अपने ही देश में बन गए रिफ्यूजी! वो घर लूट रहे थे और हम जान बचाकर भाग रहे थे... मुर्शिदाबाद हिंसा के पीड़ितों ने सुनाया दर्द
मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद सैकड़ों परिवार अपने गांव छोड़कर परलालपुर हाई स्कूल में शरण लिए हुए हैं. आठ दिन की बच्ची के साथ सप्तमी मंडल अब भी डरी हुई हैं. भीड़ ने उनके घर को घेर लिया था, अब वो गंगा पार स्कूल में रहने को मजबूर हैं. पीड़ितों की एक ही मांग है- स्थायी सुरक्षा. क्या हम कभी लौट पाएंगे? उनकी आंखों में यही सवाल है.

आठ दिन की बच्ची को गोद में लिए 24 वर्षीय सप्तमी मंडल, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के परलालपुर हाई स्कूल के एक कमरे में प्लास्टिक की शीट पर बैठी थीं. यह स्कूल इन दिनों दंगों से भागे सैकड़ों लोगों के लिए शरणस्थली बना हुआ है. बीते हफ्ते वक्फ कानून को लेकर भड़की सांप्रदायिक हिंसा ने उनकी दुनिया उजाड़ दी.
सप्तमी अकेली नहीं हैं. उनके जैसे लगभग 400 लोग, जिनमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे शामिल हैं, इस स्कूल में पनाह लिए हुए हैं. गंगा पार उनके गांव धूलियन में अब सिर्फ खौफ और राख बची है. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए सप्तमी कहती हैं कि पता नहीं कभी वापस जा भी पाऊंगी या नहीं, वहां अब सिर्फ डर है. उनका पति कोलकाता में मजदूरी करता है.
भीड़ ने जला दिया पड़ोसी का घर
हिंसा में अब तक तीन जानें जा चुकी हैं. सप्तमी बताती हैं कि हरगोविंद दास और उनके बेटे चंदन को भीड़ ने घर से खींचकर मार डाला. शुक्रवार की रात भीड़ ने उनके पड़ोसी का घर जला दिया, उनके घर पर पत्थरबाज़ी की. हम अंदर छिप गए. जब भीड़ चली गई तो हम निकले. BSF गश्त कर रही थी, उसी की मदद से हम घाट तक पहुंचे. हमारे पास बस ये कपड़े ही हैं.अपने ही देश में बन गए शरणार्थी
सप्तमी ने बताया कि रात में नाव से गंगा पार कर वे एक गांव पहुंचे, जहां एक अनजान परिवार ने उन्हें आसरा दिया और कपड़े पहनने को दिए. अगले दिन वे परलालपुर के इस स्कूल में आए. लेकिन नाव पर ही उनकी नवजात बेटी को तेज़ बुखार हो गया. वह बताती हैं कि अब हम दूसरों की रहमत पर जी रहे हैं. हम अपने ही देश में शरणार्थी बन गए हैं अगर दोबारा हमला हुआ तो क्या होगा? उनकी आंखों में चिंता साफ झलकती है.
भीड़ ने लूट लिया घर
धूलियन, सुती और समाहरगंज से आए इन परिवारों की बस एक ही मांग है कि स्थायी BSF कैम्प हो, तभी हम लौटेंगे. 56 साल की तुलोरानी मंडल बताती हैं कि मेरा घर दंगों में जल गया. स्कूल की पहली मंज़िल पर बैठी प्रतिमा मंडल (30) बताती हैं कि भीड़ घर लूट रही थी, हम छत पर छिपे रहे. अगली शाम नाव से भागे. मेरा एक साल का बच्चा है. उसके लिए जान बचाकर भागना पड़ा.
स्कूल बन गया शेल्टर रूम
स्कूल के कमरों से बेंच हटा दिए गए हैं ताकि सोने की जगह बनाई जा सके. प्रशासन और गांववालों ने खाने, कपड़े और दवाइयों का इंतज़ाम किया है. स्कूल में अब सशस्त्र पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स तैनात है. मिड-डे मील की रसोई अब अस्थायी रसोई बन गई है, और डॉर्मिटरी अब सामूहिक भोजन कक्ष बन गया है. स्थानीय निवासी रेबा बिस्वास (57) ने बताया कि नौ महिलाओं ने दोपहर का खाना बनाया. शुक्रवार की रात हमने इन्हें अपने घर में पनाह दी थी. स्वास्थ्य केंद्र से आए डॉक्टर प्रसनजीत मंडल ने बताया कि एक गर्भवती महिला को पास के ग्रामीण अस्पताल में भेजा गया है, बाकी लोगों की देखरेख यहीं की जा रही है.
प्रशासन ने किया खाने का इंतजाम
प्रशासन ने दूध, बेबी फूड, अंडे और दाल-चावल का इंतज़ाम किया है, और BJP प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने दौरा कर मदद का आश्वासन भी दिया. उनके आने से पहले हल्का तनाव हुआ क्योंकि पुलिस ने गेट बंद कर रखा था, लेकिन बाद में उन्हें भीतर आने दिया गया. परलालपुर का ये स्कूल अब किसी राहत कैंप से कम नहीं, लेकिन इन परिवारों की आंखों में बस एक ही सवाल है, क्या कभी फिर अपने घर लौट पाएंगे?