क्या स्वप्नदोष होने से ब्रह्मचर्य टूट जाता है? प्रेमानंद महाराज ने दिया अनोखा जवाब- देखिए VIDEO
क्या स्वप्नदोष होने पर ब्रह्मचर्य टूट जाता है? इस सवाल का जवाब एक संत और आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज ने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर दिया है. उनका मानना है कि यह विषय केवल शारीरिक घटना नहीं बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति से जुड़ा हुआ है. प्रेमानंद महाराज ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनके समय में 18 से 20 वर्ष की अवस्था में उन्होंने एकांत में अपने गुरू ऊमकारा नंद सरस्वती परमहंस से यह प्रश्न पूछा. उनका ज्ञान और मार्गदर्शन आज भी युवाओं और साधकों के लिए मार्गदर्शक है.
आज के व्यस्त जीवन में ब्रह्मचर्य और स्वप्नदोष को लेकर युवा और साधक अक्सर भ्रमित रहते हैं. क्या स्वप्नदोष होने पर ब्रह्मचर्य टूट जाता है? इस सवाल का जवाब एक संत और आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज ने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर दिया है. उनका मानना है कि यह विषय केवल शारीरिक घटना नहीं बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति से जुड़ा हुआ है.
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प्रेमानंद महाराज ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनके समय में 18 से 20 वर्ष की अवस्था में उन्होंने एकांत में अपने गुरू ऊमकारा नंद सरस्वती परमहंस से यह प्रश्न पूछा. उनका ज्ञान और मार्गदर्शन आज भी युवाओं और साधकों के लिए मार्गदर्शक है.
गुरू का अनमोल ज्ञान
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि 'जैसे दाल में उफान आता है, वैसे ही संतान उत्पत्ति का बीज यानी वीर्य भी स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत शरीर से निकलता है. यदि यह स्वाभाविक रूप से जागते हुए होता है, तो इसे दोष नहीं माना जाता. दोष तब होता है जब यह स्त्रीसहवात्र या अन्य परिस्थितियों में निकलता है.'
स्वप्नदोष और ब्रह्मचर्य
उनके अनुसार, स्वप्नदोष स्वाभाविक शारीरिक प्रक्रिया है और इसे ब्रह्मचर्य टूटने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. साधक को केवल जागरूक और संयमित जीवन जीने की आवश्यकता है. प्रेमानंद महाराज ने यह भी स्पष्ट किया कि ब्रह्मचर्य केवल शारीरिक संयम नहीं है बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का भी प्रतीक है. इसलिए स्वप्नदोष जैसी प्राकृतिक घटनाओं को चिंता का विषय नहीं बनाना चाहिए.
ब्रह्मचर्य रहने के लिए क्या-क्या करें?
ब्रह्मचर्य केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि जीवन के हर आयाम- शारीरिक, मानसिक और वाचिक- पर नियंत्रण रखने की कला है. इसका उद्देश्य व्यक्ति को अनुशासन, मानसिक स्थिरता और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाना है. सात्विक और हल्का भोजन करें. ताजे फल, सब्ज़ियां और साधारण दालें लें. चाय, कॉफ़ी, तंबाकू और नशीले पदार्थों से दूर रहें. सुबह जल्दी उठें (3-3.30 बजे), स्नान करें, प्राणायाम और ध्यान करें. प्रतिदिन व्यायाम, आसन और प्राणायाम जैसे कपालभाति, अनुलोम-विलोम करें. नींद कम और सादगीपूर्ण होनी चाहिए.
शारीरिक इच्छाओं और कामुक क्रियाओं से बचें. मानसिक रूप से अश्लील विचार, चित्र और वीडियो से दूरी बनाए रखें. वाचिक स्तर पर अश्लील बातें, मज़ाक और अनुचित टिप्पणियों से बचें. महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव रखें और उन्हें बहन या मां के समान देखें. ध्यान, जप और सकारात्मक संगति अपनाएं. अच्छे और ज्ञानी लोगों के साथ समय बिताएं. सत्य का पालन करें और नकारात्मक विचारों को न आने दें. साधारण सूती और खादी के वस्त्र पहनें. ऐसे स्थानों से दूर रहें जहां चरित्र भ्रष्ट होने की संभावना हो. विवाहित व्यक्तियों को पवित्र तिथियों और मासिक धर्म के दौरान संयम बनाए रखना चाहिए.





