FOMO क्या होता है, पुतिन और मोदी की दोस्ती ने कैसे बदल दिया ट्रंप का टोन? अमेरिका की नजर में क्यों बढ़ी भारत की अहमियत
FOMO यानी Fear of Missing Out एक ऐसी मानसिक और राजनीतिक स्थिति जिसमें किसी अवसर, साझेदारी या ग्लोबल समीकरण से बाहर रह जाने का डर हावी हो जाता है. भारत और रूस के बीच बढ़ती राजनीतिक नजदीकी, मोदी-पुतिन की बार-बार दिखने वाली दोस्ती और वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की बढ़ती भूमिका ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का टोन अचानक बदल दिया है। टैरिफ तनाव और व्यापार युद्ध के बीच अमेरिका को अब समझ आ रहा है कि एशिया की राजनीति हो या रक्षा साझेदारी, भारत को नजरअंदाज करना उसके लिए घाटे का सौदा हो सकता है.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अक्सर तस्वीरें और मुलाकातें भी कई अहम मसले को लेकर बड़े संदेश देती हैं. यही वजह है कि पुतिन की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दिखी मजबूत केमिस्ट्री ने वॉशिंगटन में हलचल पैदा कर दी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हाल ही में भारत को लेकर अचानक नरम पड़ते दिखाई देने लगे हैं. जबकि कुछ समय पहले तक वे टैरिफ, ट्रेड और वीजा नीतियों पर सख्त थे. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बदलाव के पीछे कूटनीतिक FOMO काम कर रहा है. यानी अमेरिका को डर है कि कहीं भारत रूस और चीन के बीच खेमे में चला जाए. ऐसा हुआ तो भू राजनीतिक स्तर पर वाशिंगटन की रणनीतिक पकड़ कमजोर पड़ सकती है. यही वजह है कि वाशिंगटन की नजरों में भारत की अहमियत पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है.
FOMO क्या होता है?
FOMO (Fear of Missing Out) यानी कहीं मैं पीछे न रह जाऊं या कोई दूसरा मुझसे बड़ी बढ़त न ले ले, का डर. अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति में FOMO का मतलब किसी रणनीतिक साझेदारी से बाहर रह जाने का डर माना जा सकता है. किसी अन्य देश के मजबूत रिश्ते से खुद की वैश्विक भूमिका कम होने का डर सताना फोमो हो सकता है. विश्व में आर्थिक, सैन्य या भू-राजनीतिक प्रभाव घटने की आशंका भी हो सकता है.
भारत–रूस संबंधों पर अमेरिका की नजर क्यों?
भारत और रूस दशकों से रक्षा और ऊर्जा और परमाणु साझेदार रहे हैं. जबकि पिछले कुछ महीनों से अमेरिका भारत के बीच टैरिफ को लेकर स्ट्रैटेजिक पार्टनर की हैसियत बदलते नजर आने लगे है. इस बीच पुतिन की भारत यात्रा ने अमेरिका को भारत के संदर्भ में नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है. ऐसा इसलिए कि मोदी-पुतिन के बीच कुडनकुलम न्यूक्लियर सहयोग, S-400 जैसी रणनीतिक डील, यूक्रेन संघर्ष के बावजूद भारत का बैलेंस्ड स्टैंड ने दुनिया को यह दिखाया कि भारत रूस से दूरी नहीं बल्कि व्यावहारिक रणनीति पर चल रहा है. यही बात अमेरिका को परेशान करती है.
कैसे मान लें कि FOMO का ट्रंप पर असर दिख रहा है?
दरअसल, ट्रंप ने हाल के बयानों और संदेशों में भारत के साथ बड़ा ट्रेड पैकेज की बात का संदेश मिल रहा है. कुछ दिन पहले ही रक्षा सौदों को लेकर भी भारत-अमेरिका के बीच समझौते हुए है. ट्रंप प्रशासन ने टैरिफ को दोबारा रिव्यू करने का संकेत दिया है. अमेरिका ने निवेश और टेक्नोलॉजी सहयोग बढ़ाने की इच्छा दिखाई है. साथ ही ये भी कहा है कि भारत एक विश्वसनीय साझेदार है. बयान दिया.
ट्रंप के रुख में अचानक बदलाव क्यों?
माना जा रहा है कि ट्रंप को डर है कि भारत रूस-चीन-मध्य एशिया गठजोड़ की ओर अधिक झुकाव न दिखा दे, जिससे अमेरिका की Indo-Pacific रणनीति कमजोर पड़ जाएगी.
दरअसल, टैरिफ वार के बीच भारत को अचानक अहमियत देने की तीन वजहें सबसे अहम मानी जा रही हैं. चीन को बैलेंस करने में भारत की भूमिका, अमेरिका के लिए एशिया में चीन के मुकाबले भारत ही सबसे मजबूत संतुलन फैक्टर और रूस-भारत की नजदीकियों से राजनीतिक खतरा है.
अगर भारत रूस के और करीब आया, तो अमेरिका की रक्षा सप्लाई, इंडो-पैसिफिक रणनीति, NATO+एशिया मॉडल व अन्य भू राजनीति अहमियत पर उसके लिए आगे बढ़ने की संभावनाकों झटका लग सकता है. अमेरिका में भारतीय जनसंख्या धीरे-धीरे प्रभावी होती जा रही है. इसे ट्रंप अनदेखा नहीं कर सकते.
क्या पुतिन-मोदी के संबंधों से ट्रंप का डर वाजिब है?
कई विशेषज्ञ मानते हैं भारत रूस को ऐतिहासिक मित्र मानता है. ऊर्जा, सुरक्षा और तकनीक में रूस अभी भी भारत के लिए महत्वपूर्ण है. यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस को नहीं छोड़ा. ये सब अमेरिका को संकेत देते हैं कि भारत अपनी ‘स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी’ नहीं छोड़ेगा. यानी न अमेरिका और न ही रूस के दबाव में झुकेगा. यही स्वतंत्र विदेश नीति मॉडल ट्रंप को बेचैन कर रहा है, क्योंकि अगर भारत रूस के और करीब आया तो अमेरिका का प्रभाव कम होगा.
US-India रिश्तों पर असर पड़ेगा?
अमेरिका ने अपनी नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी जारी की है. इसका ऐलान करते हुए उसने भारत का नाम लिया गया है. इस रिपोर्ट के जरिए अमेरिका ने दिल्ली से मदद मांगी है और चीन के खिलाफ मोर्चा खोलने की बात कही है. यह प्रयास बाइडेन के समय भी हुआ था. उससे पहले ट्रंप ने भी अपने टर्म में इसको लेकर काफी प्रयास किए थे. इस योजना के तहत ही क्वैड अस्तित्व में आया था. क्वैड यानी अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया का संगठन.
असर तो पड़ेगा, लेकिन नकारात्मक नहीं बल्कि रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के रूप में.ट्रंप समझते हैं कि भारत को नाराज नहीं किया जा सकता. अमेरिका को भारत को चीन के खिलाफ चाहिए. भारत दुनिया की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था है. रूस के साथ भारत का रिश्ता तोड़ना असंभव है.
कहने का मतलब है कि अमेरिका की रणनीति यह होगी कि भारत को संतुलित रूप से खुश रखा जाए. रूस-भारत रिश्ते को कूटनीतिक खतरा बनने से रोका जाए. ट्रेड और टेक्नोलॉजी के जरिए भारत को ज्यादा एंगेज किया जाए. अमेरिका को पता है भारत आज की दुनिया में ‘Pivot Power’ है और यही कारण है कि ट्रंप का FOMO अब खुलकर दिख रहा है.





