कुणाल कामरा विवाद के बीच फ्रीडम ऑफ़ स्पीच को लेकर क्या संदेश दे गया सुप्रीम कोर्ट?
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया, जिसमें उनके इंस्टाग्राम पोस्ट पर शेयर की गई कविता को लेकर अशांति फैलाने का आरोप था. अदालत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा पर जोर दिया और गुजरात पुलिस की कार्रवाई को अनुचित बताया. प्रतापगढ़ी ने अपनी सफाई में AI टूल (ChatGPT) का उपयोग कर कविता के स्रोत को प्रमाणित करने की कोशिश की.

सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया. यह एफआईआर उनके इंस्टाग्राम पोस्ट पर "ऐ खून के प्यासे बात सुनो" शीर्षक वाली कविता साझा करने को लेकर दर्ज की गई थी. अदालत ने इस मामले को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा पर जोर दिया और कहा कि न्यायालयों को इस अधिकार की रक्षा में सबसे आगे रहना चाहिए.
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि प्रतापगढ़ी के खिलाफ मामला दर्ज करने का कोई वैध आधार नहीं था. उन्होंने गुजरात पुलिस की 'अति उत्साह' के साथ की गई कार्रवाई की आलोचना की और कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है. अदालत ने दोहराया कि विचारों की अभिव्यक्ति पर लगाए गए प्रतिबंध तार्किक और आवश्यक होने चाहिए, न कि काल्पनिक.
संविधानिक अधिकारों पर जोर
न्यायालय ने अनुच्छेद 19(1) और 19(2) पर जोर देते हुए कहा कि व्यक्तिगत विचारों की अभिव्यक्ति एक मौलिक अधिकार है, और इसे संकीर्ण प्रतिबंधों के आधार पर रोका नहीं जा सकता. अदालत ने कहा कि लोकतंत्र में अलग-अलग विचारों का जवाब दमन से नहीं, बल्कि स्वस्थ संवाद और बहस से दिया जाना चाहिए.
स्टैंड-अप कॉमेडियन के मामले से तुलना
यह फैसला ऐसे समय आया है जब स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा भी अपने एक शो के दौरान महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर टिप्पणी करने के बाद विवादों में घिर गए हैं. उनके बयान के बाद उन पर एफआईआर दर्ज हुई और उनके कार्यक्रम स्थल पर तोड़फोड़ की गई. सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में कहा कि साहित्य, कला, नाटक और कॉमेडी समाज के विचारों को अधिक अर्थपूर्ण बनाते हैं और इन्हें सीमित करने के प्रयास खतरनाक हो सकते हैं.
प्रतापगढ़ी ने दी थी सफाई
प्रतापगढ़ी के खिलाफ एफआईआर 3 जनवरी को जामनगर पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी कविता सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाली है. गुजरात हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था, यह तर्क देते हुए कि सांसद के रूप में उनकी जिम्मेदारी अधिक है. प्रतापगढ़ी ने अपनी सफाई में कहा कि यह कविता प्रसिद्ध कवि फैज़ अहमद फैज़ या हबीब जालिब द्वारा लिखी गई थी और उन्होंने इस दावे को साबित करने के लिए AI टूल (ChatGPT) से लिए गए स्क्रीनशॉट भी पेश किए.