कैसे अगड़ों को साधने के लिए एकजुट हुए मोदी और नीतीश, चुनाव से पहले क्यों पड़ी आयोग बनाने की जरूरत?
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार ने अगड़ी जातियों को साधने की बड़ी रणनीति बनाई है. उच्च जाति आयोग का गठन कर सरकार ने इस वर्ग के सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर ध्यान देने का संकेत दिया है. यह कदम जातिगत संतुलन बनाने और सवर्ण वोटरों को NDA के पक्ष में गोलबंद करने की एक अहम कोशिश है. विपक्ष की OBC-मुस्लिम फोकस राजनीति के बीच यह चाल NDA को मजबूत बढ़त दिला सकती है.

Bihar Forward Caste Commission: 2025 के चुनावी माहौल में बिहार की राजनीति फिर एक बार जातिगत समीकरणों के केंद्र में आ गई है. खासकर अगड़ी जातियों (सवर्णों) को लुभाने की रणनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जोड़ी ने एक बार फिर साथ आकर एक नया संकेत दिया है. सवाल उठता है कि आखिर अब क्यों? और क्यों अगड़ों के लिए आयोग बनाने की जरूरत पड़ी?
दरअसल, बिहार में ओबीसी, दलित और मुसलमान वोट बैंक पर पहले से ही जबरदस्त राजनीतिक खींचतान रही है, लेकिन अब सवर्णों, विशेषकर ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ समुदाय को साधने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर नई पहल की जा रही है. सवर्ण वोट बैंक पारंपरिक रूप से बीजेपी का मजबूत आधार रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें असंतोष उभरता दिखा है.
उच्च जाति आयोग बनाने का मकसद
हाल ही में बिहार सरकार ने उच्च जाति आयोग बनाने की प्रक्रिया शुरू की है. इसका उद्देश्य सवर्ण समाज की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का मूल्यांकन करना है, ताकि उनके लिए नई योजनाएं और सहायता तय की जा सके. यह कदम सीधे तौर पर इस वर्ग के बीच यह संदेश देने की कोशिश है कि उन्हें भी सरकार की योजनाओं में प्राथमिकता मिलेगी.
मोदी-नीतीश की एकजुटता का अर्थ
नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ आते ही पिछड़ों और अति पिछड़ों के अलावा अब सवर्णों को भी जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है. नरेंद्र मोदी, जो 2024 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद बिहार की राजनीति में और सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, सवर्ण वर्ग को एकजुट रखकर बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को मजबूत करना चाहते हैं.
चुनावी रणनीति के संकेत
लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार में बीजेपी को सीमित सफलता मिली थी, जिसकी एक वजह अगड़ों की नाराजगी भी मानी जा रही थी. अब 2025 विधानसभा चुनाव में सवर्णों के वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं, खासकर तब जब विपक्षी खेमे में कन्फ्यूजन और बिखराव है. कांग्रेस और RJD का फोकस मुस्लिम-यादव समीकरण पर है, जिससे BJP-JDU को अगड़े वर्ग के लिए जगह बनाने का मौका मिला है.
क्या मिलेगा उच्च जाति आयोग से?
- जातिगत सर्वे से उपजी असंतुलन की भरपाई
- स्कॉलरशिप, स्वरोजगार योजनाएं, छात्रावास
- सवर्ण गरीबों के लिए आरक्षण की बहस को हवा
- चुनाव से पहले प्रतिनिधित्व और सम्मान का संदेश
मोदी नीतीश ने चला मास्टस्ट्रोक
मोदी और नीतीश का अगड़ा आयोग बनाना सिर्फ प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि 2025 की चुनावी ज़मीन तैयार करने का एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक है. इससे न सिर्फ नाराज सवर्ण वर्ग को जोड़ा जा सकता है, बल्कि यह जातिगत राजनीति की नई दिशा भी तय कर सकता है. आयोग एक तरफ सामाजिक संतुलन का प्रतीक बनेगा, तो दूसरी तरफ NDA को बड़ी राजनीतिक बढ़त भी दिला सकता है.