पत्नी ने मांगा 1 लाख गुजारा भत्ता, बॉम्बे हाईकोर्ट ने दे दिया तलाक, कहा- शारीरिक संबंध से इनकार पति से 'क्रूरता'?
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि शादीशुदा जीवन में बार-बार शारीरिक संबंधों से इनकार करना पति के लिए 'क्रूरता' माना जाएगा. अदालत ने इस आधार पर तलाक मंजूर करते हुए पत्नी की 1 लाख रुपये गुजारा भत्ते की मांग पर भी फैसला सुनाया. अब यह मामला वैवाहिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच की सीमा को लेकर अहम बहस का विषय बन गया है.

हिंदू परंपरा में 'शादी' सिर्फ सात फेरों का बंधन नहीं बल्कि जिम्मेदारियों और आपसी समर्पण का वादा भी होती है, लेकिन जब रिश्ते में दूरी इतनी बढ़ जाए कि साथ रहना 'सजा' बन जाए, तब अदालत को फैसला सुनाना पड़ता है. बॉम्बे हाईकोर्ट के हालिया फैसले में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जहां पत्नी के शारीरिक संबंध से इनकार को पति के लिए 'क्रूरता' माना गया और कोर्ट ने तलाक मंजूर कर लिया.
मुंबई हाईकोर्ट ने परिवार अदालत के तलाक संबंधी आदेश को चुनौती देने वाली महिला को राहत देने से इनकार कर दिया. साथ ही उसकी याचिका भी खारिज कर दी. हाईकोर्ट ने कहा, 'पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना और उस पर विवाहेत्तर संबंध रखने का संदेह करना क्रूरता है, इसलिए यह तलाक का आधार है.' जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा, 'महिला के आचरण को उसके पति के प्रति क्रूरता माना जा सकता है.'
2013 में शादी, 2014 से पति से रहने लगी दूर
महिला ने याचिका में अपने पति से एक लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता दिलाने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था. बता दें कि महिला की शादी पीड़ित से 2013 में हुई थी. दिसंबर 2014 में वे अलग रहने लगे. साल 2015 में पति ने क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए पुणे की परिवार अदालत का रुख किया, जिसे मंजूरी मिल गई.
महिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसके ससुराल वालों ने उसे परेशान किया था, लेकिन वह अब भी अपने पति से प्यार करती है और इसलिए वह विवाह संबंध खत्म नहीं करना चाहती. हालांकि, व्यक्ति ने कई आधार पर क्रूरता का आरोप लगाया, जिसमें (महिला के) शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना, उस पर (पति पर) विवाहेत्तर संबंध रखने का संदेह करना और उसके (व्यक्ति के) परिवार, दोस्तों और कर्मचारियों के सामने उसे शर्मिंदा करना और मानसिक पीड़ा पहुंचाना शामिल है.
संबंधों में सुधार की गुंजाइश नहीं - हाई कोर्ट
हाईकोर्ट ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता (महिला) का व्यक्ति के कर्मचारियों के साथ व्यवहार निश्चित रूप से उसे पीड़ा पहुंचेगी. इसी तरह व्यक्ति को उसके दोस्तों के सामने अपमानित करना भी उसके प्रति क्रूरता है. ’’ अदालत ने कहा कि महिला का उस व्यक्ति की दिव्यांग बहन के साथ उदासीन व्यवहार भी निश्चित रूप से उसे और उसके परिवार के सदस्यों को पीड़ा पहुंचाना. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि दंपति के बीच विवाह संबंध टूट चुका है और इसमें सुधार होने की कोई संभावना नहीं है.