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जब होता है तनाव तो क्यों अचानक टॉयलेट जाने की महसूस होती है ज़रूरत? साइंस ने बताया असली कारण

तनाव या चिंता के दौरान अचानक टॉयलेट जाने की इच्छा होना कोई बीमारी नहीं बल्कि शरीर की प्राकृतिक प्रतिक्रिया है. चिंता की स्थिति में दिमाग और आंतों के बीच मौजूद गट-ब्रेन ऐक्सिस तेजी से सक्रिय हो जाता है और स्ट्रेस हार्मोन्स एड्रेनलिन व CRH आंतों की गति बढ़ा देते हैं. इससे भोजन तेजी से कोलन तक पहुंचता है और पानी अवशोषित न होने के कारण ढीला पेट और तुरंत मल त्याग की ज़रूरत महसूस होती है. इसे सांस नियंत्रण, कैफीन से बचाव और रिलैक्सेशन से नियंत्रित किया जा सकता है.

जब होता है तनाव तो क्यों अचानक टॉयलेट जाने की महसूस होती है ज़रूरत? साइंस ने बताया असली कारण
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( Image Source:  Meta AI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 26 Nov 2025 2:53 PM IST

अगर कभी परीक्षा से ठीक पहले, किसी महत्वपूर्ण प्रेज़ेंटेशन से पहले या किसी तनावपूर्ण बातचीत से ठीक पहले अचानक टॉयलेट भागने की इच्छा हुई हो, तो समझ लीजिए आप अकेले नहीं हैं. ऐसा महसूस करना कोई बीमारी नहीं बल्कि शरीर की एक स्वाभाविक बायोलॉजिकल प्रतिक्रिया है. डॉक्टर बताते हैं कि चिंता और डर के समय पेट और दिमाग के बीच जो संवाद होता है, वही इस अचानक होने वाली ‘बाथरूम अर्जेंसी’ की असली वजह है. विज्ञान के अनुसार यह सबसे आम प्रतिक्रियाओं में से एक है और लगभग हर व्यक्ति इसे अपनी ज़िंदगी में कभी न कभी महसूस करता है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट में बताया गया है कि चिंता के दौरान दिमाग और आंतों के बीच होने वाला संवाद - जिसे गट-ब्रेन ऐक्सिस कहा जाता है - इस पूरे अनुभव की जड़ में है. शोध कहते हैं कि यह कनेक्शन दो तरफा टेलीफोन लाइन की तरह काम करता है, जहां तनाव के दौरान दिमाग तुरंत आंतों को सिग्नल भेजता है. 2024 में जर्नल ऑफ फिज़ियोलॉजी में प्रकाशित एक समीक्षा के अनुसार, जब व्यक्ति तनाव में होता है तो आंतें सामान्य से कहीं ज़्यादा तेजी से काम करने लगती हैं. भोजन बहुत तेज़ी से कोलन तक पहुंचता है, जिससे पानी अवशोषित नहीं हो पाता और अचानक टॉयलेट जाने की ज़रूरत या Loose Motions की स्थिति बन जाती है.

यह बीमारी नहीं बल्कि एक नेचुरल रिफ्लेक्स है

सीनियर गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉक्टर सरोज दुबे के अनुसार, “जब व्यक्ति अचानक चिंता में आता है तो दिमाग से रिलीज होने वाले स्ट्रेस हार्मोन्स आंतों की गति तत्काल बढ़ा देते हैं. यह बीमारी नहीं बल्कि एक प्राकृतिक रिफ्लेक्स है. कई बार पेट दिमाग से भी तेज़ प्रतिक्रिया देता है, इसलिए व्यक्ति को मिनटों के भीतर तुरंत टॉयलेट जाने की आवश्यकता महसूस होती है.” यही वजह है कि लोग कहते हैं - “जैसे ही घबराहट हुई, तुरंत पेट खराब हो गया.”

चिंता के दौरान शरीर में रिलीज होने वाले हार्मोन्स - एड्रेनलिन और CRH (कॉर्टिकोट्रोपिन-रिलीजिंग हार्मोन) - इस अवस्था को और तेज़ बना देते हैं. साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, CRH सीधे कोलन की गति बढ़ा देता है और आंतों में तेज़ संकुचन पैदा करता है, बिल्कुल वैसे जैसे दस्त के समय होते हैं. इसी कारण कभी-कभी तनाव का एहसास होते ही कुछ सेकंड के भीतर ही बाथरूम की ज़रूरत महसूस होने लगती है.

जब एक्टिव हो जाता है “फ़ाइट-ऑर-फ़्लाइट मोड”

असल में शरीर की यह प्रतिक्रिया “फ़ाइट-ऑर-फ़्लाइट मोड” का हिस्सा है. जब दिमाग खतरे का संकेत महसूस करता है, तो वह पूरी ऊर्जा मांसपेशियों को भेजने के लिए पाचन तंत्र की गतिविधि कम कर देता है. इससे पेट में ऐंठन, लूज मोशन, अचानक टॉयलेट जाने (मल त्याग) की ज़रूरत और “अभी जाना है” वाली बेचैनी होती है. डॉक्टर कहते हैं कि यह शरीर का तरीका है खुद को हल्का करने का, ताकि खतरे की स्थिति में सेकंडों में भागा जा सके या प्रतिक्रिया दी जा सके - यानी शरीर लड़ने या बचने के लिए खुद को तैयार करता है.

कौन लोग इसे सबसे ज्यादा महसूस करते हैं?

रिसर्च के अनुसार ऐसे व्यक्ति जिनमें तनाव का स्तर अधिक होता है, जिन्हें जनरलाइज्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर है, जिनका पेट संवेदनशील है या जिन्हें IBS (Irritable Bowel Syndrome) जैसी समस्या है - उन्हें चिंता से संबंधित दस्त ज़्यादा होते हैं. लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि पूरी तरह से स्वस्थ लोग भी एग्ज़ाम, इंटरव्यू, नौकरी की समीक्षा, मंच पर बोलने, भावनात्मक विवाद या बड़े फैसलों से पहले इसी समस्या का अनुभव कर सकते हैं. इसलिए स्वयं को मानसिक रूप से दोषी महसूस करने की कोई जरूरत नहीं - यह शरीर की सुरक्षा प्रणाली का हिस्सा है.

ऐसे कर सकते हैं बचाव

अच्छी बात यह है कि इसे नियंत्रण में लाया जा सकता है. डॉक्टर सलाह देते हैं कि गहरी और धीमी सांस लेना, तनाव वाले कार्यक्रमों से पहले कैफीन से बचना, बार-बार छोटे भोजन करना, पर्याप्त पानी पीना और रिलैक्सेशन एक्सरसाइज़ करना काफी मददगार होता है. यदि लूज मोशन अक्सर हो या रोज़मर्रा की जिंदगी में बाधा डालने लगे, तो डॉक्टर तनाव प्रबंधन थेरेपी या मेडिकेशन की सलाह दे सकते हैं. शरीर को समझना और दिमाग को शांत रखना इस समस्या का सबसे आसान और सुरक्षित समाधान है - क्योंकि समस्या दिमाग से शुरू होती है और ठीक भी वहीं से होगी.

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