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AI से सब होता तो PM मोदी ... संजीव सान्याल के बयान पर भड़के UPSC की तैयारी कर रहे छात्र, बोले- 'अफसरों से चलता है देश'

PM-EAC सदस्य संजीव सान्याल के 'संघ लोक सेवा आयोग समय की बर्बादी है’, वाले बयान पर सिविल सेवा की तैयारी कर रहे छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा है. छात्रों ने AI बनाम प्रशासन की भूमिका को लेकर तीखा पलटवार किया. साथ ही कहा कि अगर एआई से सब कुछ होता है कि पीएम को सलाहकारों की जरूरत क्या है, उसका काम भी एआई (AI) से ही करा लें.

AI से सब होता तो PM मोदी ... संजीव सान्याल के बयान पर भड़के UPSC की तैयारी कर रहे छात्र, बोले- अफसरों से चलता है देश
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देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा (संघ लोक सेवा आयोग) UPSC को लेकर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (PM-EAC) के सदस्य और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल का एक बयान अब बड़े विवाद की वजह बन गया है. सान्याल के 'UPSC समय की बर्बादी है' जैसे बयान पर सिविल सेवा की तैयारी कर रहे छात्रों में जबरदस्त नाराजगी देखी जा रही है. सोशल मीडिया पर अभ्यर्थियों ने तीखे सवाल उठाते हुए कहा, “अगर AI से ही सब हो जाता, तो देश को नौकरशाही और चुनी हुई सरकार की जरूरत ही क्यों पड़ती?” इस मसले को लेकर क्या कहते हैं कि आईएएस कोचिंग संचालक और यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्र.

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'युवाओं के लिए 'फैमिली प्राइड' का सवाल'

अमात्य आईएएस इंस्टीट्यूट की प्रमुख राजेश भारती का कहना है कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर आईएएस, आईपीएस या आईएफएस व अन्य अखिल भारतीय सेवाओं में जाने का क्रेज देश के उस क्षेत्र के युवाओं में ज्यादा है, जो कम विकसित हैं या असमान विकास के शिकार है. ऐसे क्षेत्र में लोकतंत्र की जड़ें अभी मजबूत नहीं हुई हैं. न ही उन इलाकों में शैक्षिक संस्थान अच्छे हैं. इसका रीजन है कि लोकतंत्र में सभी को समान अवसर मुहैया कराने की बातें तो बढ़ चढ़कर होती हैं, लेकिन जमीन पर वैसा अभी तक नहीं हो पाया.

उन्होंने आगे कहा, 'सही मायने में लोकतंत्र में नौकरशाही का इतना महत्व होना ही नहीं चाहिए. इसके बावजूद इसकी अहमियत है तो इसलिए कि देश में सामंती सोच आज भी बरकरार है. पिछड़े क्षेत्रों के युवा भी वर्तमान व्यवस्था में अथॉरिटी चाहता है. ताकि उसकी फैमिली प्राइड बनी रहे. या फिर जिसका समाज में अभी कोई अहमियत नहीं है, वह भी यूपीएससी पास करना चाहता है. इसलिए, युवा यूपीएससी की तैयारी करते हैं. इस लिहाज से देखें तो सान्याल जैसे शख्स का यह बयान गैर जिम्मेदाराना माना जा सकता है.'

'UPSC की तैयारी से बदलता है युवाओं का नजरिया'

यूपीएससी में वैकल्पिक विषय भूगोल की एक्सपर्ट डॉ. रितु का कहना है कि पीएम के आर्थिक सलाहकार का यह बयान वाकई अत्यंत दुखद और चिंताजनक है. मेरे विचार से UPSC की तैयारी हर विद्यार्थी को करनी चाहिए. चाहे वह परीक्षा दे या न दे. इसकी तैयारी से छात्र के भीतर सभी विषयों का संतुलन बनता है. उसका नजरिया शासन प्रशासन को लेकर बदलता है. अन्यथा, छात्र को यह तक स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं हो पाता कि देश में राजनीति कैसे संचालित होती है? अर्थव्यवस्था कैसे कार्य करती है. एक जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए सभी बातों का ज्ञान होना आवश्यक है.

उन्होंने कहा, 'अहम बात यह है कि यदि UPSC की तैयारी ही नहीं की जाएगी, तो प्रशासन कौन संभालेगा? आखिर कानून को अमल में लाने की जिम्मेदारी किसके हाथों में सौंपी जाएगी? यह प्रश्न केवल प्रतियोगी परीक्षा का नहीं, बल्कि देश के भविष्य, शासन व्यवस्था और सुशासन से भी जुड़ा है.'

'इसका मतलब यह नहीं कि UPSC बेकार है'

दिल्ली डीटीयू के छात्र दिव्यांश का कहना है कि संजीव सान्याल को ये बात प्रायोजित पॉडकास्ट में नहीं, किसी कॉन्फ्रेंस में आकर कहने की जरूरत है. उनका बयान UPSC को लेकर एक गैर जरूरी बहस न क्रिएट करे. पहले सरकारी नौकरी सबसे सुरक्षित मानी जाती थी, क्योंकि तब विकल्प कम थे. अब प्राइवेट सेक्टर, स्टार्टअप्स, रिमोट जॉब्स और फ्रीलांस जैसे कई मौके मौजूद हैं. लोग अपने अपने हिसाब से वैसा कर भी रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं कि UPSC बेकार है. अगर कोई सच में देश की सेवा या सिस्टम में बदलाव करना चाहता है, तो यूपीएससी आज भी अच्छा जरिया है. किसी की नीयत खराब हो तो उसका यूपीएससी क्या कर सकता है?

'भ्रष्ट्र अनपढ़ नेता और सलाहकार की भी जरूरत क्यों?'

सिविल सर्विस की तैयारी में जुटे प्रिंस एनी का कहना है कि यदि UPSC जरूरी नहीं है तो फिर भ्रष्ट अनपढ़ नेताओं की भी क्या जरूरत? अर्थशास्त्री संजीव सान्याल सिर्फ एक प्रतिशत भारत की ही बात कर रहे हैं. उन्हें नहीं पता कि असली भारत खान मार्केट और Connaught place में नहीं बल्कि छोटे शहरों, कस्बों और गांव में रहता है. जहां आज भी स्कूल में छत और बैठने की जगह भी नहीं है. ऐसे अर्थशास्त्रियों की वजह से देश का खजाना तो भर रहा है, लेकिन गरीब कम होने का नाम नहीं ले रही है.

'सान्याल खुद क्यों नहीं बने अंबानी?'

ग्रैजुएट फाइनल ईयर की छात्रा और यूपीएससी की तैयारी जुटी सृष्टि का कहना है कि मुझे हैरानी होती है कि क्या सभी अडानी और अंबानी बन जाएं तो पीएम के एडवाइजर का क्या होगा. आखिर संजीव सान्याल भी तो पीएम के सलाहकार ही हैं न! पहले खुद क्यों नहीं बन गए अंबानी. हर इंसान की परिस्थितियां अलग—अलग होती हैं. अलग—अलग परिवेश में पलता और बढ़ता. उसी के अनुरूप वो अपना सपना बुनता है. संजीव सान्याल ठीक वैसे ही बयान दे रहे है, जैसा कि सत्ताधारी दल के नेताओं का कहना है कि देश की गरीबी मिटाने वाली है. उनका बयान ऐसा हो भी क्यों नहीं, आखिर वो पीएमओ का ही तो रोटी खाते हैं.

'AI से संभव है तो तर्क शास्त्रियों को हटा दें PM?'

चिराग शक्ति दूसरी बार मेंस का पेपर दिया है. उनका कहना है कि अगर हर काम AI से हो सकता है, तो हमारे PM को इकोनॉमिक एडवाइजर रखने की जरूरत क्यों है? क्यों न सान्याल जैसे अर्थशास्त्री को पीएम मोदी हटा देते. राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में हर एक की भूमिका की अहमियत होती है. किसी भी पेशे को छोटा आंकने का मतलब है कि पीएमओ को खुद ही अपनी व्यवस्था पर भरोसा नहीं है. समस्या आम लोगों में नहीं है बल्कि उनमें है जो सोचते हैं कि उनमें सॉल्यूशन डिजाइन करने की काबिलियत है.

क्या है पूरा मामला?

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (PM-EAC) के सदस्य और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने हाल ही में यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) परीक्षा की तैयारी को लेकर पॉडकास्ट 'द नियॉन शो' में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि "UPSC समय की बर्बादी है." सान्याल ने 'महत्वाकांक्षा की कमी' पर बात की, जिससे भारत दशकों से जूझ रहा है और अपनी बात को समझाने के लिए पश्चिम बंगाल और बिहार के उदाहरण दिए. सान्याल ने कहा, "जैसे बंगाल ने नकली बुद्धिजीवियों और यूनियन नेताओं को अपना आदर्श बनाया, वैसे ही बिहार ने छोटे-मोटे स्थानीय गुंडे नेताओं को अपना आदर्श बनाया. ऐसे माहौल में जहां ये लोग रोल मॉडल हैं, आप या तो स्थानीय गुंडे बन सकते हैं. अगर आप स्थानीय गुंडे नहीं बनना चाहते, तो आपके पास एकमात्र रास्ता सिविल सर्वेंट बनना है."

उन्होंने आगे कहा कि हालांकि गुंडा बनने से यह बेहतर है, लेकिन यह भी एक तरह से सोच की कमी है. अगर आपको सपने देखने ही हैं, तो आपको एलन मस्क या मुकेश अंबानी बनने का सपना देखना चाहिए. आप ज्वाइंट सेक्रेटरी बनने का सपना क्यों देखते हैं? आपको इस बारे में सोचने की क्या जरूरत है कि कोई समाज रिस्क लेने और बड़े पैमाने पर काम करने के बारे में कैसे सोचता है. मुझे लगता है कि बिहार जैसी जगह की एक समस्या यह नहीं है कि वहां बुरे नेता थे, बुरे नेता इस बात का आईना हैं कि वह समाज क्या चाहता है?”

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