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'सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन' लाएगी मणिपुर में शांति, पीएम मोदी के दौरे से पहले क्यों हुआ था एग्रीमेंट?

पीएम मोदी के दौरे से पहले मणिपुर में लंबे समय से जारी हिंसा और अशांति के बीच, सरकार और स्थानीय समूहों के बीच 'सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन' समझौता, शांति बहाली के लिए एक सकारात्मक संकेत है. हिंसा कम करने में मदद करेगा, लेकिन यह अकेला पर्याप्त नहीं है. स्थायी शांति के लिए राजनीतिक समाधान, सामाजिक समावेश और विकास पर काम करना अनिवार्य है. यह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य दौरे से पहले ही किया गया था. ताकि राज्य में शांति कायम रहे और विकास कार्यों को गति मिले.

सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन लाएगी मणिपुर में शांति, पीएम मोदी के दौरे से पहले क्यों हुआ था एग्रीमेंट?
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( Image Source:  Meta AI )

मणिपुर में करीब ढाई साल से हिंसा और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों को देखते हुए केंद्र सरकार ने पहले स्थानीय समूहों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स (SoO) पर सहमति बनाने का काम किया और अब उस पर अमल कराने में जुटी है. इस समझौते के तहत सभी पार्टियों ने हिंसा रोकने और संवाद के जरिए समाधान खोजने का सरकार को वचन दिया है. समझौता पीएम मोदी के दौरे से पहले इसलिए किया गया ताकि उनके दौरे के दौरान राज्य में कोई अशांति न हो और जनता को शांति का संदेश मिले.

'सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन' (SoO) मणिपुर जैसी तनावपूर्ण स्थिति में शांति बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन इसके असर का स्तर कई कारकों पर निर्भर करता है.

1. SoO का उद्देश्य

सशस्त्र समूहों और सुरक्षाबलों के बीच सीधे संघर्ष को रोकना. हिंसा और नागरिकों पर असर कम करना और राजनीतिक वार्ता और शांति प्रक्रिया के लिए माहौल तैयार करना.

2. शांति बहाली में योगदान

हथियारबंद समूहों और सरकार के बीच संघर्ष कम होने से आम जनता की सुरक्षा बढ़ती है. SoO के दौरान वार्ता को आगे बढ़ाना आसान हो सकता है.बाजार, स्कूल और दैनिक गतिविधियां सामान्य रूप से चल सकती हैं.

3. सीमाएं और चुनौतियां

उग्रवादी व अन्य संगठन कई बार समूह SoO का पालन नहीं करते या बीच में उल्लंघन कर देते हैं. SoO सिर्फ अस्थायी है, स्थायी शांति के लिए राजनीतिक समझौता और विकास योजनाओं पर अमल जरूरी है. नागरिक और स्थानीय प्रशासन के सहयोग के बिना शांति पूर्ण नहीं हो सकती. वर्तमान में तालमेल का अभाव है. हालांकि एसओएस लागू होने के बाद से पहले की तुलना में शांति है.

4. क्या करना जरूरी?

इस मामले से जुड़े सभी पक्ष का ईमानदारी से SoO पालन करें. वार्ता और शांति समझौते को समयबद्ध ढांचे में आगे बढ़ाएं. सुरक्षा बल और स्थानीय प्रशासन को प्रभावी निगरानी तंत्र विकसित करना होगा. सरकार सामाजिक और आर्थिक सुधारों पर ध्यान दे, जिससे जनता की नाराजगी कम हो.

SoO शांति बहाली के लिए एक सकारात्मक संकेत है और हिंसा कम करने में मदद करता है, लेकिन यह अकेला पर्याप्त नहीं है. स्थायी शांति के लिए राजनीतिक समाधान, सामाजिक समावेश और विकास पर काम करना शासन और प्रशासन के लिए अनिवार्य शर्त है.

पीएम मोदी के मणिपुर दौरे से पहले क्यों अहम?

  • जातीय हिंसा (2023-24 के बाद) के मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसक घटनाओं में बढ़ोतरी हुई थी.
  • इस हिंसा में SoO से जुड़े संगठन भी अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे.
  • कुकी संगठन बार-बार SoO जारी रखने की मांग कर रहे थे.
  • वे चाहते हैं कि उन्हें राजनीतिक हल और अलग प्रशासन (Separate Administration) की दिशा में आगे बढ़ाया जाए.
  • केंद्र पर था सियासी दबाव था कि मणिपुर सरकार (एन. बीरेन सिंह, जो मैतेई समुदाय से हैं) SoO को खत्म करना चाहती थी. इसके पीछे उनका तर्क था कि कुछ संगठन हिंसक गतिविधियों में लिप्त हैं.
  • केंद्र सरकार को लगा कि अगर SoO पूरी तरह खत्म कर दिया गया, तो पीएम मोदी के दौरे से पहले शांति-व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ सकती है.
  • पीएम मोदी को दौरे में शांति और विश्वास बहाली का संदेश देना था. SoO एग्रीमेंट को रिन्यू कर सरकार ने संकेत दिया है कि संवाद का रास्ता खुला है.
  • सरकार हिंसा रोकने के लिए सख्त है और वार्ता के लिए तैयार भी. इसका परिणाम यह निकला कि SoO एग्रीमेंट पीएम मोदी के दौरे से पहले दोबारा लागू किया गया. ताकि राज्य में अस्थायी शांति बनी रहे.

क्या है एसओएस?

मणिपुर विवाद से जुड़े “Suspension of Operations (SoO) Agreement” का सीधा मतलब है कि सुरक्षा बल और उग्रवादी संगठनों (विशेषकर कुकी विद्रोही गुटों) के बीच अस्थायी युद्धविराम। यह समझौता पहली बार 2008 में हुआ था और समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा। इसके तहत दोनों पक्ष कुछ तय शर्तों का पालन करते हैं।

मुख्य प्रावधान

युद्धविराम समझौता: केंद्र सरकार, राज्य सरकार और उग्रवादी संगठनों (विशेषकर कुकी विद्रोही गुटों) के बीच यह समझौता हुआ.

कैम्प में ठहरना: विद्रोही गुटों के सभी कैडर तयशुदा नामित शिविरों (designated camps) में ही रहेंगे.

हथियार जमा करना: इन शिविरों में प्रवेश के समय हथियार सुरक्षा बलों को सौंपने होते हैं। हथियारबंद घूमने की अनुमति नहीं होती.

शांति बनाए रखना: कैडर किसी तरह की हिंसक या आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे.

निगरानी तंत्र: समझौते की निगरानी के लिए एक Joint Monitoring Group (JMG) बनाई जाती है, जिसमें केंद्र, राज्य और सुरक्षाबलों के प्रतिनिधि होते हैं.

राजनीतिक समाधान की राह: SoO का मकसद उग्रवादियों को हिंसा छोड़कर राजनीतिक संवाद और शांति प्रक्रिया में लाना है.

समयबद्ध नवीनीकरण: यह समझौता हमेशा निश्चित समय (आमतौर पर 6 महीने से 1 साल) के लिए होता है और हालात के मुताबिक बढ़ाया या समाप्त किया जा सकता है.

विशेष सुरक्षा प्रावधान: नामित कैम्पों की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य/केंद्र के सुरक्षा बलों की होती है ताकि विद्रोही गुट बाहरी हमलों से सुरक्षित रहें और वे खुद बाहर जाकर हिंसा न करें.

मणिपुर हिंसा (2023-24) के बाद इस समझौते पर विवाद बढ़ गया, क्योंकि आरोप लगे कि कई कुकी गुट SoO के प्रावधान तोड़कर फिर से हथियारों और हिंसक गतिविधियों में शामिल हैं.

सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन का इतिहास

संस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन एग्रीमेंट 2008 (SoO) एक त्रिपक्षीय समझौता है. इस समझौते पर भारत सरकार, मणिपुर राज्य सरकार और कुकी उग्रवादी संगठन (KNO, UPF जैसे ग्रुप) ने हस्ताक्षर किए थे. यह एग्रीमेंट 2008 से मणिपुर में लागू है.

दरअसल, मणिपुर लंबे समय से जातीय और उग्रवादी हिंसा से जूझ रहा है. खासकर कुकी-जोमी और नागा उग्रवादी संगठन वर्षों से सशस्त्र विद्रोह कर रहे थे. इन संगठनों का उद्देश्य अलग राज्य, अधिक स्वायत्तता और कभी-कभी अलग देश तक की मांग से जुड़ा रहा है. इन गतिवियों पर लगाम लगाने के लिए संस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन समझौता हुआ था.

SoO का मकसद...

  • पीएम मोदी के दौरे से पहले तनाव न बढ़े. उग्रवादी संगठनों को मुख्यधारा में लाने का रास्ता खुला रहे.
  • केंद्र सरकार अपनी 'शांति और विकास' की छवि बनाए रख सके.
  • उग्रवादी संगठन सरकार और सुरक्षा बलों पर हमला नहीं करेंगे.
  • उग्रवादी संगठन अपने हथियार निर्धारित कैम्पों में जमा करेंगे.
  • उग्रवादियों को भत्ता और पुनर्वास सहायता मिलेगी.
  • सरकार राजनीतिक वार्ता चलाने के लिए समय और शांति हासिल करेगी.
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