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क्या है जम्मू-कश्मीर का 100 करोड़ का गन लाइसेंस घोटाला? 8 IAS अधिकारियों के करियर पर लटकी तलवार

जम्मू-कश्मीर का 100 करोड़ रुपये का गन लाइसेंस घोटाला अब निर्णायक मोड़ पर है. 2012-2016 के बीच कथित तौर पर 2.74 लाख हथियार लाइसेंस अवैध रूप से जारी किए गए, जिनमें आठ वरिष्ठ IAS अधिकारी संदेह के घेरे में हैं. गृह मंत्रालय ने CBI से पूछा है कि क्या कोई ठोस मनी ट्रेल मौजूद है जो अधिकारियों को हथियार डीलरों से जोड़ता हो.

क्या है जम्मू-कश्मीर का 100 करोड़ का गन लाइसेंस घोटाला? 8 IAS अधिकारियों के करियर पर लटकी तलवार
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 14 Oct 2025 1:02 PM

जम्मू-कश्मीर का ‘गन लाइसेंस घोटाला’ अब एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार सीधे देश के गृह मंत्रालय (MHA) और 8 सीनियर IAS अधिकारियों के करियर दांव पर हैं. यह वही मामला है, जिसमें 2012 से 2016 के बीच कथित तौर पर 2.74 लाख हथियारों के लाइसेंस अवैध तरीके से जारी किए गए थे. अब गृह मंत्रालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से पूछा है कि क्या वास्तव में कोई ठोस “मनी ट्रेल” या सबूत मौजूद हैं, जो इन अफसरों को हथियार डीलरों से जोड़ते हों.

इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गृह मंत्रालय ने CBI को लिखे अपने पत्र (1 सितंबर 2025) में यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या इन अधिकारियों को अवैध हथियार लाइसेंस जारी करने के बदले किसी प्रकार का आर्थिक लाभ मिला था? मंत्रालय ने यह भी पूछा है कि क्या जांच में किसी IAS अधिकारी द्वारा हथियार डीलरों के साथ वित्तीय लेनदेन या संपत्ति के सौदे के सबूत मिले हैं? यह पत्र गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में दायर स्थिति रिपोर्ट का हिस्सा है.

कैसे सामने आया घोटाला?

इस घोटाले की जड़ें 2017 में राजस्थान की एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (ATS) की एक जांच से जुड़ी हैं. ATS ने पाया कि जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में फर्जी डॉक्यूमेंट्स के आधार पर हथियारों के लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं. बाद में यह मामला CBI को सौंपा गया. जांच में खुलासा हुआ कि 2012 से 2016 के बीच करीब 2.74 लाख हथियारों के लाइसेंस जारी किए गए, जिनमें से 95% लाइसेंस ऐसे लोगों को मिले जो जम्मू-कश्मीर के निवासी नहीं थे और न ही वहां तैनात थे. CBI के अनुसार, इन लाइसेंसों का अधिकांश हिस्सा आर्म्ड फोर्सेज, पैरामिलिट्री कर्मियों और अन्य बाहरी व्यक्तियों को “मोनिटरी कंसिडरेशन” यानी पैसों के बदले जारी किया गया. अनुमान है कि यह घोटाला ₹100 करोड़ से अधिक का है.

कौन-कौन अफसर फंसे हैं?

CBI ने नौ IAS अधिकारियों के खिलाफ जांच की थी, जिनमें से आठ के खिलाफ अभियोजन (prosecution) की अनुमति गृह मंत्रालय से मांगी गई है. ये सभी अफसर 2012 से 2016 के बीच जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के विभिन्न जिलों में जिलाधीश या डिप्टी कमिश्नर रहे.

अदालत की सख्ती और सरकार की चुप्पी

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस अरुण पाली और जस्टिस राजनेश ओसवाल की बेंच ने इस मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए गृह मंत्रालय को छह हफ्तों के भीतर अंतिम निर्णय लेने का निर्देश दिया है कि क्या इन IAS अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दी जाएगी या नहीं. अदालत ने यह निर्देश उस जनहित याचिका (PIL No. 09/2012) की सुनवाई के दौरान दिया, जो वकील शेख मोहम्मद शफी और अन्य द्वारा दायर की गई थी. याचिका में कहा गया है कि आरोपी अधिकारी आज भी “महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं और प्रभाव का उपयोग कर सकते हैं”, इसलिए अदालत की निगरानी जारी रहनी चाहिए.

‘पैसे का खेल’ और सवालों की बौछार

गृह मंत्रालय ने अपने पत्र में CBI से पूछा है कि क्या किसी अधिकारी ने घूस की रकम अपने या परिवार के बैंक खातों में जमा की थी? उदाहरण के तौर पर, एक अधिकारी पर अपनी मां के खाते में ₹12-18 लाख पार्क करने का आरोप है, जबकि दूसरे अधिकारी पर आरोप है कि उन्होंने नोटबंदी के दौरान दो महिलाओं के खातों में ₹2.8 लाख जमा कर बाद में पैसा खुद को ट्रांसफर किया. मंत्रालय ने यह भी पूछा कि जांच सिर्फ 2012-2016 तक सीमित क्यों रखी गई, जबकि कुछ अधिकारी इससे पहले भी उन्हीं जिलों में पदस्थ थे.

CBI बनाम MHA: जिम्मेदारी किसकी?

CBI ने अपनी जांच पूरी कर आरोप लगाया कि अधिकांश लाइसेंस फर्जी दस्तावेजों पर जारी किए गए. जांच एजेंसी का कहना है कि इन लाइसेंसों को जारी करने में कई बिचौलिए, डीलर और प्रशासनिक अधिकारी शामिल थे. 2021 में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने KAS अधिकारियों और न्यायिक क्लर्कों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दे दी थी, जिसके बाद चार्जशीट दायर की गई. लेकिन IAS अधिकारियों पर फैसला अब भी लंबित है. गृह मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि यह फैसला इसलिए अटका है क्योंकि केंद्र सरकार वरिष्ठ IAS अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति देने में अत्यंत सावधानी बरतती है. लेकिन अब अदालत के सख्त निर्देशों के बाद मंत्रालय पर दबाव है कि वह 'फाइनल स्टैंड ले.

राजनीतिक और सुरक्षा चिंताएं

इस घोटाले ने न केवल जम्मू-कश्मीर की प्रशासनिक ईमानदारी पर सवाल उठाए हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी यह एक गंभीर मुद्दा बन गया है. अवैध हथियार लाइसेंस देश के विभिन्न हिस्सों में गलत हाथों में जा सकते थे, जिससे आतंकवाद या अपराध को बढ़ावा मिल सकता था. याचिकाकर्ता के वकील शेख शकील अहमद ने कहा, “यह सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है. हजारों हथियारों के लाइसेंस फर्जी तरीके से जारी करना कोई साधारण प्रशासनिक गलती नहीं हो सकती.”

घोटाले का कानूनी रास्ता और आगे की प्रक्रिया

हाईकोर्ट ने 8 अगस्त 2025 को गृह मंत्रालय को छह हफ्तों में “स्पष्ट स्थिति रिपोर्ट” देने का निर्देश दिया था. इसके बाद मंत्रालय ने 1 सितंबर को CBI से नई जानकारी मांगी. अब 9 अक्टूबर को अगली सुनवाई में मंत्रालय को यह बताना होगा कि क्या वह इन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति देगा. इस बीच, CBI और गृह मंत्रालय के बीच “संवेदनशील सबूतों” को लेकर लगातार बातचीत चल रही है. मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह मामला न केवल IAS अधिकारियों के करियर का सवाल है, बल्कि यह प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही की असली परीक्षा भी है.”

एक घोटाला, जिसने खोली सिस्टम की पोल

जम्मू-कश्मीर का गन लाइसेंस घोटाला बताता है कि कैसे प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार और ढिलाई मिलकर एक ऐसी प्रणाली बना सकती है, जो अंततः देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाती है. अदालत ने अब सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है - और आने वाले हफ्तों में यह साफ होगा कि केंद्र सरकार सचमुच “जीरो टॉलरेंस” की नीति पर चलती है या फिर यह घोटाला भी राजनीतिक और नौकरशाही संरक्षण की भेंट चढ़ जाएगा.

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