कार्तिक पूर्णिमा पर क्यों मनाई जाती है देव दीपावली ? जानिए इस पर्व से जुड़ी खास बातें
देव दीपावली का पर्व हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. यह दिन भगवान शिव और देवताओं की आराधना के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर गंगा के तटों पर दीप जलाते हैं, इसलिए इसे “देवों की दीपावली” कहा जाता है.
5 नवंबर को कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि है, इस दिन देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली भी कहते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवन शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था, जिसके कारण इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा कहा जाता है.
इसके अलावा इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार भी लिया था और साथ ही इस दिन गुरु नानक देव का जन्म भी हुआ था, जिसे प्रकाश पर्व के रूप में हर वर्ष मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 04 नवंबर 2025 को सुबह 10:36 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 05 नवंबर 2025 को शाम 06:48 बजे तक रहेगी. ऐसे में उदया तिथि के आधार पर कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार 05 नवंबर बुधवार को है.
भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर वध
हिंदू पंचांग के अनुसार दिवाली के 15 दिनों के बाद देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है. हर वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर खास तौर पर वाराणसी के घाटों पर हजारों की संख्या में दीये जलाकर देव दीपावली का पर्व मनाया जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इस दिन दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का संहार किया था. भगवान शिव के हाथों से त्रिपुरासुर का वध होने की खुशी में सभी देवी-देवताओं में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की थी. इस दिन सभी देवता स्वर्ग लोक से आकर भगवान शिव की नगरी काशी में आकर देव दीपावली मनाई थी. तभी यह यह परंपरा चली आ रखी है. इसके अलावा दिवाली के 15 दिनों के बाद बनारस के घाटों को दीयों की रोशनी से सजाया जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन काशी में दीपदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है.
भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा की तिथि का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन सृष्टि के संचालन कर्ता भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था. भगवान विष्णु के सभी 10 अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार माना जाता है. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन मत्स्य रूप धारण किया था. वहीं दूसरी तरफ एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि कार्तिक माह में भगवान विष्णु मत्स्य रूप में जल में विराजमान रहते हैं और कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को मत्स्य अवतार को त्यागकर वापस बैकुंठ धाम चले जाते हैं.
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सिख धर्म में महत्व
जहां एक तरफ कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व हिंदू धर्म में होता है, वहीं दूसरी तरफ सिख धर्म में भी कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरु नानकदेव जी का जन्म हुआ. सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं और इस दिन गुरुद्वारों में विशेष पूजा-पाठ और लंगर का आयोजन करते हैं.
कार्तिक पूर्णिमा पर ब्रह्मा जी का अवतरण
कार्तिक पूर्णिमा का संबंध ब्रह्मा जी के अवतरण से भी जुड़ा हुआ है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा का अवतरण पुष्कर के पवित्र सरोवर में हुआ था. कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही ब्रह्माजी ने अपनी शक्ति का उपयोग करके जीवों, पृथ्वी और प्रकृति का सृजन किया था, जिससे सृष्टि में जीवन का संचार हुआ.





