क्या होती है 'Hobosexuality', भारतीय शहरों में क्यों बढ़ रहा इसका चलन?
भारत के बड़े शहरों में महंगे घर और बढ़ते किराये के बीच एक नया ट्रेंड ‘Hobosexuality’ उभर रहा है, जिसमें लोग रोमांटिक रिश्तों में मुख्य रूप से रहने की जगह या आर्थिक सुविधा के लिए आते हैं. मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसे रिश्तों में भावनात्मक और आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे पावर इंबैलेंस और मानसिक थकान बढ़ती है. शहरी अकेलापन, सांस्कृतिक दबाव और आसमान छूते मकान दाम इस चलन को बढ़ावा दे रहे हैं.
भारत के बड़े शहरों में घर खरीदना तो दूर, किराये पर रहना भी कई लोगों के लिए मुश्किल होता जा रहा है. दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे महानगरों में प्रॉपर्टी के दाम लगातार नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं. रियल एस्टेट रिपोर्ट्स बताती हैं कि पिछले एक साल में कई शहरों में मकानों की कीमतें 10-14 फीसदी तक बढ़ गई हैं. महंगे किरायों के साथ-साथ अकेले रहने की लागत और शहरी जीवन की भावनात्मक अकेलापन-ये सब मिलकर एक नई तरह की रिलेशनशिप ट्रेंड को जन्म दे रहे हैं, जिसे कहते हैं ‘Hobosexuality’.
यह शब्द सुनने में भले मज़ाकिया लगे, लेकिन इसके पीछे की हकीकत काफी गंभीर है. इसमें कोई व्यक्ति प्यार से ज़्यादा आश्रय (shelter) के लिए रिश्ते में आता है-मतलब घर या आर्थिक सुविधा पाने के लिए रोमांटिक रिलेशनशिप का सहारा लेना. और अक्सर इसमें आर्थिक व भावनात्मक योगदान का संतुलन बुरी तरह बिगड़ जाता है.
मेट्रो शहरों में बढ़ती आर्थिक असमानता, सांस्कृतिक दबाव और ‘सेटल होने’ की जल्दबाज़ी इस ट्रेंड को और तेज़ कर रहे हैं. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि यह सिर्फ आर्थिक मजबूरी का मामला नहीं, बल्कि भावनात्मक हेरफेर और रिश्तों में शक्ति-संतुलन (power imbalance) की भी कहानी है.
Hobosexuality क्या है?
सीधे शब्दों में कहें तो, हॉबोसेक्शुएलिटी वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति मुख्य रूप से रहने की जगह या आर्थिक सुविधा पाने के लिए किसी रोमांटिक रिश्ते में आता है. यह रिश्ता ऊपर से तो प्यारभरा लगता है, लेकिन अंदर ही अंदर एक पार्टनर दूसरे पर ज्यादा निर्भर रहता है - कभी आर्थिक रूप से, तो कभी रोजमर्रा की जिम्मेदारियों में.
भारत में यह ट्रेंड क्यों बढ़ रहा है?
- आसमान छूती प्रॉपर्टी की कीमतें : रिपोर्ट्स के मुताबिक, 13 प्रमुख भारतीय शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतों में औसतन 8% की वृद्धि हुई है. मुंबई जैसे शहर में एक बेडरूम फ्लैट का मासिक किराया कई इलाकों में ₹35,000 से ₹50,000 तक है.
- किरायों में तेज़ उछाल : जब घर खरीदना मुश्किल होता है, तो किराये भी महंगे हो जाते हैं. Deloitte की 2025 सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, मेट्रो शहरों में रहने वाला एक अकेला व्यक्ति अपनी कमाई का 40-50% सिर्फ किराए में खर्च करता है.
- भावनात्मक अकेलापन और सांस्कृतिक दबाव : बड़े शहरों में रिश्तों का मतलब सिर्फ भावनात्मक जुड़ाव नहीं, बल्कि ‘सुरक्षा’ भी बन जाता है. समाज में जल्दी सेटल होने का दबाव भी ऐसे रिश्तों को बढ़ावा देता है.
आर्थिक और भावनात्मक असर
- आर्थिक बोझ : लंबे समय तक ऐसे रिश्तों में रहने से एक व्यक्ति की बचत और वित्तीय स्थिरता पर असर पड़ता है.
- भावनात्मक थकान : जब एक पार्टनर बार-बार जिम्मेदारियां निभाता है, और दूसरा सिर्फ सुविधा लेता है, तो रिश्ते में थकान और नाराज़गी बढ़ती है.
- पावर इंबैलेंस : जिस पर निर्भरता होती है, वही फैसलों में हावी हो जाता है, और दूसरा पार्टनर भावनात्मक रूप से कमजोर महसूस करता है.
कैसे पहचानें Hobosexual रिश्ते को?
- पार्टनर का आर्थिक योगदान बहुत कम या न के बराबर हो
- घर के खर्च, बिल या किराये में भागीदारी न हो
- आपकी आर्थिक स्थिति या प्रॉपर्टी में ज़्यादा दिलचस्पी हो, बजाय आपके व्यक्तित्व के
- भावनात्मक जरूरत के समय अनुपस्थित रहना
- शुरुआत में बहुत अटेंशन, बाद में जिम्मेदारी से बचना
समाधान और जागरूकता
- रिश्ते में आर्थिक पारदर्शिता रखें - शुरुआत में ही खर्च और जिम्मेदारियों पर बात करें.
- भावनात्मक संतुलन बनाए रखें - रिश्ते में दोनों को भावनात्मक और व्यावहारिक योगदान देना चाहिए.
- ना कहने की आदत डालें - यदि महसूस हो कि रिश्ता एकतरफा हो रहा है, तो सीमाएं तय करें.
- आत्मनिर्भरता - आर्थिक और भावनात्मक रूप से खुद को मजबूत बनाएं, ताकि किसी पर मजबूरी में निर्भर न होना पड़े.
Hobosexuality सिर्फ पश्चिमी दुनिया का ट्रेंड नहीं रहा, बल्कि भारतीय महानगरों में भी यह चुपचाप बढ़ रहा है. महंगे मकान, बढ़ता किराया, शहरी अकेलापन और सांस्कृतिक दबाव मिलकर ऐसे रिश्तों की ज़मीन तैयार कर रहे हैं. यह जरूरी है कि लोग अपने रिश्तों में सिर्फ भावनात्मक ही नहीं, बल्कि आर्थिक और व्यावहारिक संतुलन भी बनाए रखें. प्यार का मतलब आश्रय देना हो सकता है, लेकिन उसे एकतरफा जिम्मेदारी में बदलना, किसी के लिए भी सेहतमंद नहीं है.





