नाइट शिफ्ट में परेशानी और नींद की गड़बड़ी! नहीं बैठ रहा बायोलॉजिकल क्लॉक और मौसम का तालमेल, जानिए वजह
यह पहली ऐसी स्टडी है जिसने मौसमी व्यवहार और शिफ्ट वर्क के बीच के सीधे संबंध की ओर इशारा किया है. पहले सर्केडियन रिदम को केवल दिन और रात के प्रभाव से जोड़ा जाता था, लेकिन अब यह समझ में आ रहा है कि मौसमी परिवर्तन से जुड़ी अनुकूलन क्षमता भी उतनी ही जरुरी है.

नाईट शिफ्ट में काम करने वाले लाखों लोगों को एक आम समस्या का सामना करना पड़ता है. नींद का बार-बार टूटना और शरीर के रूटीन में खलल. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि कुछ लोग शिफ्ट बदलने के बावजूद जल्दी सामान्य कैसे हो जाते हैं, जबकि कुछ को हफ्तों लग जाते हैं? मिशिगन यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट द्वारा 28 मई, 2025 को पब्लिश एक हालिया स्टडी इस रहस्य की गहराई तक गया है और इसका संबंध हमारे अंदर छिपी मौसमी कारणों से जोड़ा है.
यह रिसर्च डैनियल बी. फॉर्गर और रूबी किम के नेतृत्व में किया गया और इसे एनपीजे डिजिटल मेडिसिन नामक जर्नल में पब्लिश किया गया. इसमें 3,000 मेडिकल इंटर्न्स का एनालिसिस किया गया जो लंबी और इर्रेगुलर ड्यूटी शिफ्ट्स में काम कर रहे थे. एक्सपर्ट्स ने उनके कदमों की संख्या (स्टेप्स), नींद के पैटर्न और मौसमी बदलावों के प्रति उनके व्यवहार की निगरानी की.
क्या निकला नतीजा?
अध्ययन से यह बात सामने आई कि जो लोग मौसम के साथ अपने व्यवहार या एक्टिविटी में ज्यादा बदलाव करते थे (जैसे गर्मियों में अधिक चलना, सर्दियों में कम एक्टिव रहना), उन्हें नाईट शिफ्ट या अन्य शेड्यूल बदलने वाली स्थितियों में ज्यादा कठिनाई होती है. जबकि जिनकी एक्टिविटी पूरे साल लगभग समान रहती थीं, वे शिफ्ट के बदलाव के साथ बेहतर तरीके से ताल-मेल बैठा लेते थे.
इसके पीछे क्या है साइंस?
यह सब जुड़ा है इंसानी शरीर की सर्केडियन लय (circadian rhythm) से यह एक इंटरनल बायोलॉजिकल क्लॉक होती है जो लाइट और डार्कनेस के बेस पर बॉडी वर्क को कंट्रोल करती है. यह हमारी नींद-जागने के चक्र से लेकर एनर्जी लेवल और यहां तक कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है. रूबी किम का कहना है कि चाहे हम इसे माने या न माने, इंसान एक मौसमी प्राणी है. दिन की लंबाई और सूरज की रोशनी का हमारी बायोलॉजिकल लाइफ पर सीधा असर पड़ता है. यह स्टडी दिखाता है कि हमारा शरीर मौसम के साथ कैसे ढलता है, इसका हमारे शिफ्ट वर्क से तालमेल बिठाने की क्षमता पर सीधा असर होता है.
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क्यों है यह जरुरी है ये स्टडी?
यह पहली ऐसी स्टडी है जिसने मौसमी व्यवहार और शिफ्ट वर्क के बीच के सीधे संबंध की ओर इशारा किया है. पहले सर्केडियन रिदम को केवल दिन और रात के प्रभाव से जोड़ा जाता था, लेकिन अब यह समझ में आ रहा है कि मौसमी परिवर्तन से जुड़ी अनुकूलन क्षमता भी उतनी ही जरुरी है. अगर आपकी डेली रूटीन पूरे साल स्थिर रहती है, तो आप शिफ्ट बदलने या देर रात काम करने में बेहतर ताल-मेल बना सकते हैं. रेगुलर नींद, एक जैसी डेली रूटीन और शारीरिक एक्टिविटी पूरे साल बनाए रखने से, नींद में खलल और मानसिक थकान को कम किया जा सकता है.