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बिहार के औरंगाबाद में गिरा था भगवान सूर्य का तीसरा टुकड़ा, यहीं देवमाता अदिति ने की थी छठी मैया की तपस्या

बिहार के औरंगाबाद स्थित देवार्क सूर्य मंदिर छठ महापर्व की आस्था का प्राचीन प्रतीक है. यह मंदिर सूर्य देव के वैदिक नाम ‘अर्क’ को समर्पित है और इसकी अनोखी पश्चिमाभिमुख संरचना इसे खास बनाती है. यहां देवी अदिति की तपस्या और षष्ठी देवी की कथा छठ पर्व की उत्पत्ति से जुड़ी है. हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहां अर्घ्य देकर सूर्य आराधना करते हैं.

बिहार के औरंगाबाद में गिरा था भगवान सूर्य का तीसरा टुकड़ा, यहीं देवमाता अदिति ने की थी छठी मैया की तपस्या
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( Image Source:  tourism.bihar.gov.in )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 27 Oct 2025 12:05 PM

छठ महापर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक संतुलन का प्रतीक है. बिहार में मनाया जाने वाला यह पर्व सूर्य, जल और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का अद्भुत संगम है. इस आस्था का सबसे प्राचीन और प्रभावशाली केंद्र है औरंगाबाद का देवार्क सूर्य मंदिर, जहां सदियों से सूर्य उपासना की परंपरा जीवित है.

‘देवार्क’ नाम अपने आप में वेदकालीन ऊर्जा और श्रद्धा का प्रतीक है. वैदिक ग्रंथों में सूर्य को ‘अर्क’ कहा गया है, जिसका अर्थ होता है प्रकाश, ऊर्जा और जीवन का रस. सूर्य नमस्कार के मंत्र ‘ओम अर्काय नमः’ में निहित यही अर्थ इस मंदिर की आधारशिला है. यहां की परंपरा यह बताती है कि सूर्य की आराधना केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मानव ऊर्जा का भी स्रोत है.

तीन सूर्य मंदिरों का अद्भुत त्रिकोण

देवार्क सूर्य मंदिर को तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों की श्रृंखला का एक भाग माना जाता है. काशी का लोलार्क और ओडिशा का कोणार्क इसके दूसरे दो हिस्से हैं. पौराणिक कथा कहती है कि जब भगवान शिव ने सूर्य देव को अपने त्रिशूल से भेदा, तो उनके तीन टुकड़े पृथ्वी पर गिरे. वही टुकड़े आज इन तीनों स्थानों पर प्रकट सूर्य उपासना के केंद्र हैं.

देव माता अदिति ने की थी तपस्या

मान्यता है कि जब देवता असुरों से पराजित हुए, तब देवमाता अदिति ने देवार्क क्षेत्र में षष्ठी देवी की आराधना की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें तेजस्वी पुत्र आदित्य का वरदान दिया, जिन्होंने देवताओं को विजय दिलाई. यही कथा आगे चलकर छठ पर्व के रूप में लोकजीवन में रची-बसी, जहां माताएं अपनी संतान की समृद्धि के लिए सूर्य और षष्ठी देवी की पूजा करती हैं.

छठी से आठवीं सदी के बीच हुआ था मंदिर का निर्माण

देवार्क सूर्य मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी अद्वितीय है. सामान्यतः सूर्य मंदिर पूर्वाभिमुख होते हैं, लेकिन यह मंदिर पश्चिम की ओर मुख किए हुए है. पत्थरों पर की गई बारीक नक्काशी, मूर्तियों का सौंदर्य और स्थापत्य कला इसे एक दुर्लभ विरासत बनाते हैं. इतिहासकारों का मानना है कि इसका निर्माण छठी से आठवीं सदी के बीच हुआ होगा.

षष्ठी देवी और ज्योतिषीय महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अदिति की तपस्या से षष्ठी देवी का आविर्भाव हुआ था. ज्योतिषशास्त्र में भी षष्ठम भाव को संरक्षण और विजय का भाव माना गया है. यही कारण है कि छठ पर्व की षष्ठी तिथि मातृत्व, संतान सुख और पारिवारिक समृद्धि से जुड़ी मानी जाती है.

देवार्क में छठ का अनुष्ठान

हर साल छठ पर्व के दौरान देवार्क सूर्य मंदिर श्रद्धा का महासंगम बन जाता है. हजारों व्रती यहां सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं. मान्यता है कि यहां दिया गया अर्घ्य विशेष फलदायी होता है क्योंकि यह स्थान स्वयं छठी मैया और सूर्य देव के संगम स्थल के रूप में माना जाता है.

सूर्य उपासना की सनातन परंपरा

देवार्क सूर्य मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की निरंतरता का प्रतीक है. यहां हर छठ पर यह संदेश गूंजता है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध परस्पर सहयोग, कृतज्ञता और संतुलन पर आधारित है. यही छठ का सच्चा दर्शन है.

बिहारछठ पूजा
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