ग में हिंसा के बाद सरकार का सख्त रुख, विवादित जमीनों पर चल रहे सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लाइसेंस होंगे रद्द
असम के पश्चिम कार्बी आंगलॉन्ग में हुई हिंसा के बाद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बड़ा फैसला लिया है. सरकार ने Village Grazing Reserve (VGR) और Professional Grazing Reserve (PGR) जमीनों पर चल रहे सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के ट्रेड लाइसेंस रद्द करने और खाली जमीनों की घेराबंदी करने का एलान किया है. यह कदम कार्बी संगठनों और KAAC के साथ बैठक के बाद उठाया गया. इलाके में दो लोगों की मौत, दर्जनों पुलिसकर्मियों के घायल होने और व्यापक आगजनी के बाद हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं.
असम के पश्चिम कार्बी आंगलॉन्ग जिले में इस हफ्ते हुई घातक हिंसा के बाद राज्य सरकार ने बड़ा और कड़ा कदम उठाया है. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने साफ कर दिया है कि Village Grazing Reserve (VGR) और Professional Grazing Reserve (PGR) जमीनों पर चल रहे सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के ट्रेड लाइसेंस तत्काल रद्द किए जाएंगे. इसके साथ ही इन जमीनों को घेराबंदी कर सुरक्षित किया जाएगा ताकि भविष्य में किसी भी तरह का अतिक्रमण न हो.
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यह फैसला शुक्रवार को कार्बी समुदाय के संगठनों और कार्बी आंगलॉन्ग स्वायत्त परिषद (KAAC) के प्रतिनिधियों के साथ हुई उच्चस्तरीय बैठक में लिया गया. यह बैठक उस हिंसा के बाद बुलाई गई थी, जिसने पूरे इलाके को दहला दिया.
हिंसा में दो लोगों की मौत, दर्जनों पुलिसकर्मी घायल
पश्चिम कार्बी आंगलॉन्ग का खेरेनी इलाका इस सप्ताह हिंसा का केंद्र रहा. इस दौरान दो लोगों की मौत हो गई. मरने वालों में सूरज डे, जिनकी घर में आग लगाए जाने के दौरान जलकर मौत हो गई और लिनस फांगचो, जिनकी मौत पुलिस कार्रवाई के दौरान लगी चोटों से हुई, शामिल हैं. हिंसा में दर्जनों पुलिसकर्मी घायल हुए और कई घरों व दुकानों में आगजनी व तोड़फोड़ की गई. इस घटना के बाद पूरे जिले में तनाव का माहौल बन गया.
विवाद की जड़: PGR/VGR जमीनों पर अतिक्रमण का आरोप
कार्बी आंगलॉन्ग जिला छठी अनुसूची के तहत संरक्षित आदिवासी क्षेत्र है, जहां भूमि अधिकारों को लेकर विशेष संवैधानिक सुरक्षा है. यहां विवाद की मुख्य वजह PGR और VGR जमीनों पर कथित अतिक्रमण है. कार्बी संगठनों का आरोप है कि बड़ी संख्या में गैर-कार्बी आबादी, खासकर बिहार से आए लोग, इन संरक्षित जमीनों पर अवैध रूप से बस गए हैं. फरवरी में KAAC ने 7,000 एकड़ से अधिक जमीन से करीब 2,000 परिवारों को बेदखल करने का ऐलान किया था, लेकिन मामला अदालत में चला गया.
हाईकोर्ट में मामला, 339 याचिकाएं और स्टे
इस मुद्दे पर 339 लोगों ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं. कोर्ट ने तब तक स्टे ऑर्डर दे रखा है, जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि जिन जमीनों पर लोग रह रहे हैं, वे वास्तव में PGR/VGR घोषित जमीनें हैं या नहीं. मुख्यमंत्री सरमा ने बताया कि KAAC को 5 जनवरी तक अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है. कार्बी संगठनों को भी मामले में पक्षकार (Party) बनने की अनुमति दी जाएगी. राज्य सरकार कोर्ट से अपील करेगी कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए जल्द फैसला लिया जाए.
सरकार के बड़े फैसले एक नजर में
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बैठक के बाद कई अहम फैसलों की घोषणा की -
- PGR/VGR जमीनों पर चल रहे सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के ट्रेड लाइसेंस रद्द
- करीब 8,000 बीघा खाली PGR/VGR जमीन की घेराबंदी
- इन जमीनों पर वृक्षारोपण (Afforestation)
- PGR/VGR जमीनों पर बने सरकारी दफ्तरों को वहां से शिफ्ट किया जाएगा
- सिंचाई और मृदा संरक्षण विभाग की जमीनों से भी अतिक्रमण हटेगा
हिंसा से जुड़े मामलों पर नरमी, लेकिन मौत का केस बाहर
मुख्यमंत्री ने यह भी ऐलान किया कि हिंसा से जुड़े सभी मामलों को वापस लिया जाएगा, लेकिन आगजनी में हुई मौत से जुड़े मामले वापस नहीं होंगे. इसके अलावा लिनस फांगचो के परिजनों को सरकारी नौकरी, ₹10 लाख की अनुग्रह राशि (Ex-gratia) देने की घोषणा की गई.
कार्बी संगठनों की प्रतिक्रिया: ‘शुरुआत है, अंतिम नहीं’
बैठक में मौजूद कार्बी संगठनों के नेताओं ने फैसलों को पहला कदम बताया. हंगर स्ट्राइक पर रहे लितसोंग रोंगफार ने कहा - “अभी यह कहना मुश्किल है कि यह फैसला पूरी तरह संतोषजनक है या नहीं. हम इन निर्णयों को अपने लोगों के बीच ले जाएंगे, उनसे राय लेंगे और आगे का कदम तय करेंगे.”
मुख्यमंत्री ने बताया कि इस मुद्दे पर अगली बैठक 16 या 17 जनवरी को सभी हितधारकों के साथ होगी. सरकार का साफ संदेश है - संरक्षित आदिवासी जमीनों पर किसी भी तरह का अवैध कब्जा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन अंतिम कार्रवाई अदालत के आदेश के अनुसार ही होगी. यह मामला अब सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकार, संवैधानिक संरक्षण और सामाजिक संतुलन की परीक्षा बन चुका है.





