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मंदिर का फंड, विवाह मंडप और अश्लील डांस! सुप्रीम कोर्ट का फैसला - बुराई क्या है, एक भी पैसा...

सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों के चढ़ावे और दान से तमिलनाडु सरकार द्वारा बनाए गए विवाह मंडपों के दुरुपयोग पर कड़ा रुख अपनाया है. कोर्ट ने साफ किया कि धार्मिक फंड का इस्तेमाल सिर्फ धार्मिक और सामाजिक कार्यों में ही होना चाहिए, न कि अश्लील डांस और निजी आयोजनों के लिए. शीर्ष अदालत ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया.

मंदिर का फंड, विवाह मंडप और अश्लील डांस! सुप्रीम कोर्ट का फैसला - बुराई क्या है, एक भी पैसा...
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( Image Source:  ANI )

सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के पैसे से बने विवाह मंडपों में होने वाले डांस पर रोक लगाने से इनकार करते हुए तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी भरे लहजे में कहा कि मंदिर के फंड से किसने कहा था कि विवाह मंडप बनाने के लिए. विवाह मंडप बनवाए हैं तो वहां पर डांस भी होगा और शराब भी परोसे जाएंगे. ऐसा विवाह समारोह के दौरान होता है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, 'मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक होते हैं. मगर जब उन्हें मंदिरों के दान और चढ़ावे के पैसों से बने विवाह मंडपों का इस्तेमाल अश्लील डांस और व्यावसायिक आयोजनों में होने लगे, तो सवाल उठना लाजमी है.' इस मसले पर तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा अगर मंदिर फंड एक भी रुपये का दुरुपयोग हुआ तो उसे कोर्ट के फैसले का उल्लंघन माना जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा- “मंदिर के फंड का इस्तेमाल भक्तों की आस्था से जुड़ा है, उसका दुरुपयोग किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता.” कोर्ट ने ट्रस्टों और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि मंदिर के पैसों से बने विवाह मंडपों का इस्तेमाल केवल धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए सख्त निगरानी में हो.'

क्या-क्या आदेश दिए?

  • विवाह मंडप का उपयोग केवल धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कल्याण के कार्यों में किया जाए.
  • अश्लील डांस, शराब पार्टी और व्यावसायिक इवेंट पर तुरंत रोक लगे.
  • मंदिर ट्रस्टों को अपनी फंडिंग और खर्च का सामान ऑडिट पब्लिक डोमेन में रखना होगा.
  • राज्य सरकारें नियम तोड़ने वाले ट्रस्टों और आयोजकों पर कार्रवाई करें.

क्यों अहम है यह फैसला?

यह फैसला न सिर्फ मंदिर ट्रस्टों की जवाबदेही तय करता है बल्कि भक्तों के चढ़ावे और दान की पवित्रता को भी सुरक्षित करता है. आस्था से जुड़ा पैसा समाज कल्याण और धार्मिक कार्यों में ही लगे, यही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मुख्य संदेश है. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसने राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था. साथ ही पीठ ने चेतावनी दी कि मंदिर फंड का एक भी पैसा खर्च करने पर अवमानना मानी जाएगी.

तमिलनाडु सरकार की दलील खारिज

तमिलनाडु सरकार ने अदालत के समक्ष दलील दी कि विवाह हॉलों का निर्माण सार्वजनिक हित में किया जा रहा है और राज्य में मंदिर परिसरों में विवाह होना सामान्य परंपरा है. वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और जयदीप गुप्ता ने कहा कि मंदिरों में विवाह हमेशा धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार होते हैं, जहां संगीत और नृत्य की गुंजाइश नहीं रहती.

पीठ ने सवाल उठाया कि मंदिर फंड का उपयोग विवाह भवनों की बजाय शैक्षणिक संस्थान या अस्पताल जैसी परोपकारी गतिविधियों में क्यों न किया जाए. अदालत ने टिप्पणी कहा, "भक्तजन जो चढ़ावा चढ़ाते हैं, वे विवाह भवनों के लिए दान नहीं करते। योगदान करने वाले लोग इस तरह की गतिविधियों के पक्ष में नहीं होंगे."

इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने पहले ही सरकार के उस आदेश को निरस्त कर दिया था, जिसमें तमिलनाडु के पांच अलग-अलग मंदिरों के फंड से विवाह भवन बनाने की अनुमति दी गई थी. इसके बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

क्या है मामला?

देशभर में कई मंदिर ट्रस्ट अपने फंड से विवाह मंडप और सामुदायिक हॉल का निर्माण करवाते हैं. ताकि गरीब और मध्यमवर्गीय लोग वहां अपने धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रम कर सकें, लेकिन शिकायतें सामने आईं कि इन मंडपों में शादियों के नाम पर शराब पार्टियां, अश्लील डांस और व्यावसायिक इवेंट आयोजित किए जा रहे हैं. यह मामला सामने आने के बाद मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के पैसों के दुरुपयोग पर रोक लगाते हुए कहा था कि मंदिर के फंड से विवाह मंडप न बनाएं जाएं.

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