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क्या सिंगल डोज ट्रीटमेंट से ठीक हो सकता है Breast Cancer? जानें क्या कहती है स्टडी

ErSO सिंथेटिक मॉलिक्यूल के जरिए ब्रेस्ट कैंसर को खत्म किया जा सकता है. इसकी एक खुराक कैंसर के सेल्स मर सकते हैं, लेकिन इसके कारण कई तरह के साइड इफेक्ट्स होते हैं. इनमें ब्लड क्लॉट और मस्कुलोस्केलेटल दर्द शामिल है.

क्या सिंगल डोज ट्रीटमेंट से ठीक हो सकता है Breast Cancer? जानें क्या कहती है स्टडी
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( Image Source:  freepik )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 23 Jan 2025 1:09 PM IST

ब्रेस्ट कैंसर एक गंभीर बीमारी है, लेकिन अब इसके लिए सिंगल डोज ट्रीटमेंट की उम्मीद जगी है. जहां साइंटिस्ट ने बताया कि सिंथेटिक मॉलिक्यूल की एक खुराक ने चूहों में ब्रेस्ट ट्यूमर को खत्म कर दिया है और बड़े ट्यूमर को काफी हद तक कम कर दिया है.

रिसर्च टीम ने बताया कि अमेरिका में इलिनोइस यूनिवर्सिटी के रिसचर्स ने एक मॉलिक्यूल डेवलप किया है, जिसका नाम ErSO-TFPy है. इसकी एक ही खुराक के साथ एस्ट्रोजन रिसेप्टर-पॉजिटिव ब्रेस्ट कैंसर के कई माउस मॉडल में ट्यूमर के वापसी कर सकता है.

क्या कहती है स्टडी?

एस्ट्रोजन-रिसेप्टर-पॉजिटिव ब्रेस्ट कैंसर वाले मरीज आमतौर पर सर्जरी से गुजरते हैं. इसके बाद हार्मोन थेरेपी के साथ 5-10 साल तक ट्रीटमेंट होता है. स्टडीज में पाया गया है कि लंबे समय तक इस हॉर्मोन थेरेपी के कारण 20 से 30 प्रतिशत मरीज साइड इफेक्ट का शिकार हो जाते हैं. इसके कारण वह ट्रीटमेंट रोक देते हैं. इतना ही नहीं, इस थेरेपी के कारण 30-50 प्रतिशत लोग एडवांस ब्रेस्ट कैंसर की ओर भी बढ़ते हैं.

बनाया सिंथेटिक मॉलिक्यूल

साल 2021 में हेर्गेनरोदर और उनके साथियों ने एक सिंथेटिक मॉलिक्यूल विकसित किया था, जिसका नाम उन्होंने ErSO रखा. यह ब्रेस्ट कैंसर सेल्स को मार सकता था, लेकिन इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी थे. इसके बाद अगले तीन सालों में उन्होंने ErSO की मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर को बदलकर डेरिवेटिव की एक सीरीज तैयार की, जो ब्रेस्ट कैंसर सेल्स के खिलाफ उनता ही कारगर था. साथ ही, इसके साइड इफेक्ट्स भी कम थे.

थेरेपी के साइड इफेक्ट्स

इस स्टडी को लीड करने वाले UIUC में केमिस्ट्री के प्रोफेसर पॉल हर्गेनरोथर ने एक मीडिया प्रेस रिलीज में कहा कि ब्रेस्ट कैंसर के माउस मॉडल में ट्यूमर को सिकोड़ना, उन ट्यूमर को एक ही खुराक से पूरी तरह से खत्म करना बहुत दुर्लभ है. इस थेरेपी के कारण बॉडी में ब्लड क्लॉट, मस्कुलोस्केलेटल दर्द और सेक्सुअल डिसफंक्शन का जोखिम बढ़ जाता है, जिससे मरीज की जिंदगी पर असर पड़ता है.

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