चंद्रग्रहण के साये में 7 सितंबर से पितृपक्ष होगा शुरू, जानिए ग्रहण में श्राद्ध के नियम
साल 2025 का पितृपक्ष इस बार और भी खास होने वाला है, क्योंकि इसकी शुरुआत 7 सितंबर से हो रही है और उसी दिन चंद्रग्रहण का साया भी पड़ रहा है। पितृपक्ष का समय वह पावन अवधि मानी जाती है जब लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान जैसे कर्मकांडों के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. ऐसे में चलिए जानते हैं ग्रहण के दौरान श्राद्ध से जुड़े नियमों के बारे में.

इस वर्ष पितृ पक्ष का आरंभ 7 सितंबर से होने जा रहा है, जो सर्वपितृपक्ष अमावस्या को समाप्त होगा. लेकिन इस बार श्राद्ध पक्ष बहुत ही खास रहने वाला होगा क्योंकि पितृपक्ष के पहले दिन ही साल का आखिरी चंद्र ग्रहण लगेगा. श्राद्ध पक्ष की शुरुआत में ही ग्रहण का लगना बहुत ही विशेष माना जाता है. 7 सितंबर को हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि है और इसी तिथि पर चंद्र ग्रहण भी लगेगा, जो भारत में दिखाई देगा.
इससे अलावा भाद्रपद माह खत्म होगा और आश्विन माह का कृष्ण पक्ष आरंभ में ही चंद्र ग्रहण लगेगा. चंद्र ग्रहण और श्राद्ध का पहला दिन एक ही दिन होने से पितरों के तर्पण पर क्या असर देखने को मिलेगा इसके बारे में शास्त्र क्या कहता है. आइए विस्तार से जानते हैं.
श्राद्ध पक्ष और चंद्र ग्रहण का समय
पंचांग की गणना के अनुसार, 07 सितंबर को साल का आखिरी चंद्र ग्रहण देखने को मिलेगा. भारतीय समय के अनुसार यह चंद्र ग्रहण 07 सितंबर को रात 09 बजकर 57 मिनट से शुरू हो जाएगा. इस चंद्र ग्रहण का समापन 08 सितंबर की रात को 01 बजकर 26 मिनट पर होगा. इस तरह तरह चंद्र ग्रहण का कुल समय करीब 03 घंटे और 29 मिनट तक रहेगा. 7 सितंबर को चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देने के कारण इसका सूतककाल ग्रहण लगने से 9 घंटे पहले शुरू हो जाएगा. ऐसे में दोपहर 12 बजकर 57 मिनट पर सूतक काल लग जाएगा. ऐसे में इस समय से मंदिरों के कपाट बंद हो जाएंगे. चंद्र ग्रहण के दिन ही श्राद्ध पक्ष शुरू होंगे और इसी दिन से पितृ कार्य शुरू हो जाएंगे. ऐसे में जिन पितरों का श्राद्ध पूर्णिमा तिथि को होगा उनके परिजनों को सूतक लगने से पहले ही श्राद्ध कर्म और ब्राह्राणों को भोजन करा देना उचित रहेगा.
चंद्र ग्रहण पर क्या है पितरों के तर्पण का नियम
भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि पर चंद्र ग्रहण लगेगा और इसी दिन से श्राद्ध पक्ष भी शुरू होगा जाएगा. शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध पूर्णिमा के दिन ही ही असस्त मुनि का तर्पण किया जाता है, साथ ही उन पितरों का भी तर्पण करने का नियम है जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की पूर्णिमा तिथि को हुई थी. पूर्णिम तिथि पर अगस्त मुनि का तर्पण दोपहर से पहले ही कर लेना चाहिए. ऐसे में अपने पितरों का तर्पण दोपहर 12 बजे से पहले करना अच्छा रहेगा क्योंकि इसके बाद से ग्रहण का सूतककाल लग जाएगा.
पितृपक्ष में ग्रहण का लगना शुभ
हिंदू धर्म ग्रंथों में ग्रहण लगने के बाद पितरों को श्राद्ध, तर्पण और सम्मान देना बहुत ही अच्छा माना जाता है. चंद्र ग्रहण की समाप्ति के बाद आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि में मोक्ष के बाद अपने-अपने पितरों का तर्पण करना शुभ रहेगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान स्वर्गलोक से पितर गण पृथ्वी पर आते हैं और अपने पितरों से तर्पण लेकर उनको आशीर्वाद देकर वापस पितरलोक चले जाते हैं.
पितरों को काले तिल का दिन का महत्व
हिंदू मान्यताओं में पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म में पितरों को काले तिल का तर्पण करना बहुत ही शुभ माना जाता है. ऐसे में पितृपक्ष के दौरान स्नान करने के बाद पितरों को गंगाजल और काले तिल का तर्पण जरूर करना चाहिए. साथ ही इस दिन गरीबों को काले तिल और कुछ वस्तुओं का भी दान करना चाहिए. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.