शारजाह का वो छक्का... जावेद मियांदाद का वह आख़िरी शॉट जिसने बदल दी पाकिस्तान क्रिकेट की तस्वीर
जावेद मियांदाद ने 1986 में शारजाह में भारत के खिलाफ अंतिम गेंद पर लगाए गए ऐतिहासिक छक्के की अनसुनी कहानी अपने शब्दों में साझा की. उन्होंने बताया कि कैसे रणनीति बनाकर खेला, किस तरह टीम संकट में थी और किस तरह अंतिम गेंद पर चौका मारकर जीत हासिल की. मियांदाद ने अपने आत्मविश्वास, दिमागी तैयारी और किस्मत का ज़िक्र करते हुए इसे पाकिस्तान क्रिकेट के सुनहरे दौर की शुरुआत बताया, जो आज भी याद किया जाता है.

भारत-पाकिस्तान क्रिकेट को देखने, सुनने, जानने वाला हर शख़्स 1986 में जावेद मियांदाद के शारजाह में ऑस्ट्रेल-एशिया कप के फ़ाइनल में जमाए उस छक्के से तो भली-भांति परिचित होगा जिसने इन दोनों देशों के बीच क्रिकेट के मैदान पर एक ऐसा बदलाव लाया कि भारत, पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अगले 62 में से 40 वनडे हार गया और केवल 19 मैच ही जीत सका.
जावेद मियांदाद के बल्ले से निकले उस शॉट को कई तरह से लगभग हर उस मौक़े पर याद किया जाता है जब भी ये दोनों चिर प्रतिद्वंद्वी आपस में भिड़ते हैं. अब एशिया कप में दोनों देश एक बार फ़िर आमने-सामने होने जा रहे हैं तो चलिए आज हम उस छक्के का पूरा किस्सा ख़ुद जावेद मियांदाद के ही शब्दों में सुनते हैं. जानते हैं कि उस अंतिम ओवर में क्या हुआ था और जावेद मियांदाद तब क्या सोच रहे थे.
अपने दिमाग़ में वो अंतिम ओवर बार-बार खेला
अपनी ऑटोबायोग्राफ़ी ‘कटिंग एज’ में जावेद मियांदाद लिखते हैं, "मैंने अपने दिमाग़ में वो अंतिम ओवर बार-बार खेला. 49वें ओवर के अंत में स्कोर सात विकेट पर 235 रन था. जीत के लिए छह गेंदों पर 11 रन चाहिए थे. चेतन शर्मा गेंद डाल रहे थे. दूसरे छोर पर वसीम अकरम मेरे साथ थे. मेरी योजना थी कि दो बाउंड्री जमाउंगा, फ़िर सिंगल और डबल ले कर एक या दो गेंद रहते जीत के साथ पवेलियन लौटूंगा. मैं इसके लिए निश्चित रूप से अंतिम गेंद तक तो नहीं ठहरना चाहता था.”
रोजर बिन्नी की शानदार फ़ील्डिंग पर नहीं हुआ यकीन
"पहली गेंद पर हम दो रन लेने में लगभग कामयाब ही हो गए थे कि दूसरे छोर पर अकरम रन आउट हो गए. हमने एक दूसरे को क्रास कर लिया था तो रन तो एक ही जुड़ा पर मैं स्ट्राइक लेने में कामयाब रहा.” "दूसरी गेंद पर मैंने मिड ऑन पर चौका जमा दिया." "इसके बाद जो तीसरी गेंद आई उसने मुझे परेशान कर दिया. लॉन्ग लेग बाउंड्री खुली हुई दिख रही थी तो मैंने अगली गेंद वहां मारने की योजना बनाई. जब गेंद मेरे बैट से लगी तो मुझे लगा कि ये पक्का बाउंड्री के पार जाएगी. वो गेंद शॉर्ट ऑफ़ लेंथ थी जो मेरे ऑफ़ स्टंप के पास गिरी थी. ये मेरे बल्ले पर बहुत अच्छे से आई थी, जिसे मैंने लॉन्ग लेग की ओर स्लॉग स्वीप कर दिया था. ये मेरा पहले से सोचा हुआ शॉट था. तो जैसे ही मैंने उस गेंद को मारा ये पक्का था कि चौका तो मिलेगा ही. लेकिन तेज़ी से बाउंड्री की ओर जाती उस गेंद की तरफ़ रोजर बिन्नी ने बैकवर्ड शॉर्ट लेग से उतनी ही तेज़ी से ख़ुद को उछाल दिया, डाइव लेते हुए ऐसी शानदार फ़ील्डिंग की कि मैं यकीन ही नहीं कर सका. नतीजा, हम केवल एक ही रन ले सके, और सबसे बुरा तो ये हुआ कि दसवें नंबर के नए खिलाड़ी ज़ुल्क़रनैन को अगली गेंद का सामना करना था." ज़ुल्क़रनैन मेरी तरफ़ चल कर आए और पूछे, "जावेद भाई, मुझे क्या करना चाहिए?"
"मैंने उनसे कहा, गेंद को ज़ोर से मारो. मुझे लगा कि अगर वो कनेक्ट कर पाए और हमारा भाग्य अच्छा रहा तो हमें बाउंड्री मिल सकती है. और अगर वो लपके भी गए तो इसकी पूरी उम्मीद है कि हम एक दूसरे को क्रॉस करने में कामयाब हो जाएंगे और मुझे फ़िर से स्ट्राइक मिल जाएगी." “तो मैंने उनसे कहा कि तुम्हे बड़ा शॉट खेलना ही होगा. उसने एक बड़ा शॉट लगाने की कोशिश भी की लेकिन चूक गए और शू्न्य पर बोल्ड हो गए- स्कोर 241 रन पर नौ विकेट हो गया.”
गेंद को बस छू कर दौड़ जाना...
“यहां मैंने ख़ुद से कहा कि मैच अब मुश्किल हालात में आ गया है. अंतिम बल्लेबाज़ आने वाला है, दो ही गेंद बची हैं, हमें जीत के लिए अभी पांच रन और बनाने है, और मैं ग़लत छोर पर अटका हूं.” “नंबर-11 पर तौसीफ़ अहमद उतरे. वो चल कर मेरे पास आए और पूछे कि उन्हें क्या करना चाहिए. मैं सोच रहा था कि अंतिम गेंद पर मुझे बैटिंग छोर पर होना पड़ेगा नहीं तो हमारे पास जीतने का वाकई कोई मौक़ा नहीं होगा. मैंने तौसीफ़ से कहा कि उन्हें इस गेंद पर सिंगल लेना ही पड़ेगा. मैंने कहा कि गेंद को बस छू कर दौड़ जाना.”
...जब अंतिम गेंद पर मिली स्ट्राइक
“निश्चित रूप से कोई हमें देख रहा होगा. अगली गेंद तौसीफ़ ने बल्ले से छू तो लिया लेकिन वो टीम इंडिया के इतिहास के एक सबसे नायाब फ़ील्डर मोहम्मद अज़हरुद्दीन के हाथों में जा पहुंची. पॉइंट से उन्होंने झटके से गेंद उठाई और नॉन स्ट्राइकर ऐंड पर दे मारा जो स्टंप्स को छुने से ज़रा से रह गई. तब तौसीफ़ विकेट से एक गज दूर थे, यानी अगर अज़हर की वो थ्रो स्टंप्स पर लगती तो तौसीफ़ निश्चित रूप से रन आउट हो जाते और भारत जीत जाता. पर आख़िर में हुआ ये कि मुझे अंतिम गेंद पर स्ट्राइक मिल गई. अज़हर का चूकना ऐसा था कि मानो पूरा पाकिस्तान इसके लिए दुआएं मांग रहा हो.”
कुछ ऐसा था मियांदाद का प्लान
“फ़िर वो अंतिम गेंद आई. मैदान में भारतीय टीम भी आपस में अपनी रणनीति पर बात कर रही थी. अब पूरा मैच उस गेंद पर पर टिका था कि क्या मैं उस अंतिम गेंद पर चौका जमा पाउंगा या नहीं. मैं भी अपने दिमाग़ में प्लान बना रहा था. मुझे यकीन था कि चेतन शर्मा उस गेंद को मेरे पैर पर यॉर्कर डालने की कोशिश करेंगे. लिहाज़ा मैंने बैटिंग क्रीज़ से आगे निकल कर खड़े होने का फ़ैसला किया. मेरा प्लान था कि पीछे की ओर झुक कर, अपने लिए रूम बनाउंगा और जितनी ज़ोर से हो सके गेंद को मारूंगा.” “मैं निश्चित रूप से स्लॉग करने वाला था. मैं तब 113 गेंदों पर 110 रन बना कर खेल रहा था. मुझे गेंद अच्छे से दिख रही थी. मुझे पूरा यकीन था कि अगर गेंद मेरे बल्ले पर आई तो बाउंड्री तो ज़रूर पहुंच जाएगी. मैंने एक बार फ़िर फ़ील्ड का मुआयना किया. वैसे तो मुझे अच्छे से पता था कि कौन सा फ़ील्डर कहां खड़ा है. फ़िर भी मैंने दोबारा इसे देखा और एक-एक कर उनकी गिनती की. मैं कोई मौक़ा नहीं देना चाहता था. मैंने पूरा समय लिया, अपने मन को शांत किया, स्टांस लिया और फ़िर प्रार्थना की.”
बेचारे चेतन शर्मा
“बेचारे चेतन शर्मा. लोग कहते हैं कि उन्होंने यॉर्कर डालने की कोशिश की लेकिन गेंद उनके हाथों से फिसल गई. या शायद, सच्चाई ये थी कि मैं ही अपने बैटिंग क्रीज़ से काफ़ी आगे खड़ा था. अब चाहे जो भी हो, वो अंतिम गेंद मेरे और पाकिस्तान के लिए ज़बरदस्त साबित हुआ- सही ऊंचाई पर एक फ़ुल टॉस, जो थोड़ी लेग साइड की ओर थी, मुझे बस उसकी स्विंग को पकड़ना था और गेंद उड़ते हुए मैदान से बाहर जा पहुंची.” “उस शॉट के बाद मैदान पर सबकुछ अनियंत्रित हो गया. हम जीत गए, पाकिस्तान जीत गया, तौसीफ़ जीत गया, मैं जीत गया. क्या ज़बरदस्त मैच था वो! ये मेरी ज़िंदगी की सबसे शानदार यादें हैं.” "मैंने हमेशा दुआ की थी कि मुझे ऐसा कुछ करने का मौक़ा मिले जो लोग हमेशा याद रखें... और अल्लाह ने मुझे वो मौका दिया."
पाकिस्तान के क्रिकेट राइटर ओसमान समीउद्दीन अपनी किताब द हिस्ट्री ऑफ़ पाकिस्तान में लिखते हैं, "वो एक शॉट ऐसा लगा जैसे कि कीमा मशीन उल्टी चल रही हो. उस एक शॉट में वो सब कुछ था जो पाकिस्तान ने पिछले डेढ़ दशक में बदला था - नए स्टार खिलाड़ियों का उभरना, पूरे देश में क्रिकेट का फ़ैलना, खिलाड़ियों की बढ़ती ताक़त, अब्दुल हफ़ीज़ कारदार और नूर ख़ान की सोच, डिपार्टमेंटल क्रिकेट का जन्म, टीवी का आना और पैसों का बढ़ना; तो दूसरी तरफ़ एक ऐसे गोल्डन पीरियड की शुरुआत हुई जिसे वास्तव में पाकिस्तान ने कभी देखा ही नहीं था. वो पाकिस्तान का सबसे सुनहरा दौर था."