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क्‍या है Underwater Naval Mine? DRDO और भारतीय नौसेना के इस हथियार का नहीं कोई जवाब

भारत की रक्षा ताकत अब समुद्र के भीतर भी और ज्यादा अजेय हो चुकी है. डीआरडीओ और भारतीय नौसेना ने मिलकर स्वदेशी तकनीक से विकसित की है एक ऐसी ‘अंडरवाटर माइन’ जिसे दुश्मन की आंख से देख पाना तो दूर, उसके पास पहुंचने तक का मौका भी नहीं मिलेगा. इस बहुउद्देश्यीय मल्टी-इंफ्लुएंस ग्राउंड माइन (MIGM) का सफल परीक्षण हाल ही में किया गया है और यह न केवल पुराने सिस्टम्स से कहीं ज्यादा एडवांस्ड है, बल्कि भारत को समुद्री सुरक्षा के मामले में ग्लोबल पावर बनने की दिशा में बड़ा कदम है.

क्‍या है Underwater Naval Mine? DRDO और भारतीय नौसेना के इस हथियार का नहीं कोई जवाब
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 16 May 2025 3:09 PM IST

भारत की रक्षा ताकत अब समुद्र के भीतर भी और ज्यादा अजेय हो चुकी है. डीआरडीओ और भारतीय नौसेना ने मिलकर स्वदेशी तकनीक से विकसित की है एक ऐसी ‘अंडरवाटर माइन’ जिसे दुश्मन की आंख से देख पाना तो दूर, उसके पास पहुंचने तक का मौका भी नहीं मिलेगा. इस बहुउद्देश्यीय मल्टी-इंफ्लुएंस ग्राउंड माइन (MIGM) का सफल परीक्षण हाल ही में किया गया है और यह न केवल पुराने सिस्टम्स से कहीं ज्यादा एडवांस्ड है, बल्कि भारत को समुद्री सुरक्षा के मामले में ग्लोबल पावर बनने की दिशा में बड़ा कदम है.

क्या है ये MIGM माइन, और क्यों मानी जा रही है गेमचेंजर?

MIGM यानी Multi-Influence Ground Mine एक अत्याधुनिक अंडरवाटर विस्फोटक प्रणाली है, जो समुद्र की गहराई में दुश्मन की हलचल को पहचानकर खुद-ब-खुद एक्टिवेट हो जाती है. यह कोई सामान्य माइन नहीं, बल्कि एक ‘स्मार्ट माइन’ है जो शत्रु के जहाज की गति, ध्वनि और दबाव को एक साथ पढ़ सकती है और उसी हिसाब से ब्लास्ट कर सकती है.

जहां पहले तीन अलग-अलग तरह की माइन्स रखनी पड़ती थीं, एक आवाज पहचानने वाली, एक प्रेशर मापने वाली और एक कॉन्टैक्ट से फटने वाली, वहीं MIGM इन सभी क्षमताओं को एक ही सिस्टम में समेटे हुए है. इसे एयरक्राफ्ट, वॉरशिप या पनडुब्बी से कहीं भी डिप्लॉय किया जा सकता है.

कैसे करती है काम ये ‘स्मार्ट सुरंग’?

इस हाईटेक माइन में तीन खास तरह के इन्फ्लुएंस सेंसर्स लगे होते हैं. साउंड इन्फ्लुएंस (Acoustic Sensor) दुश्मन के इंजन या मोटर से निकलने वाली विशेष ध्वनि को पहचानती है. मैग्नेटिक इन्फ्लुएंस (Magnetic Sensor) लोहे या धातु की नाव या सबमरीन को ट्रैक करती है. प्रेशर इन्फ्लुएंस (Pressure Sensor) बड़े जहाज के नीचे से गुजरने पर दबाव में जो बदलाव आता है, उससे सक्रिय होती है. यह तकनीक इसे “मल्टी-सेंसिंग डिस्ट्रक्शन डिवाइस” बनाती है जो बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के स्वतः निर्णय ले सकती है कि कब विस्फोट करना है.

कहां होती है तैनाती, और क्यों है यह भारत के लिए जरूरी?

MIGM जैसी माइन खासतौर पर उन समुद्री इलाकों में डिप्लॉय की जाती हैं जहां गहराई कम होती है और गश्त लगाना मुश्किल होता है, जैसे कि द्वीपों के आसपास या दुर्गम तटीय क्षेत्रों में. ये माइन बोट या छोटी पनडुब्बियों को टारगेट करती हैं और सीमाओं को अप्रत्याशित हमलों से बचाती हैं. चूंकि भारत की समुद्री सीमा हजारों किलोमीटर लंबी है और कई संवेदनशील तटीय इलाके रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम हैं, ऐसे में MIGM जैसे सिस्टम वहां ‘अदृश्य रक्षा कवच’ का काम करेंगे.

भारत के लिए रणनीतिक लाभ क्या हैं?

  • 100% स्वदेशी तकनीक: आत्मनिर्भर भारत अभियान को मजबूती
  • स्मार्ट वॉरफेयर: पारंपरिक माइन्स से कई गुना अधिक कुशल और इंटेलिजेंट
  • कम लागत, हाई इफेक्ट: एक ही यूनिट से तीन गुना सुरक्षा
  • ग्लोबल प्रतिस्पर्धा में बढ़त: चीन और अन्य समुद्री ताकतों से मुकाबले में भारत अब पीछे नहीं

दुश्मन के लिए ‘साइलेंट किलर’ बनी ये माइन

MIGM सिर्फ एक हथियार नहीं, यह भारत की रणनीतिक दूरदर्शिता और तकनीकी ताकत का प्रतीक है. यह समुद्र की सतह के नीचे चुपचाप दुश्मन की हर हरकत पर नज़र रखेगी, और जरूरत पड़ने पर ऐसा वार करेगी जिसे टाल पाना नामुमकिन होगा. अब जब भारत अपनी जमीन के साथ-साथ समुद्री सीमाओं को भी लोहे की दीवार में बदल रहा है, तो साफ है कि कोई भी आंख उठाकर देखने की गलती अब बहुत भारी पड़ सकती है. ये माइन नहीं, दुश्मन के लिए मौत की खामोश आहट है.

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