पाकिस्तान को बेनकाब करने भारत ने इन्हीं 7 सांसदों को क्यों चुना? जानिए कूटनीतिक मजबूती के पीछे की वजह
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत अब सिर्फ फौजी नहीं, कूटनीतिक मोर्चे पर भी सक्रिय है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद सात संसदीय दल अलग-अलग देशों का दौरा करेंगे. इनका मकसद दुनिया को बताना है कि पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थक है. सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के सांसद मिलकर भारत की बात रखेंगे, जिससे वैश्विक समर्थन मजबूत हो सके.

भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब सिर्फ फौजी कार्रवाई से नहीं, अब कूटनीतिक तरीके से भी देने की तैयारी कर ली है. ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान में मौजूद आतंकियों के 9 ठिकाने तबाह करने के बाद अब भारत सात सांसदों की टीमों को अलग-अलग देशों में भेज रहा है. इनका मकसद यही है दुनिया को बताना कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देता है और अब उसे बेनकाब करना जरूरी है.
भारत ने कुल सात संसदीय प्रतिनिधिमंडल बनाए हैं. हर टीम अलग-अलग देशों का दौरा करेगी और वहां की सरकारों व नीति-निर्माताओं से मुलाकात करके भारत का पक्ष रखेगी. इन प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व सात अलग-अलग सांसद करेंगे, जिनमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के नेता शामिल हैं.
कौन-कौन नेता कर रहे हैं टीमों का नेतृत्व?
भाजपा से रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, शिवसेना से श्रीकांत शिंदे और जेडीयू से संजय झा सरकार की ओर से डेलीगेशन की कमान संभालेंगे. वहीं विपक्ष की ओर से कांग्रेस के शशि थरूर, डीएमके की कनिमोई और एनसीपी की सुप्रिया सुले को लीडर बनाया गया है. यह संतुलन इस बात को दिखाता है कि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुट है.
किन देशों की होगी यात्रा?
शशि थरूर की टीम अमेरिका और ब्रिटेन जाएगी। रविशंकर प्रसाद सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन और अल्जीरिया जाएंगे. संजय झा जापान, सिंगापुर, कोरिया और इंडोनेशिया जैसे देशों का दौरा करेंगे. सुप्रिया सुले की टीम ओमान, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और मिस्र जाएगी. हर टीम चार से पांच देशों का दौरा करेगी.
हर टीम में होंगे अनुभवी राजनयिक और सांसद
हर प्रतिनिधिमंडल में सीनियर सांसदों के साथ-साथ विदेश मंत्रालय के अनुभव वाले पूर्व राजदूत भी शामिल होंगे. जैसे कि तरनजीत संधू (जो अमेरिका में राजदूत रह चुके हैं) और जावेद अशरफ़ (फ्रांस में भारत के राजदूत रह चुके हैं). इनके साथ रहने से सांसदों को तकनीकी और कूटनीतिक ब्रीफिंग भी आसानी से मिलेगी.
आतंकवाद के खिलाफ आवाज जरूरी: सरकार
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने इस पहल पर कहा, “भारत अब आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ अकेले नहीं, पूरी दुनिया को साथ लेकर चलना चाहता है. जब आतंकी हमला होता है तो देश की राजनीति अलग-अलग नहीं रह जाती, बल्कि सभी पार्टियां एकजुट हो जाती हैं.” रीजीजू ने साफ किया कि यह पहल सिर्फ सरकार की नहीं, पूरे देश की है.
क्यों इन्हीं सांसदों को चुना गया नेतृत्व के लिए?
इन सात सांसदों को इसलिए चुना गया क्योंकि ये सभी तेज़-तर्रार वक्ता माने जाते हैं. इनमें से कई नेता संसद में बहस के दौरान विदेश नीति, आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर मजबूत पकड़ दिखा चुके हैं. जैसे शशि थरूर ने कई बार पाकिस्तान के खिलाफ इंटरनेशनल मंचों पर भारत का पक्ष रखा है, वहीं रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा का कानून और विदेश नीति में लंबा अनुभव है. कनिमोई, सुप्रिया सुले और श्रीकांत शिंदे भी जनता से जुड़ाव रखने वाले और तार्किक बात रखने वाले नेता माने जाते हैं.
नतीजा क्या निकलेगा इस दौरे से?
भारत का मकसद साफ है दुनिया को बताना कि पाकिस्तान आतंक को बढ़ावा देता है और अब उसे रोकना होगा. अगर ये सांसद अपने तर्कों और साक्ष्यों के साथ इंटरनेशनल मंचों पर भारत की बात सही से रख पाए, तो पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा और भारत की छवि एक जिम्मेदार और शांतिप्रिय देश के रूप में और मजबूत होगी.