‘टैरिफ’ के हौवा की आड़ में भारत को काबू करने चले थे ट्रंप, मोदी ने 'जोर का झटका धीरे से' देकर अमेरिका को उसी की चाल में फंसाया!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की बेहतरीन अंतरराष्ट्रीय रणनीति ने अमेरिका और ट्रंप को उनके ही बुने जाल में उलझा दिया. 50% अमेरिकी टैरिफ से भारत को दबाने की कोशिश नाकाम रही और भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी कूटनीतिक ताकत का प्रदर्शन किया. सुधाकर जी, भारतीय थलसेना के रिटायर्ड मेजर जनरल, ने बताया कि भारत ने अमेरिका की चालों का बेहतरीन जवाब दिया और दुनिया में अपनी बढ़ती ताकत को कायम रखा. ट्रंप की योजना भारत के सामने फेल हो गई.

“भारत कहूं या फिर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लंबे समय से उनके राइटहैंड व देश के विदेश-मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने टैरिफ का हौवा दिखाकर भारत को ‘गीदड़ भभकी’ यह कहिए ‘बंदर-घुड़की’ देने चले, अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उन्हीं के बुने जाल में फंसा दिया है. भारत की इस जबरदस्त अंतरराष्ट्रीय विदेश और कूटनीति की मार ने, अमेरिका और उसके बड़बोले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उन्हीं के बुने ‘माया-जाल’ में उलझा दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर की यह गजब की साझा कूटनीतिक चाल ने अंतरराष्ट्रीय पटल के साथ-साथ, डोनाल्ड ट्रंप को अपने ही देशवासियों की नजरों में भी आंख उठाकर देखने के काबिल नहीं छोड़ा है. ट्रंप सोच रहे थे कि 50 फीसदी टैरिफ लगाते ही भारत रूस से मुंह मोड़कर अमेरिकी की चरण-वंदना में आ झुकेगा. मोदी जी ने जब अपनी दूर-दृष्टि की ‘मार’ अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियों के ऊपर डाली, तो वहां कोहराम मच गया. आज की तारीख में भारत पर पचास प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ का कितना असर हुआ? यह भारत से दुनिया का कोई देश नहीं पूछ रहा है? हां, अमेरिका और ट्रंप की समझ में नहीं आ रहा है कि “विनाशकाले-विपरीत-बुद्धि” के फेर में पड़कर उन्होंने जो कुछ भारत के साथ किया, और उसका भारत ने जिस तरह से खामोशी के साथ, उन्हें करारा-कूटनीतिक (अमेरिका-ट्रंप को) जवाब दिया, अब उस जवाब के बावत ट्रंप अपने देशवासियों और दुनिया को क्या जवाब दें?”
ट्रंप जैसे नेताओं के साथ सावधानी से चलना चाहिए
यह तमाम बेबाक दो-टूक मगर बेहद संतुलित और खरी-खरी बातें कही हैं सुधाकर जी ने. सुधाकर जी भारतीय थलसेना के रिटायर्ड मेजर जनरल (वीएसएम) (VSM Major General Sudhakar Jee Indian Army) अन्तरराष्ट्रीय राजनीति, अन्तरराष्ट्रीय सम्बंधों और भू-राजनीति (Geopolitics Expert) के विशेषज्ञ हैं. इन दिनों जयपुर में मौजूद सुधाकर जी से “स्टेट मिरर हिंदी” के एडिटर इनवेस्टीगेशन ने एक्सक्लूसिव बात की. उन्होंने कहा, “दरअसल अमेरिका और उसके नेता, विशेषकर डोनाल्ड ट्रंप जैसा राष्ट्रपति दुनिया का दादा बने रहने की अंधी चाहत में बहरे और गूंगे हो चुके हैं. ऐसे देश अमेरिका और उसके डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं के साथ भारत को चलना तो चाहिए मगर बेहत सतर्कता के साथ. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज भी भारत का दुनिया में अगर सबसे ज्यादा कहीं निर्यात है तो वह अमेरिका में है. मगर इसका मतलब यह भी नही हैं कि अमेरिका अपने सामने भारत की ताकत-हैसियत को ह भूल बैठे.”
तुरुप का पत्ता बना गले की फांस
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में भारतीय फौज के पूर्व मेजर जनरल ने कहा, “दरअसल भारत के ऊपर लगाए गए जिस 50 फीसदी टैरिफ को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति अपना तुरुप का पत्ता समझ रहे थे. वह उन्हीं के गले की फांस बन गया है. जो न अब उगलते बन रहा है न ही निगलते बन रहा है. भारत-विरोधी हरकतों के चलते अपने ही बुने जाल में फंसे बैठे ट्रंप की इस बेवकूफाना हरकत में आग में घी का काम कर डाला है हाल ही में चीन में हुई शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक में. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर की गजब की अंतरराष्ट्रीय रणनीति, भारत के पुराने और मजबूत दोस्त रूस व उसके राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पड़ोसी देश चीन के राष्ट्रपति के बीच हुई अहम बातचीत ने. ऐसे में ट्रंप का बौखलाना लाजिमी है.”
भीख मांगने वाले देशों से खुश रहता है अमेरिका
पचास फीसदी टैरिफ लगाकर जो ट्रंप भारत के घेरने चले थे वह खुद अमेरिका में अपनों से ही चारों से नहीं घिर चुके हैं? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल के जवाब में जिओपालिटिक्स के विशेषज्ञ सुधाकर जी बोले, “ट्रंप ही क्या....अमेरिका को दो चार राष्ट्रपतियों को अगर छोड़ दीजिए तो भारत के साथ अपने संबंधों को लेकर अक्सर अमेरिका के तकरीबन अधिकांश राष्ट्रपतियों ने, खुद ही अपने पांव पर कुल्हाड़ी चलाई है. दादा टाइप का अमेरिका सिर्फ पाकिस्तान जैसे मक्कार मतलबपरस्त और कटोरा लेकर अमेरिका के दरवाजे पर हर वक्त भीख मागने के लिए खड़े रहने वाले देशों से खुश रहते हैं. चाहे बड़ा हो या बराबर का. भारत की ऐसी कूटनीति-सामरिक-सैन्य या विदेश व अंतरराष्ट्रीय नीति कभी नहीं रही, जिसमें भारत ने कभी किसी देश से यह उम्मीद की या रखी हो कि, जो देश भारत की देहरी पर मदद मांगने आयेगा, हम सिर्फ उसी का साथ देंगे या उसी के शुभचिंतक रहेंगे. अमेरिकी विदेश और कूटनीति इस नजर से भारत के सामने एकदम बौनी है. इसका नमूना हाल-फिलहाल तो खुद बच्चों की सी शैतानियां कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ही हैं. जो सुबह कुछ कहते हैं और शाम को सबकुछ भूल कर शाम ढले कुछ और कहने-सुनने लग जाते हैं. ऐसे देश और ऐसे देश के राष्ट्रपति पर भारत को भरोसा करने की जरूरत भी क्या पड़ी है?”
टैरिफ ट्रम्प के लिए बना ज्वालामुखी का लावा
विशेष बातचीत के दौरान भारतीय थलसेना के पूर्व मेजर जनरल सुधाकर जी ने स्टेट मिरर के एक सवाल में कहा, “देखिए ट्रंप साहब से अपना देश संभल नहीं रहा है. और उन्हें दादा पूरी दुनिया के देशों का बनने की तलब है. तो जब कोई इंसान गरम-गरम खाना खायेगा या तेज गरम पानी पीएगा. तब मुंह भी तो ट्रंप जैसों का ही जलेगा. इससे भारत को क्या नुकसान होगा? ट्रंप समझ रहे थे कि 50 फीसदी टैरिफ लगाकर वे भारत को रातों-रात घुटनों पर लाकर अपने काबू में कर लेंगे. भारत के प्रधानमंत्र मोदी ने अमेरिका को उसके दुश्मन नंबर-1 चीन की जमीन से ऐसी पटखनी दे डाली कि, अब ट्रंप ही बाप-बाप चिल्लाते फिर रहे हैं. मानो जैसे भारत पर लगाया गया 50 फीसदी टैरिफ जैसे कि अमेरिकी राष्ट्रपति के खुद के लिए ही ज्वालामुखी का लावा बन गया हो.
अभी भारत को है अमेरिका की जरूरत
हां, इतना जरूर है कि आज भारत प्रगति की जिस रफ्तार पर आगे बढ़ रहा है. हमें उस रफ्तार को निरंतर-निर्बाध बनाए रखने के लिए अमेरिका की जरूरत तो साल 2045 तक पड़ना तय है. मगर ट्रंप जैसे मक्कार राष्ट्रपतियों की गीदड़-भभकियों के आगे झुककर नहीं. अपितु मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह अमेरिका के साथ संबंधों को लेकर चली जा ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक चालों के सहारे. जिससे अमेरिका भी औकात में रहे और भारत का भी आइंदा कहीं किसी तरह को कोई नुकसान न होने पाए. वैसे अब जिस तरह से चीन में रूस और भारत द्वारा ट्रंप को उनके द्वारा भारत के ऊपर लादे गए 50 फीसदी टैरिफ का जवाब मिल चुका है, उसके बाद तो ट्रंप और अमेरिका खुद ही घुटनों पर आकर कह रहे हैं कि, उन्होंने टैरिफ के चक्कर में मोदी और भारत जैसी दुनिया की उभरती हुई ताकत को अपनी बेजा ओछी हरकतों से बैठे-बिठाए खुद ही (अमेरिका न) रूस और चीन के हवाले कर दिया है. इसी से अंदाजा लगाना बेहद आसान हो जाता है कि ट्रंप ने जो गड्ढा भारत को कुदाने के लिए खोदा था उसमें अब वे खुद ही गले तक गढ़े हुए खड़े हैं. ऐसे में अब अमेरिका-अमेरिकियों से ट्रंप अपनी खाल बचाने की सोचने के साथ, भारत की भलाई करने, मोदी जी को अपना बढ़िया दोस्त कहने और भारत को अपना मजबूत सहयोगी-देश कबूलने के अलावा बिचारे कर भी क्या सकते हैं?”