शनिदेव की दृष्टि को क्यों माना जाता है अशुभ और धीमी चाल के पीछे क्या है कथा, जानिए सबकुछ
शनि जयंती पर विशेष रूप से पूजा करने और कुछ उपाय बहुत ही लाभकारी साबित होता है. ज्योतिष में शनि देव का विशेष महत्व होता है और इन्हे सभी ग्रहों में न्यायाधिपति और कर्मफलदाता माना गया है. इसके अलावा शनि की द्दष्टि को अच्छा नहीं माना जाता है.

आज ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि है और आज के दिन ही शनि जयंती मनाई जा रही है. हिंदू धर्म में शनि जयंती का विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को न्याय के देवता और कर्मफलदाता शनिदेव का जन्मोत्सव के रूप में जयंती मनाई जाती है.
शनि जयंती पर शनि मंदिर जाकर शनिदेव के दर्शन और विधि-विधान के साथ पूजा की जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि शनि जयंती पर शनि देव की पूजा करने से जीवन में आने वाली हर एक तरह बाधाएं दूर होती हैं. इस दिन पूजा करने से शनि दोष, शनि साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति मिलती है. ऐसी मान्यता है शनि को मिले शाप के चलते वे जिस किसी पर अपनी द्दष्टि डाल देते हैं उनको जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा सभी ग्रहों में शनि देव सबसे मंद गति से चलने वाले ग्रह भी हैं. आइए जानते हैं शनिदेव से जुड़ी कुछ खास बातें.
क्यों मानी जाती है शनि की दृष्टि को अमंगलकारी ?
शनि की द्दष्टि को बहुत ही खराब और अशुभ माना जाता है. इसके पीछे कुछ कथा है. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शनिदेव का विवाह उनके पिता ने चित्ररथ की तपस्विनी और तेजस्विनी कन्या से करवा दिया. शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे और हमेशा उनकी पूजा और तपस्या में लीन रहते थे. विवाह के बाद एक दिन जब उनकी पत्नी ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शनिदेव के पास पहुंचीं, तो वे भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में लीन थे.
देवी पति की पूजा और तपस्या के खत्म होने का इंतजार करते-करते थक चुकी थी. तपस्या में लीन रहने की वजह से शनि देव का पत्नी की तरफ ध्यान नहीं गया और तब पत्नी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया कि आज से तुम जिसकी ओर दृष्टि करोगे, उसका अमंगल हो जाएगा, तब से शनिदेव सदैव सिर झुकाकर रखते हैं ताकि किसी का अनिष्ट न हो. इस कारण से शनि की द्दष्टि को बहुत ही अमंगलकारी और अशुभ माना गया है.
सभी ग्रहों में सबसे मंद चाल शनिदेव की ही क्यों ?
शनि सभी ग्रहों में सबसे धीमी चाल से चलने वाले ग्रह हैं. यह किसी एक राशि में करीब ढाई वर्षों तक रहते हैं, फिर इसके बाद दूसरी राशि में जाते हैं. शनि की धीमी चाल की वजह इनका शुभ और अशुभ प्रभाव ज्यादा समय तक जातकों पर रहता है. शनि की धीमी चाल के पीछे पुराणों में इसकी एक कथा है. कथा के अनुसार भगवान शंकर ने अपने परम भक्त दधीचि मुनि के घर पिप्पलाद रूप में जन्म लिया. जन्म से पूर्व ही उनके पिता की मृत्यु हो गई और माता सती हो गईं. जब युवा पिप्पलाद ने देवताओं से इसका कारण पूछा तो उन्होंने शनिदेव की कुदृष्टि को उत्तरदायी ठहराया. यह सुनकर पिप्पलाद ने क्रोध में आकर शनिदेव पर ब्रह्म दंड का प्रहार कर दिया. ब्रह्म दंड के प्रहार से भयभीत होकर शनिदेव तीनों लोकों में भागे, फिर भी ब्रह्म दंड ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनके पैर पर आकर लगा. इससे शनिदेव लंगड़े हो गए और उनकी गति मंद हो गई.