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Prem Chopra की जान ले सकती थी Aortic Stenosis की बीमारी, जानें इसके लक्षण

एऑर्टिक स्टेनोसिस में दिल का मुख्‍य वॉल्व धीरे-धीरे तंग होने लगता है. यह मुश्किल खून को बाहर जाने नहीं देती और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन भी नहीं मिल पाती. समय के साथ यह स्थिति दिल की कमजोरी, सांस फूलने, छाती में दर्द और अचानक बेहोशी तक ले जा सकती है.

Prem Chopra की जान ले सकती थी Aortic Stenosis की बीमारी, जानें इसके लक्षण
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( Image Source:  ANI )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 11 Dec 2025 5:38 PM IST

जाने-माने एक्टर शर्मन जोशी ने हाल ही में बताया था कि उनके ससुर और दिग्गज अभिनेता प्रेम चोपड़ा गंभीर एऑर्टिक स्टेनोसिस से जूझ रहे थे. हालांकि, कैसे समय पर इलाज और बिना किसी रुकावट के एक्टर की सर्जरी हो गई है और वह ठीक हैं. दरअसल यह एक दिल से जुड़ी बीमारी है.

इस बीमारी के संकेत दिखने लगते हैं और अक्सर लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए. चलिए ऐसे में जानते हैं आखिर क्या है एऑर्टिक स्टेनोसिस?

एऑर्टिक स्टेनोसिस क्या होता है?

एऑर्टिक स्टेनोसिस में दिल का मुख्‍य वॉल्व धीरे-धीरे तंग होने लगता है. यह मुश्किल खून को बाहर जाने नहीं देती और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन भी नहीं मिल पाती. समय के साथ यह स्थिति दिल की कमजोरी, सांस फूलने, छाती में दर्द और अचानक बेहोशी तक ले जा सकती है. इलाज में देरी होने पर दिल को ऐसा नुकसान भी पहुंच सकता है जिसे बाद में ठीक नहीं किया जा सकता.

कैसे पहचानें इसके संकेत?

यह समस्या कई बार सालों तक चुपचाप बढ़ती रहती है. जब लक्षण दिखने लगते हैं, तो अक्सर इनमें शामिल होते हैं.

  • रोजमर्रा के कामों में जल्दी थकान होना
  • दिल की धड़कन तेज या अनियमित लगना
  • पैरों या टखनों में सूजन
  • छाती में दबाव या दर्द
  • सांस लेने में दिक्कत
  • चक्कर आना या अचानक गिर जाना

ऐसे लक्षण दिखने पर डॉक्टर अक्सर मरीज को कार्डियोलॉजिस्ट के पास भेजते हैं.

क्यों होता है एऑर्टिक स्टेनोसिस?

यह बीमारी कई कारणों से धीरे-धीरे विकसित हो सकती है.

  • उम्र के साथ घिसाव: 65 वर्ष के बाद वॉल्व पर कैल्शियम जमा होने लगता है, जिससे रास्ता संकरा हो जाता है.
  • इन्फेक्शन का असर: पुराने समय में बिना इलाज के होने वाली स्ट्रेप थ्रोट या स्कार्लेट फीवर कई बार रूमैटिक फीवर में बदल जाती थी, जो दिल के वॉल्व को नुकसान पहुंचाती है.
  • अन्य बीमारियां: हड्डियों की कुछ दुर्लभ बीमारियां, किडनी फेल्योर, पारिवारिक कोलेस्ट्रॉल विकार और ऑटोइम्यून बीमारियाँ भी इस स्थिति को जन्म दे सकती हैं.

इलाज क्यों जरूरी है?

कुछ मरीजों में यह बीमारी धीरे बढ़ती है, जबकि कुछ में तेजी से गंभीर हो जाती है. यदि समय रहते इलाज न मिले, तो यह अचानक मौत का कारण भी बन सकती है. इसी वजह से डॉक्टर सलाह देते हैं कि लक्षण दिखते ही जांच और इलाज में देरी न करें.

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