कौवे के बिना अधूरा है श्राद्धकर्म, जानिए पितृपक्ष का महत्व और नियम
पितृपक्ष हिंदू धर्म में पितरों को श्रद्धांजलि देने का महत्वपूर्ण समय है, जो भाद्रपद पूर्णिमा से सर्वपितृ अमावस्या तक चलता है. इस दौरान श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है और वंशजों पर आशीर्वाद मिलता है. पंचबलि में पांच जगहों पर भोजन अर्पित किया जाता है, जिसमें कौवा विशेष रूप से पितरों का दूत माना जाता है. श्राद्ध के दौरान सात्विक भोजन, पवित्र स्थान और श्रद्धा का पालन करना अनिवार्य है.

हिंदू धर्म में पितरों को तर्पण और श्राद्ध कर्म करने का विशेष महत्व है. इस कारण से वर्ष में 15 दिन पितरों को समर्पित होता है. हिंदू धर्म में पितृपक्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर सर्वपितृ अमावस्या तक चलता है. पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्माएं धरती पर आती हैं और उनके जो परिजन पृथ्वी पर रहते हैं उनसे तर्पण और भोजन ग्रहण कर संतुष्ट होते हैं.
गरुड़ पुराण में वर्णन मिलता है कि जो व्यक्ति पितृ पक्ष में श्रद्धा से श्राद्ध करता है, उसके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है. पितरों को अन्न और जल अर्पित करने से उनके अपूर्ण इच्छाओं की तृप्ति होती है. मान्यता है कि जब पितर संतुष्ट होते हैं तो वे अपने वंशजों के जीवन से बाधाओं को दूर कर देते हैं. पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करते समय एक विशेष प्रकार की परंपरा निभाई जाती है, जिसको पंचबलि के नाम से जाना जाता है. इस पंचबलि में पितरों को प्रसन्न करने के लिए पांच जगहों पर भोजन के अंश निकाले जाते हैं. जो पांच तरह के जानवरों को अर्पित होते हैं जो गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चीटियां होती हैं. इनमें से कौआ को भोजन खिलाना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. आइए जानते हैं पितृपक्ष में कौवे को भोजन अर्पित करने का महत्व.
पितृपक्ष में कौए को भोजन अर्पित करना क्यों हैं जरूरी?
सनातन धर्म में श्राद्ध और पितृपक्ष के दौरान कौए का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौवे को पितरों का दूत माना जाता है. पितृपक्ष के दौरान पितरों के लिए बनाया गया भोजन जब कौवे को कराया जाता है तो माना जाता है कि परिजनों के द्वारा अर्पण किया गया भोजन सीधे कौवे के माध्यम से पितरों तक पहुंचता है. ऐसे में पितृपक्ष के दौरान पितरगणों को प्रसन्न करने के लिए कौवे को भोजन करना बहुत ही जरूरी माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगर श्राद्ध पक्ष के दौरान कौवे को निकला गया भोजन वह आकर ग्रहण कर लेता है तो माना जाता है कि इससे पितर प्रसन्न होते हैं. इस कारण से पितृपक्ष में पंचबलि में एक कागबलि के बिना पितरों को तर्पण देना अधूरा माना जाता है.
श्राद्ध करने के नियम
- हिदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है. हिंदू धर्म के अनुसार पितृपक्ष पितरों को समर्पित होता है. ऐसे में पितरों को श्राद्ध कर्म उनकी मृत्यु की तिथि के अनुसार ही किया जाता है. लेकिन जिन परिजनों को अपने पितरों की मृत्यु की तिथि मालूम न हो तो उनको अमावस्या तिथि को श्राद्ध करना चाहिए.
- पितृपक्ष के दौरान पितरों को तर्पण और श्राद्ध कार्यों के लिए घर के किसी पवित्र स्थान पर ही किया जाना चाहिए. इससे श्राद्ध कर्म विशेष फलदायी माना जाता है.
- पितृपक्ष में पितरों को जो भोजन अर्पित करें वह बहुत ही सात्विक होना चाहिए. इनके भोजन में लहसुन, प्याज और मांसाहार बिल्कुल वर्जित करना चाहिए.
- पितृपक्ष के दौरान पितरों को जल, तिल और कुश से पिंडदान करना चाहिए. इससे पितर तृप्त होते हैं और अपने परिजनों को आशीर्वाद मिलता है.
- श्राद्ध पक्ष में पितरों को भोजन कराने के बाद ब्राह्राणों को भोजन करना चाहिए.
- अगर किसी कारण से श्राद्ध पक्ष की विधि पूरी न हो सके तो केवल श्रद्धा और भक्ति से पितरों को तर्पण करें.
- श्राद्ध का दिन श्रद्धा और संयम के साथ बिताना चाहिए.
साल 2025 का दूसरा और आखिरी चंद्र ग्रहण 7 सितंबर की रात भारत में दिखाई देगा. यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा, जिसमें चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देगा और इसे ब्लड मून कहा जाएगा. सूतक काल दोपहर 12:57 बजे से शुरू होगा और ग्रहण समाप्त होने पर खत्म होगा. ग्रहण हिंदू धर्म में शुभ नहीं माना जाता और इस दौरान पूजा व अन्य शुभ कार्य नहीं किए जाते. यह ग्रहण कुंभ राशि में लगेगा.