भारत के इन मंदिरों में नारियल और बताशे नहीं, प्रसाद के तौर पर भक्तों को दिया जाता है नॉन-वेज
अक्सर भगवान और भक्तों को फल और शाकाहारी चीजों का भोग लगाया जाता है. फिर भक्तों को प्रसाद के तौर पर दिया जाता है, लेकिन भारत के ऐसे कई मंदिर हैं, जहां श्रद्धालुओं को मांसाहारी प्रसाद बांटा जाता है.
जब हम भारतीय मंदिरों की बात करते हैं, तो प्रसाद के तौर पर नारियल, मिठाई और फल की परंपरा देने की परंपरा है, लेकिन भारत की कुछ प्राचीन परंपराओं में श्रद्धालुओं को मांस और मछली दी जाती है.ये परंपराएं खासकर पूर्वोत्तर भारत, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड और कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों में गहराई से जुड़ी हैं.
ऐसे मंदिरों में बलि कोई हिंसक कृत्य नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का हिस्सा मानी जाती है. उदाहरण के लिए कामाख्या देवी मंदिर (असम) और कालीघाट मंदिर (कोलकाता) में मांस और मछली को देवी को अर्पित करना एक सामान्य धार्मिक क्रिया है. चलिए जानते हैं किन-किन मंदिरों में प्रसाद के तौर पर मांस दिया जाता है.
तरकुलहा देवी मंदिर में नॉन-वेज भोग
गोरखपुर के निकट स्थित तरकुलहा देवी मंदिर में भी नॉन-वेज प्रसाद परोसा जाता है. विशेष रूप से चैत्र नवरात्रि के समय यहां देवी को बकरे की बलि अर्पित की जाती है. बलि के बाद बकरे का मांस पकाकर देवी को चढ़ाया जाता है और फिर इसे प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है. यह सब कुछ पूरी श्रद्धा, विधि-विधान और पारंपरिक नियमों के अनुसार सम्पन्न की जाती है, जिसे पीढ़ियों से निभाया जा रहा है.
जहां देवी को चढ़ती है मछली
पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर परिसर में स्थित एक छोटा लेकिन अत्यंत पूजनीय विमला देवी का मंदिर है. यह स्थान एक शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है. दुर्गा पूजा के विशेष अवसर पर, जब रात का अंधेरा छाया होता है और सूर्योदय नहीं हुआ होता, तब यहां एक बकरे की बलि दी जाती है. इसके साथ ही, निकट स्थित पवित्र मार्कंडा सरोवर से मछलियां पकड़कर पकाई जाती हैं और देवी को अर्पित की जाती हैं. इस विशेष भोग को बिमला परुसा कहा जाता है. पूजा संपन्न होने के बाद यह प्रसाद वहां मौजूद श्रद्धालुओं में बांटा जाता है
असम में देवी को चढ़ते हैं मांसाहारी भोग
असम का कामाख्या मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध है. इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं. यहां भक्तों को मांसाहारी प्रसाद दिया जाता है. इसमें बकरे का मांस और मछली की चटनी शामिल होती है. खास बात ये है कि यह सब बिना प्याज-लहसुन के बनाया जाता है.
परासिनिकादावु मंदिर का प्रसाद
दक्षिण भारत यानी केरल में परासिनिकादावु मंदिर है, जो भगवान मुथप्पन को समर्पित है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां भगवान को ताड़ी (एक तरह की देसी शराब) के साथ जली हुई मछली चढ़ाई जाती है. इसके बाद भक्तों को दिया जाता है. यह मंदिर इस बात का उदाहरण है कि किस तरह लोक-देवताओं की पूजा में स्थानीय खानपान भी शामिल होता है.
तारापीठ मंदिर, पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है प्रसिद्ध तारापीठ मंदिर, जो मां तारा को समर्पित है. यहां की पूजा पूरी तरह तांत्रिक पद्धति पर आधारित है. यहां भी भक्तों को मांसाहरी प्रसाद देने की परंपरा है.





