क्या केवल शपथ लेने से हो जाएगी बुजुर्गों की देखभाल? UGC की योजना पर उठ रहे सवाल
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने बुजुर्गों की सेवा और देखभाल को लेकर 'सम्मान के साथ वृद्धावस्था' योजना शुरू की है. हायर शिक्षण संस्थानों से कहा गया है कि छात्रों को शपथ दिला कर इस योजना की शुरुआत करें. फिलहाल, यह एक अनिवार्य व्यवस्था नहीं है, लेकिन शपथ लेने से वरिष्ठ नागरिकों की मूल समस्याएं हल होंगी? कुछ लोग इसे यूजीसी का 'दिखावा' बता रहे हैं तो कुछ विशेषज्ञ योजना पर सवाल उठा रहे हैं.

भारत में आजादी मिलने के बाद तेजी से शहरीकरण और औद्योगीकरण का दौर बढ़ा. फिर 1990 के बाद निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण का दौर आया. अब एक बार फिर दुनिया भर में राष्ट्रवाद और स्थानीय परंपरा से जुड़ने और उसे जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाए रखने को लेकर मुहिम चल पड़ी है. इन परिवर्तनों से भारत अछूता नहीं है. इस बीच तेजी से बढ़ती बुजुर्गों की आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवाएं, सामाजिक सुरक्षा और देखभाल सबसे बड़ी चुनौतियां बन कर सामने आई है. ऐसे में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा छात्रों के जरिए ‘बुजुर्गों की सेवा’ का संदेश देने की पहल को प्रासंगिक माना जा सकता है.
इस योजना का मकसद वरिष्ठ नागरिकों के प्रति सेवा के भाव को बढ़ावा देने के साथ पहले के संयुक्त परिवार की तरह बुजुर्गों की सेवा को अहम मानवीय मूल्यों के रूप में समाज में स्थापित करना है. हालांकि, ये परंपरा हमेशा से भारतीय समाज में रही है, लेकिन रोजगार, लिखाई पढ़ाई, नवाचार और कारोबार के इस दौर में आज के दौर में लोग निजी परिवार से न्यूक्लियर परिवार तक सफर तय चुके हैं. समाज में बुर्जुग लोग अलगाव के शिकार नजर आने लगे हैं. इस बात की वो शिकायत भी करते हैं. इस पहलू को ध्यान में रखते हुए यूजीसी से पहल की शुरुआत की है.
हालात बदलेंगे या महज खानापूर्ति
यूजीसी ने इस योजना को बढ़ावा देने के लिए सभी शैक्षिक संस्थानों को एक आदेश जारी कर कहा है कि वे छात्रों को इसका संकल्प दिलाएं कि वरिष्ठ नागरिकों को सम्मान करेंगे. साथ ही जरूरत पड़ने पर उनकी सेवा करेंगे. यूजीसी के आदेश सामने आने के बाद शिक्षण संस्थानों से जुड़े लोग इस योजना पर सवाल उठाने लगे हैं. कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या इससे जमीन पर हालात बदल पाएंगे या यह महज औपचारिकता बनकर रह जाएगी. शिक्षाविदों का कहना है कि यह ईमानदारी से ज्यादा दिखावा है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने कहा कि यूजीसी का पत्र विश्वविद्यालयों के लिए एक निर्देश मात्र है, जिन्हें स्वायत्त निकाय माना जाता है. यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से छात्रों को वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल की शपथ दिलाने को कहा है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम ईमानदारी से ज्यादा दिखावा है.
UGC के पत्र में क्या है?
उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) के प्रमुखों को लिखे एक पत्र में यूजीसी सचिव मनीष जोशी ने लिखा है कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 'सम्मान के साथ वृद्धावस्था' पहल शुरू की है. यूजीसी से हायर शिक्षण संस्थानों से कहा है कि वे छात्र छात्राओं को इस योजना का अहम हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करें. साथ ही समाज में भी जागरूकता फैलाएं. छात्रों को 'वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान और देखभाल' करने की शपथ दिलाएं.
वरिष्ठ नागरिकों के हक की वकालत!
पत्र में कहा गया है, "वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की वकालत कर और समुदायों के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर उच्च शिक्षण संस्थानों को इस मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए सभी उच्च शिक्षण संस्थानों से अनुरोध है कि वे नागरिकों के बीच इस शपथ को बढ़ावा देने के प्रयासों को मजबूत और विस्तारित करें."
यूजीसी ने ये पत्र सभी शिक्षण संस्थानों को 4 सितंबर 2025 को जारी किया है. पत्र में एक क्यूआर कोड है, यूजीसी ने उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्रों और कर्मचारियों को इसमें भाग लेने और परिसरों में इन गतिविधियों को शुरू करने को कहा है.
दो पीढ़ियों के बीच संबंध होंगे मजबूत
पत्र में कहा गया है, "वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों और योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने से सहानुभूति बढ़ती है और पीढ़ियों के बीच संबंध मजबूत होते हैं. मुझे विश्वास है कि इस संबंध में उच्च शिक्षा संस्थानों के सक्रिय प्रयास सार्थक जागरूकता पैदा करेंगे और देश भर के वरिष्ठ नागरिकों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगे."
योजना को लाने वाले गिरोह चलाते हैं, इनसे...
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस योजना को लागू करने वाले अपना गिरोह चला रहे हैं. ये कुछ नहीं करेंगे. केवल लफ्फाजी कर रहे हैं. इससे कुछ नहीं होना जोना है. ये लोग हायर एजुकेशन में फर्जीवाड़े के अलावा और कुछ नहीं कर सकते. तथाकथित विचारधारा से जुड़े लोग कुछ नहीं करेंगे. हमेशा बड़ी बड़ी बात करते रहते हैं.
उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि सरकार चलाने वालों की अपनी जरूरतें हैं जिनसे वे यह दिखा सकें कि वे बुजुर्गों के प्रति चिंतित हैं. जब तक बच्चे कॉलेज और विश्वविद्यालय पहुंचते हैं, तब तक जीवन के प्रति उनका नजरिया लगभग बन चुका होता है. इस स्तर पर, अभियान के जरिए जागरूकता फैलाने से ज्यादा मदद नहीं मिलेगी."
दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध एआरएसडी कॉलेज के कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत वीर सिंह दीक्षित ने यूजीसी की इस योजना स्वागत किया है. उनका कहना है, 'यह एक अच्छी योजना है, बशर्ते कि इस पर अमल भी हो. आज इसकी जरूरत इसलिए है कि खाते पीते घर और अच्छे पदों पर रहे लोग भी अलगाव के शिकार हैं. उनके बच्चे भले ही करियर में सफल हैं, अच्छे पदों पर हैं, लेकिन वे उनका ख्याल नहीं रखते."
'मैं, मेरी बीवी और...
उन्होंने आगे कहा, "संयुक्त परिवार के दौर में सभी साथ रहते थे. ऐसे में बुजुर्ग लोगों को सम्मान मिलता था. उन्हें कभी अकेलापन महसूस नहीं होता था. भौतिकवाद और शहरीकरण के दौर में परिवार छोटे हो गए. 'मैं, मेरी बीवी और मेरा बच्चा' तक परिवार सिमट गया है. इस कंसेप्ट ने वरिष्ठ नागरिकों को उस मोड़ पर ला खड़ा किया, जहां पर वे यह सोचने के लिए मजबूर हैं कि भले वे अपने जीवन में सफल रहे, लेकिन अब जिंदगी कुछ नहीं है. कुछ लोग तो ये कहते हुए भी सुने जाते हैं कि जीवन में जिसे सफलता मानकर चला, वही अब बेमानी लगने लगा है."
प्रो. वीएस दीक्षित का मानना है कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे हालात नहीं हैं. गांवों में बुजुर्गों को अकेलापन महसूस नहीं होता. गांव में लोग ओल्ड एज होम में रहने के लिए मजबूर नहीं हैं. चाहे उनकी स्थिति कैसी भी क्यों न हों? महानगरीय और शहरी जीवन में यह एक गंभीर समस्या है. इस बात को ध्यान में रखते हुए सभी को इस योजना को सफल बनाने में सहयोग करने की जरूरत है.
माता-पिता भरण-पोषण अधिनियम का क्या हुआ?
बता दें कि इससे पहले संसद ने 2007 में माता-पिता भरण-पोषण अधिनियम पारित किया था, जिसमें अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल न करने वालों को कारावास की सजा का प्रावधान है. हालांकि, कई जिलों में अभी तक इस कानून के तहत न्यायाधिकरण नहीं बने हैं. पिछले 18 वर्षों में केवल पांच लाख मामले ही इन विशेष न्यायाधिकरणों तक पहुंचे हैं.