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Women's World Cup 2025: कंट्रोल टावर से लेकर रन मशीन तक... महिला वर्ल्ड कप 2025 की जीत के 5 हीरो

भारतीय महिला क्रिकेट ने 2025 में वह सपना सच कर दिया जो 20 साल से अधूरा था. फाइनल में साउथ अफ्रीका को हराकर पहली बार वनडे वर्ल्ड कप अपने नाम किया. इस जीत के पीछे 5 खिलाड़ियों का प्रदर्शन सबसे बड़ा कारण बना जहां दीप्ति ने ऑलराउंड गेम से कमाल किया, वहीं मंधाना, हरमनप्रीत, शेफाली और श्री चरणी ने मिलकर भारत को खिताब तक पहुंचाया. इस जीत ने इतिहास बदल दिया और महिला क्रिकेट का नया युग शुरू कर दिया.

Womens World Cup 2025: कंट्रोल टावर से लेकर रन मशीन तक... महिला वर्ल्ड कप 2025 की जीत के 5 हीरो
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 3 Nov 2025 9:28 AM

भारतीय महिला क्रिकेट इतिहास का वह पन्ना आखिरकार लिख दिया गया, जिसका इंतजार सालों से था. 2005 और 2017 में सिर्फ एक कदम दूर रहकर खिताब हाथ से फिसल गया था, लेकिन 2025 में नवी मुंबई ने वह सपना पूरा होते देखा, जब टीम इंडिया ने पहली बार महिला वनडे वर्ल्ड कप का खिताब जीतकर पूरे देश को जश्न में डुबो दिया. क्रिकेट का ये महायुद्ध केवल एक जीत नहीं, बल्कि उस विश्वास की मुहर था जो सालों की मेहनत, संघर्ष और बदलती सोच की वजह से बना. जैसे ही फाइनल में दक्षिण अफ्रीका पर 52 रनों की धमाकेदार जीत दर्ज हुई, भारतीय महिला क्रिकेट का नया स्वर्णिम अध्याय शुरू हो गया.

यह खिताब सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि उन खिलाड़ियों की कहानी है जिन्होंने पूरे टूर्नामेंट में बल्ले और गेंद से तूफान मचाया. आठ टीमों की टक्कर के बीच कई नाम उभरकर सामने आए, लेकिन पांच खिलाड़ी ऐसे रहीं, जिनके प्रदर्शन ने पूरे वर्ल्ड कप की दिशा ही बदल दी. दिलचस्प बात यह है कि रन बनाने वाली टॉप-5 में दो भारतीय, दो ऑस्ट्रेलियाई और एक दक्षिण अफ्रीकी बैटर रहीं और नंबर-1 पर रही खिलाड़ी की टीम ही फाइनल में हार गई. यानी यह वर्ल्ड कप सिर्फ जीत-हार का नहीं, बल्कि कहानियों, किरदारों और खेल के नए नायकों का वर्ल्ड कप था.

हरमनप्रीत कौर – कप्तान नहीं, ‘कंट्रोल टॉवर’ थीं

हरमनप्रीत कौर की कप्तानी इस वर्ल्ड कप में सिर्फ “फील्ड सेटिंग” नहीं थी, बल्कि पूरी मानसिक रणनीति थी. कई बार मैच ऐसे मोड़ पर आए जहां एक गलत फैसला भारत को मुकाबले से बाहर कर सकता था, लेकिन हरमन ने शांत दिमाग से प्लान बदले, गेंदबाज बदले, और मैच भारत की ओर मोड़ दिया. बल्लेबाजी में भी उन्होंने 260 रन जोड़े, जिसमें कई ऐसी पारियां शामिल थीं जो स्कोरबोर्ड पर शायद साधारण लगें, लेकिन वह पारी मैच का रुख बदल चुकी होती थी. मैदान पर उनकी बॉडी लैंग्वेज ही टीम के लिए मोटिवेशन बन गई थी – “हम जीतने आए हैं, सीखने नहीं.”

स्मृति मंधाना – रन मशीन, जो हर मैच में लय सेट करती रहीं

स्मृति मंधाना का पूरा वर्ल्ड कप एक संदेश था – “क्लास इज़ परमानेंट.” टूर्नामेंट की दूसरी सर्वाधिक रन-स्कोरर बनने का मतलब ही यह था कि भारत की हर बड़ी साझेदारी की शुरुआत उनके बैट से हुई. उन्होंने 9 मैचों में 434 रन बनाए और लगभग हर मैच में नई रणनीति के साथ उतरीं – कभी पावर हिटिंग, कभी स्ट्राइक रोटेशन, तो कभी एंकर बनकर पारी संभालना. स्मृति सिर्फ रन ही नहीं बना रहीं थीं, वह विपक्षी गेंदबाजों का रिद्म बिगाड़ने का काम भी कर रहीं थीं. भारत की “स्टार्ट में सॉलिडिटी, एंड में एग्रेसन” वाली स्क्रिप्ट में मंधाना टॉप लाइन की सबसे अहम लाइन थीं.

दीप्ति शर्मा – टूर्नामेंट की ‘डबल थ्रेट’ हीरोइन

इस वर्ल्ड कप में अगर किसी एक खिलाड़ी ने विपक्षी टीमों के सामने सबसे ज़्यादा मुश्किलें खड़ी कीं, तो वो दीप्ति शर्मा रहीं. उनका खेल सिर्फ आंकड़ों में नहीं, मैच की नब्ज़ पकड़ने की क्षमता में दिखाई दिया. जब टीम को रन चाहिए थे, दीप्ति ने बल्ला उठाया. जब विकेट चाहिए थे, उन्होंने गेंद घुमाकर मैच भारत की मुट्ठी में जमा दिया. 9 मैचों में 22 विकेट लेना और साथ ही 215 रन जोड़ना अपने आप में बताता है कि वह भारतीय टीम की सबसे भरोसेमंद ‘ऑलराउंड इंजन’ थीं. यही वजह रही कि फाइनल सिर्फ जीता नहीं- दीप्ति ने वर्ल्ड कप जीत को ‘पर्सनल स्टैम्प’ भी दिया और प्लेयर ऑफ द सीरीज का खिताब अपने नाम कर गईं.

शेफाली वर्मा – फाइनल की ‘गेम चेंजर’

अगर वर्ल्ड कप फाइनल में एक नाविक ने भारत की पारी को तूफान में डूबने से बचाया, तो वह शेफाली वर्मा थीं. सिर्फ 78 गेंदों पर 87 रन बनाना, वो भी बड़े मैच के दबाव में, बताता है कि शेफाली सिर्फ अटैकिंग प्लेयर नहीं, ‘बिग मैच प्लेयर’ हैं. उनकी बल्लेबाज़ी ने भारत को बड़ा टोटल दिया और फिर गेंदबाजी में 2 विकेट लेकर मैच को वहीं से मोड़ दिया, जहाँ साउथ अफ्रीका वापसी की कोशिश कर रहा था. वह उन खिलाड़ियों में से हैं जो कहते नहीं, खेलकर साबित करती हैं कि “फियरलेस क्रिकेट ही असली क्रिकेट है.”

श्री चरणी – वो स्पिनर, जिसने चुपचाप विपक्ष को तोड़ा

श्री चरणी का नाम शायद टूर्नामेंट शुरू होने से पहले हेडलाइन में नहीं था, लेकिन वर्ल्ड कप खत्म होने के बाद उनकी गेंदबाजी सबसे ज्यादा चर्चा में रही. 14 विकेट सिर्फ विकेट लेने भर का काम नहीं थे, वो विकेट मोमेंटम ब्रेकर थे. उनकी सबसे बड़ी ताकत थी – ‘किफायत + खतरा’, यानी रन रोकने की क्षमता और विकेट लेने की क्षमता दोनों एक साथ. वो हर मैच में विरोधी टीम के टॉप ऑर्डर या सेट बैटर को निकालकर मैच की धारा भारत की तरफ मोड़ती रहीं. दीप्ति शर्मा के बाद सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली भारतीय खिलाड़ी बनना खुद बताता है कि यह वर्ल्ड कप उनके लिए करियर टर्निंग पॉइंट साबित हुआ.

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