लॉर्ड्स की सेंचुरी से भारत के सबसे महान कप्तान बनने तक: सौरव गांगुली की अद्भुत कहानी!
सौरव गांगुली की क्रिकेट यात्रा लॉर्ड्स में शतक से शुरू होकर भारत के सबसे सफल कप्तानों में शुमार होने तक पहुंची. उन्होंने मैच फिक्सिंग के दौर से टीम को उबारा, युवाओं को मौका दिया और आक्रामक नेतृत्व से भारत को कई ऐतिहासिक जीत दिलाईं. 424 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 38 शतक, 18575 रन और 100 विकेट लेने वाले गांगुली ने 2008 में संन्यास लिया. बाद में वो BCCI अध्यक्ष भी बने और भारतीय क्रिकेट को नई दिशा दी.

मोहम्मद अज़हरुद्दीन की कप्तानी में ब्रिसबेन में वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़ वनडे से डेब्यू करने वाले सौरव गांगुली को अपना दूसरा अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने के लिए क़रीब साढ़े चार साल का इंतज़ार करना पड़ा. लेकिन बाद में प्रिंस ऑफ़ कोलकाता और दादा जैसे उपनामों से मशहूर हुए इस हरफ़नमौला क्रिकेटर ने टीम इंडिया को मैच फ़िक्सिंग के बदनुमा दाग से उबारते हुए बहुत ऊंचे पायदान पर पहुंचाया.
दुनिया उनकी भारत के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में गिनती करने लगी. उनके आक्रामक नेतृत्व ने भारतीय क्रिकेट के एक नए युग की शुरुआत की जिसने 2000 के दशक में टीम इंडिया को घरेलू और विदेश पिचों पर कई यादगार जीत दिलाई.
08 जुलाई 1972 को जन्मे सौरव गांगुली ने एक शानदार स्ट्रोकप्लेयर के रूप में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपने करियर की शुरुआत की. 1996 में इंग्लैंड के ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान पर अपने डेब्यू टेस्ट के साथ ही लगातार दो टेस्ट मैचों में शतकीय पारी के साथ टेस्ट करियर का आगाज़ किया और जल्द ही टेस्ट के साथ साथ वनडे में ख़ुद को न केवल स्थापित किया बल्कि एकदिवसीय फ़ॉर्मेट में उनकी गिनती सर्वकालिक महान क्रिकेट की हस्तियों में की जाने लगी.
साल 2000 में सचिन तेंदुलकर ने जब टीम की कप्तानी छोड़ दी तो सौरव गांगुली को कप्तानी सौंपी गई, ये वही साल था जब भारतीय और दक्षिण अफ़्रीकी क्रिकेट मैच फ़िक्सिंग के संकट से जूझ रही थी. अचानक सौंपी गई कप्तानी के बाद उन्होंने न केवल नए जमाने की टीम बनाई बल्कि 2001 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भारत को मिली चमत्कारी जीत के सूत्रधार भी बने. बतौर लीडर उन्होंने ब्रिसबेन में खेले गए पहले मैच में शानदार 144 रन की पारी खेलकर जीत का माहौल पैदा किया और कप्तानी के नैसर्गिक गुण का बखूबी प्रदर्शन किया और अगला टेस्ट भारत जीत गया.
जब अचानक मिली कप्तानी पर गांगुली ने रखे विचार
कप्तानी सौंपे जाने के समय के बारे में बाद में सौरव गांगुली ने अपने संस्मरण "ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ़: माई रोलर-कोस्टर राइड टू सक्सेस" में ज़िक्र किया. उन्होंने लिखा, “यह भारतीय क्रिकेट का एक महत्वपूर्ण चरण था. मैच फ़िक्सिंग युग के काले पन्ने धीरे धीरे सामने आ रहे थे. पूरी यूनिट पस्त और हतोत्साहित थी. मुझे पता था कि मेरा काम कठिन होने वााला है." इस स्कैंडल के बावजूद गांगुली की कप्तानी की शुरुआत जीत के साथ हुई और उन्होंने भारत के लिए कई और टूर्नामेंट जीते. क्रिकेट के कई जानकार उन्हें अपेक्षाकृत अनुभवहीन खिलाड़ियों की टोली को मैच जीतने वाली टीम में बदलने का श्रेय देते हैं.
अपने रियाटमेंट के बाद गांगुली ने बीबीसी से बातचीत में कहा था, "मैंने देश के सभी हिस्सों से प्रतिभाशाली क्रिकेटरों को चुना. उनका पूरा समर्थन किया और भरपूर मौक़ा दिया जिसके पीछे यह सोच थी कि वो अपनी विफलताओं को भूल कर और टीम में बने रहने के प्रति असुरक्षा के डर को छोड़ कर अच्छा प्रदर्शन करने पर ध्यान दें." यही वजह है कि टीम इंडिया को महेंद्र सिंह धोनी जैसा दीर्घकालिक सफल कप्तान मिला. दुनिया ने गांगुली की वो आक्रामक कप्तानी देखी जिसने भारत की झोली में कई बेशकीमती जीत डाली. महेंद्र सिंह धोनी के युग से ठीक पहले तक सौरव गांगुली ही देश के सबसे सफल क्रिकेट कप्तान थे.
सफल कप्तान से संन्यास तक का सफ़र
2002 में इंग्लैंड में नैटवेस्ट ट्रॉफ़ी जीती. भारत को 2003 के वनडे वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में पहुंचाया, ऑस्ट्रेलिया में एक ड्रॉ सिरीज़ खेली और 2004 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ टेस्ट और एकदिवसीय सिरीज़ में जीत हासिल की. नवंबर 2000 से सितंबर 2005 तक 49 टेस्ट में से 21 में जीत दिलाई.
बतौर कप्तान विराट कोहली (21 शतक) से पहले सबसे अधिक 11 शतक जमाने का रिकॉर्ड सौरव गांगुली के नाम ही था. वनडे में गांगुली के बल्ले से 22 शतकों समेत 11363 रन निकले. उनके नाम 100 विकेट भी दर्ज हैं. वनडे में उनका प्रदर्शन किस कदर प्रभावी रहा उसका इस रिकॉर्ड से भी आकलन कर सकते हैं कि वो 311 वनडे खेले और उनमें से 10 फ़ीसद से अधिक यानी 32 में प्लेयर ऑफ़ द मैच चुने गए. हालांकि 2005 में चीज़ें बिगड़ गईं, जब उनकी पसंद के ही कोच ग्रेग चैपल से रिश्ते ख़राब हुए, विवादों का जन्म हुआ और उन्हें कप्तानी से हटा दिया गया.
जब क्रिकेट के पंडित गांगुली के भविष्य में खेलने पर कयास लगाते हुए उसकी धूमिल संभावना बता रहे थे तभी उन्होंने 2006 में दक्षिण अफ़्रीका के ख़िलाफ़ शानदार वापसी की और वहां की तेज़ पिचों पर भारत के लिए (सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण से भी अधिक) सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ बने. 2007 उनके टेस्ट करियर का स्वर्णिम साल था. तब उन्होंने 10 टेस्ट मैचों की 19 पारियों में 61.44 के औसत से 1106 रन बनाए. यह उनके टेस्ट करियर में का सबसे सफल वर्ष बना. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपने होम ग्राउंड पर शतक जमाए और अगले ही टेस्ट में (अपने 99वें टेस्ट मैच में) करियर की सबसे बड़ी 239 रनों की पारी खेली. उसी साल मेलबर्न में खेला गया बॉक्सिंग डे टेस्ट उनके करियर का 100वां टेस्ट था.
लेकिन उसी दौरान ऑस्ट्रेलिया में खेली जाने वाली सीबी सिरीज़ के लिए सौरव गांगुली को वनडे टीम में नहीं चुना गया और फिर वनडे टीम में उनकी कभी वापसी नहीं हुई.
इसके बाद श्रीलंका में खेली गई टेस्ट सिरीज़ में उनका बल्ला नहीं चला. रिपोर्ट्स आईं कि वो संन्यास लेने की सोच रहे हैं. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ अपने घरेलू मैदानों पर खेली जाने वाली सिरीज़ में उन्हें खेलने के लिए चुना गया. तो पहले टेस्ट से ठीक दो दिन पहले उन्होंने घोषणा कर दी कि यह उनकी आखिरी सिरीज़ होगी और 2-0 से जीत के बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
संन्यास के बाद भी शरीर के साथ देने तक खेलते रहे क्रिकेट
2008 में जब गांगुली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना छोड़ा तब तक उन्होंने कुल 424 मैचों में 38 शतकों समेत 18575 रन बना लिए थे. हालांकि वो आईपीएल और रणजी ट्रॉफ़ी जैसे घरेलू टूर्नामेंट में तब तक खेलते रहे जब तक शरीर ने उनका साथ दिया. आखिरकार अक्टूबर 2012 में गांगुली ने घोषणा कर दी कि वो आगे आईपीएल भी नहीं खेलेंगे. वो 40 साल के हो चुके थे. तब उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा, "आगे खेलना जारी रखना शरीर के लिए बहुत कठिन होगा." तब सौरव गांगुली के पास 2013 में पुणे वारियर्स के साथ साल खेलने का कॉन्ट्रैक्ट था. गांगुली बोले, "मैंने पांच सीज़न तक आईपीएल में खेलकर शानदार समय बिताया. इसने मुझे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट छोड़ने के बाद भी टॉप क्लास का क्रिकेट खेलते रहने का मौक़ा दिया. लेकिन मैं हमेशा ऐसा नहीं कर सकता." इसके साथ ही एक दिग्गज़ कप्तान के 21 साल के क्रिकेट करियर का अंत हो गया.
विज़डन ने गांगुली को सर विवियन रिचर्ड्स, सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा, डीन जोन्स और माइकल बेवन के बाद वनडे क्रिकेट का छठा सबसे महान बल्लेबाज़ का दर्जा दिया. 10 सालों के बाद सौरव गांगुली बंगाल क्रिकेट के प्रभारी बने और फिर ‘बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल फ़ॉर क्रिकेट इन इंडिया’ यानी बीसीसीआई के अध्यक्ष बने.