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तीन दिन रजस्वला रहती हैं मां, लाल हो जाता है ब्रह्मपुत्र नदी का पानी

भगवान शिव के मोह को भंग करने के लिए भगवान नारायण ने जब माता सती के 51 टुकड़े कर दिए तो उनकी यानि का भाग नीलांचल पर्वत पर गिरा था. उसी समय से यहां माता योनि रूप में विराजमान हैं और उनकी इसी रूप में पूजा भी होती है.

तीन दिन रजस्वला रहती हैं मां, लाल हो जाता है ब्रह्मपुत्र नदी का पानी
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कामाख्या देवी
स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 24 Sept 2024 7:20 PM

महीने में तीन दिन रजस्वला रहती हैं मां, लाल हो जाता है ब्रह्मपुत्र नदी का पानीअसम के गोहाटी स्थित कामाख्या देवी का मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. देवी भागवत के मुताबिक इस स्थान पर माता सती की योनि गिरी थी. इस लिए इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि माता की पूजा ही योनि रूप में होती है. मान्यता है कि जिन दिनों में माता रजस्वला होती हैं, उस समय मंदिर के पास से गुजर रही ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रक्तिम यानी लाल हो जाता है. 51 शक्तिपीठों में से एक यह मां कामाख्या देवी का मंदिर ना केवल अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है, बल्कि आश्चर्यजनक रूप से बहुत चमत्कारिक भी है.

राजधानी गोहाटी से करीब 20 किमी दूर नीलांचल पर्वत पर स्थापित माता के इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है. मंदिर के गर्भगृह में एक कुंड जरूर नजर आएगा. यह कुंड हमेशा फूलों से ढका रहता है. मान्यता है कि इस कुंड के रूप में ही माता यहां विराजमान हैं और उनकी इसी रूप में पूजा भी होती है. इस कुंड से एक जलधारा निकलती है और जाकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है. मान्यता है कि हर महीने तीन दिन के लिए माता रजस्वला होती है. उस समय कुंड से रक्त की तरह जलधारा निकलती है और इसी जलधारा की वजह से ब्रह्मपुत्र का पानी भी रक्तिम हो जाता है. प्रसंग में आगे बढ़ने से पहले जान लीजिए इस मंदिर का इतिहास क्या है.

यहां गिरा था माता सती का योनि भाग

देवी भागवत, मार्कंडेय पुराण समेत कई अन्य पौराणिक ग्रंथों में कथा आती है कि जब माता सती ने योगाग्नि में खुद को भस्म कर लिया तो उनके मोह में भगवान शिव उनके शरीर को लेकर तांडव करने लगे थे. इसके चलते सृष्टि में प्रलय की स्थिति आ गई थी. हालात को देखते हुए भगवान नारायण ने शिव के मोह को भंग करने के लिए सुदर्शन चक्र चलाया और सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए. यह टुकड़े पृथ्वी पर जहां गिरे, उस स्थान को शक्तिपीठ कहा गया. जिस स्थान पर आज कामाख्या देवी का मंदिर है, यहां माता योनि गिरी थी. इसलिए माता यहां योनि रूप में ही विराजमान हैं और उनकी इसी रूप में पूजा भी होती है.

प्रसाद में मिलता है लाल रंग का गीला कपड़ा

माता के इस मंदिर में भक्तों को अजीब तरह का प्रसाद मिलता है. यह प्रसाद लाल रंग का गीला कपड़ा होता है. दरअसल जिन दिनों माता रजस्वला होती हैं, माता के कुंड पर सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है. इसके बाद तीन दिन मंदिर के कपाट बंद रहते हैं. फिर जब कपाट खुलता है तो वही सफेद कपड़ा गीला और रक्तिम हो जाता है. यह प्रसाद पाने वाले भक्त अपने को सौभाग्यशाली मानते हैं.

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