क्या अब कश्मीर में केवल धर्म के नाम पर होगा कत्लेआम? 28 मासूमों की जान लेने से पहले पैंट उतरवाकर चेक किया... मोमिन या काफिर
कश्मीर में 28 पर्यटकों की हत्या धर्म पूछकर की गई. आतंकियों ने ‘मोमिन या काफ़िर’ पूछकर गोलियां चलाईं. TRF ने जिम्मेदारी ली, पाकिस्तान कनेक्शन साफ है. 370 हटाने के दावों पर सवाल उठे हैं. अब लड़ाई ज़मीन की नहीं, मजहब की लगती है. क्या कश्मीर फिर से मजहबी ज्वाला बन रहा है?
कश्मीर अब भी जल रहा है... सुरक्षा के तमाम दावों और बातों के बीच जिस तरह से आतंकियों ने 28 पर्यटकों को मौत की नींद सुला दिया, उसने 90 के दशक के उस खौफनाक दौर की यादें ताजा कर दीं जब घाटी में गैर मुस्लिमों, विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों को उनके धर्म के नाम पर कश्मीर छोड़ जाने को मजबूर किया गया था.
एक बार फिर जिस तरह से धर्म पूछ कर लोगों की हत्या की गई है, उससे यही साबित होता है कि कश्मीर को पाकिस्तान मजहबी रंग देने पर जुटा है. तो क्या एक बार फिर कश्मीर में केवल मजहब के नाम पर खूनखराबा होगा?
एक ज़माना था जब कश्मीर की लड़ाई 'आज़ादी' के नारों और पाकिस्तान की शह पर चल रही थी. 5 अगस्त 2019 में धारा 370 हटाने के बाद से घाटी की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के दावे किए जाते रहे. लेकिन मालूम पड़ता है कि हालात अब और खतरनाक हो चुके हैं. ताज़ा आतंकी हमले में जो रिपोर्ट्स सामने आ रही हैं, वो रूह कंपा देने वाली हैं. कहा जा रहा है कि आतंकियों ने कश्मीर घूमने गए टूरिस्टों से उनसे न जाति न राज्य पूछा, केवल नाम और धर्म पूछा और इसके बाद पैंट उतरवाकर उनका मजहब चेक किया, पूछा- 'मोमिन हो या काफ़िर?' और फिर पहचान के आधार पर गोलियां बरसाईं. 28 मासूम मारे गए. सिर्फ इसलिए कि वो 'ग़लत मजहब' से थे.
धार्मिक आतंकवाद का नया चेहरा?
ये महज़ हमला नहीं था. ये कह रहा है कि क्या अब कश्मीर में केवल ज़मीन नहीं, मजहब पर भी लड़ाई हो रही है? इस हमले ने एक बार फिर अनुच्छेद 370 की बहस को जिंदा कर दिया है. जब 370 हटाया गया था, सरकार ने कहा था कि अब कश्मीर में विकास होगा, आतंकवाद खत्म होगा, और हर भारतीय को वहां बराबरी का हक़ मिलेगा. लेकिन अगर अब भी लोग मारे जा रहे हैं. वो भी उनके धर्म के आधार पर तो ये किस जीत की तस्वीर है?
पाकिस्तान की भूमिका, अब भी उतनी ही गहरी?
पाकिस्तान की पुरानी चालें फिर से चालू हैं. इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के हिट स्क्वॉड द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है. टीआरएफ का मास्टरमाइंड सज्जाद गुल है, जो पाकिस्तान में बैठकर इसे संचालित करता है. बता दें कि लश्कर का मुखौटा संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) 2019 में अस्तित्व में आया था. वहीं दूसरी ओर महज़ संयोग है कि जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत में हैं, तब ये हमला होता है? क्या ये अंतरराष्ट्रीय संदेश देने की कोशिश है -कि कश्मीर आज भी जंग का मैदान है?
आतंकी हमले से उठ रहे सवाल
क्या हिंदू-मुस्लिम की लकीरें अब और गहरी हो रही हैं? क्या आम कश्मीरी अब भी सच्चाई के साथ खड़ा है या उसे भी मजहब की चादर में ढक दिया गया है? क्या कश्मीर अब सेक्युलर नहीं रहा? और सबसे अहम सवाल - क्या 370 हटाने के बाद भी आम नागरिक सुरक्षित नहीं? सरकार की चुप्पी भी अब कई सवाल खड़े कर रही है. विपक्ष हमलावर है, लेकिन देश फिलहाल मांग रहा इंसाफ.





